तो इस वजह से गनर महिपाल, जज की पत्नि और बेटे को गोली मारने पर हुआ था मजबूर!
By: SanJay Yadav
एक दुखद घटना में दो दिन पहले गुड़गाँव में हरियाणा पुलिस के एक जवान महिपाल ने अतिरिक्त ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश की पत्नी और बेटे को गोली मार दी। बड़े जजों का समझ में आता है लेकिन ये जुडिशरी के सबसे निचले अधिकारियों को सुरक्षाकर्मी की क्या आवश्यकता है? महीपाल के केस में बताइये, हैड कॉन्सटेबल से गनमैन और ड्राइवर दोनों का काम लिया जा रहा था! कुछ अधिकारी, किसान पुत्र जवानों से जो ओहदें में सिपाही, हवलदार रहते है उनसे घरेलू नौकर और पारिवारिक बन्धुआ मज़दूर की तरह काम लेते है। आठों पहर उन्हें नौकरी से बर्खास्त करने की धमकी देते रहते है। अति ज़रूरी कार्यों पर छुट्टी भी नहीं देते। मैं ऐसे अधिकारियों को मानसिक रूप से बीमार समझता हूँ।
अफ़सरों और जवानों में एक परीक्षा का ही तो अंतर है। और क्या फ़र्क़ है? ज़्यादा विवेकशील, ज्ञानवान व्यक्ति ही उच्च परीक्षा उत्तीर्ण कर अधिकारी बनता है और उससे कम विवेक वाला व्यक्ति पद और ओहदें में कम ही रहता है।
जज के परिवार को गोली मारने वाले महिपाल की मनोस्थिति समझने का प्रयास किजीए। महीपाल का बच्चा बहुत बीमार था, अस्पताल में एड्मिट था। इसलिए उसने विनम्रता से छुट्टी मांगी। जज बोला कि पहले मैडम को शॉपिंग करवा के ले आओ। महीपाल जज का गनर था ना कि उसके खानदान का, जिनको गनर मिलता है वो उसे पूरे ख़ानदान की सेवा में झोंक देते है।
शॉपिंग में देर हो गई। शाम 3 बजे के आसपास महीपाल ने जज के बीवी-बेटे से दिक्कत बताई तो जज का बेटा बोला कि -“जितनी तेरी तनख्वाह है उतना खर्चा हमारे कुत्ते का है” तब तो महिपाल खून का घूंट पीकर रह गया, लेकिन थोड़ी ही देर बाद महिपाल के पास घर से फोन आया कि -” तुझे क्या मतलब है बेटे से, तेरा बेटा नहीं रहा, करता रह अब जी भर के नौकरी”।
ये बात सुनकर महिपाल आपा खो बैठा और जज के पत्नी बेटे को गोली ठोककर जज को फोन किया और कहा- “मेरा बच्चा तो मर गया लेकिन तेरे को मैंने ठोक दिया, अब तेरा भी नही बचेगा।”
अरे भाई वह हेड कॉन्स्टबल भी पढ़ा-लिखा है। बहुत मुमकिन है कि वह पढ़ा भी तुम्हारे जितना ही है लेकिन तुमने एक टेस्ट पास कर लिया उसने नहीं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं की तुम अधिकारी बनकर जानवरों जैसा सलूक करोगे और उसे इंसान भी नहीं समझोगे। उसका भी परिवार है, पत्नी है, बेटा है। ठीक है वो मॉल में शॉपिंग नहीं करते लेकिन खेत में पसीना तो बहाते है।
मैंने गाँव के सरकारी स्कूल से शिक्षा ग्रहण की है। स्कूली दिनों के कई साथी खेती-किसानी करते है, कोई मज़दूरी भी करता है, कोई व्यापार भी करता है, कोई ड्राइवरी करता है, पुलिस-फ़ौज में सिपाही से लेकर अफ़सर तक की नौकरी भी करते है। बहुत से मित्र उच्च अधिकारी भी है। लेकिन जब भी मिलता हूँ नीचे वालों में ज़्यादा आत्मीयता नज़र आती है। ऊपर वाले तो चढ़ते सूरज को सलाम करने वाली प्रवृति पाल लेते है लेकिन नीचे वाले बिलकुल ओरिजनल ही रहते है।
ख़ैर, जीवन में ऊँचा नहीं निरंतर अच्छा बनने की कोशिश करनी चाहिए। सभी सहयोगियों से मित्रवत व्यवहार रखना चाहिए।
– संजय यादव
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