जानें भारतीय पत्रकारों के लिए कैसा रहा साल 2017 ?
नई दिल्ली। भारतीय पत्रकारों के लिए बेहद खराब साल रहा 2017. जी हां साल 2017 पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में बेहद ही खराब साबित हुआ है. गौरी लंकेश और शांतनु भौमिक सहित नौ पत्रकारों को इस साल अपनी जान गंवानी पड़ी है.
देशभर में नौ पत्रकारों की हत्या ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. खासतौर पर बेंगलुरु में गौरी लंकेश की हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.
इस साल पत्रकार की हत्या का पहला मामला 15 मई को तब सामने आया जब मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थानीय समाचार पत्र में काम करने वाले श्याम शर्मा की हत्या कर दी गई. इसके बाद मध्य प्रदेश में ही दैनिक नई दुनिया के पत्रकार कमलेश जैन की पिपलिया में गोली मारकर हत्या कर दी गयी.
बेंगलुरु में गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या ने देश भर में चिंता की लहर पैदा कर दी. कन्नड़ भाषा के साप्ताहिक पत्र लंकेश पत्रिके की संपादक गौरी को हमलावरों ने उनके घर के बाहर कई गोलियां मारीं. गौरी लंकेश की हत्या के ठीक 15 दिन बाद त्रिपुरा में पत्रकार शांतनु भौमिक की हत्या कर दी गई. हत्या के समय वे इंडीजीनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा तथा त्रिपुरा राजेर उपजाति गणमुक्ति परिषद के बीच संघर्ष की कवरेज कर रहे थे.
बता दें कि प्रेस आजादी पर संस्था की अंतरराष्ट्रीय सूची में भारत 136वें पर है. इस साल मारे जाने वाले पत्रकारों की संख्या काफी बढ़ी है. साथ ही सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं.
वहीं रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि 2015 से अब तक सरकार की आलोचना करने वाले नौ पत्रकारों की हत्या कर दी गई. सभी सरकारें मीडिया की स्वतंत्रता की बात कहती हैं और घोषित रूप से आलोचना के प्रति अपनी उदारता भी दिखाती हैं. बहरहाल यह न सिर्फ कानून व्यवस्था पर एक सवालिया निशान है, बल्कि इससे यह सवाल भी पैदा होता है कि एक समाज के तौर पर हम किस दिशा में जा रहे हैं?
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