Home International Political मैं कहता आंखन देखी : फैसला ‘ऑन द स्पॉट’ का निहितार्थ
Political - Social - December 6, 2019

मैं कहता आंखन देखी : फैसला ‘ऑन द स्पॉट’ का निहितार्थ

सोशल मीडिया पर अब यह खबर वायरल हो चुकी है कि तेलंगाना पुलिस ने उन चार आरोपियों को मार गिराया है. जिनके उपर प्रियंका रेड्डी नामक एक महिला पशु चिकित्सक के साथ बलात्कार के बाद जिंदा जला देने का आरोप था. पुलिस ने यह कारनामा आज 6 दिसंबर, 2019 को सुबह 3 बजे किया. पुलिस का कहना है कि चारों अपराधी भाग रहे थे और इसी क्रम में उन्हें मार दिया गया.

जाहिर तौर पर इस खबर से देश के वे लोग जश्न में डूब गए हैं जो यह मानते हैं कि हाथ के बदले हाथ और आंख के बदले आंख के जरिए ही अपराध पर नियंत्रण पाया जा सकता है. उनके लिए संविधान कोई मायने नहीं रखता है. कानून तो उनके लिए महज खेलने की चीज है. सबसे बड़ा कानून उनका अपना कानून है जो उनके धर्म ग्रंथों में लिखा है.

लेकिन यह सरासर भारतीय संविधान की नाफरमानी है. सनद रहे कि जो युवक मारे गए हैं वे महज आरोपी थे और पिछले सात दिनों से पुलिस की हिरासत में थे. इसलिए उनके पास हथियार का होना और फिर भागने की कोशिश करने की बात बेमानी है. संभव है कि पुलिस ने इस कार्रवाई को अंजाम खुद अपनी पीठ थपथपाने के लिए दिया हो और यह भी मुमकिन है कि तेलंगाना सरकार भी इस एनकाउंटर से प्रियंका रेड्डी हत्याकांड मामले में हुई जगहंसाई को बहादुरी में तब्दील करना चाहती हो. इससे पहले जया बच्चन ने राज्यसभा में कहा था कि प्रियंका रेड्डी के अपराधियों को भीड़ के हवाले कर दिया जाना चाहिए भीड़ इंसाफ कर देगी.

सवाल उठता है कि आखिर इस देश में हो क्या रहा है. कल की ही खबर है कि पश्चिम बंगाल में केवल नौ महीने की बच्ची के साथ उसके चाचा ने रेप किया. बिहार के बक्सर और समस्तीपुर में बलात्कार के बाद जिंदा जला देने की खबर भी एक सप्ताह के अंदर ही आई है. उत्तर प्रदेश के उन्नाव में कल एक बलात्कार पीड़िता को जिंदा जला देने का प्रयास किया गया जब वह कोर्ट जा रही थी.

क्या इन सबका समाधान यही है कि सभी आरोपियों मुमकिन है कि वे अपराधी भी रहे हों को पुलिस एनकाउंटर में मार दे. फिर शायद लोगों के मन में यह खौफ हो और बलात्कार की घटनाओं पर रोक लगे. लेकिन हकीकत कुछ और ही है. पुलिस पिक एंड चूज के आधार पर ऐसी कार्रवाईयां करती है और उसका मकसद अपराध पर नियंत्रण नहीं बल्कि अपनी विफलता को छिपाना होता है.

याद रखिए किसी भी आरोपी को सजा तय करने की जिम्मेदारी न्यायपालिका के पास ही रहनी चाहिए. हालांकि इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि लचर न्याय व्यवस्था के कारण मामलों की सुनवाई लंबित हो जाती है. लेकिन इसके बावजूद जब एक अपराधी को कोर्ट में ट्रायल के जरिए सजा सुनाई जाती है तो उसे उस जुर्म का अहसास होता है जो वह कर चुका होता है. इसका एक पक्ष यह भी है कि ऐसा होने से अपराधियों के अंदर का अपराध खत्म होता है. बहरहाल एनकाउंटर करने का पुलिसिया फार्मूला नया नहीं है. जिन मामलों को पुलिस अपने अनुकूल नहीं पाती है या फिर जिन मामलों को शासक खत्म कर देना चाहते हैं. पुलिस एनकाउंटर जैसी घटनाओं को अंजाम देती है. यह एक तरह की अराजकता है जिसे सरकार का संरक्षण हासिल होता है.

~ नवल किशोर कुमार

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