जामिया लाइब्रेरी का सच, आखिर क्या था छात्र के हाथ में!
जामिया के छात्र पर 15 दिसंबर के खौफ़नाक मंजर पर पुलिस की बर्बरता देखने को मिली है जो लाइब्रेरी में हुआ. लाइब्रेरी में घुस कर अत्याचार करने की इजाजत कौन दे रहा है, यह बेहद ही अजीब लगता है कि देश में कहीं भी कुछ होता है तो सरकारें आसानी से CRPF के जवानों को फ्रंट पर भेज देती है और ये CRPFके जवान हमारे और आपके घरों से होते हैं, किसानों और मेहनती जनता के बच्चे होते हैं, ज्यादातर पिछड़े इलाकों के नौजवान इसकी तैयारी करते रहते हैं. इसके अलावा हमारे और आपके घरों की लड़कियाँ CRPFके जवानों से ब्याही हुई हैं और इन जवानों के मर जाने पर आश्रितों को पेंशन तक नहीं मिलती.लगातार देखने को मिला कि CRPF के जवान जामिया, जेएनयू, डीयू और एएमयू की लड़कियों को मार रहे हैं .
16 दिसंबर को जो वीडियो वायरल हुआ उसमें देखा गया कि जामिया के स्टूडेंट्स लाइब्रेरी में बैठे हैं और CRPFके जवान दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर बहुत बर्बरता से उन पढ़ते हुए स्टूडेंट्स को पीट रहे हैं, अगर इस विषय पर चर्चा की जाए तो उनके जैसे ही गांव घर के बच्चे हों और बहुत ज्यादा पैसे वाले न हों. लेकिन मारने का आर्डर मिलना और खुद बर्बरता से मारना दोनों में अंतर होता है। जामिया में बहुत बर्बरता से मारा गया है जो कि वीडियो में साफ दिख रहा है. बिल्कुल आश्चर्य की बात नहीं है कि, जिन स्टूडेंट्स को लाठियां भांज कर CRPF के जवानों ने मारा है, जिन जामिया, जेएनयू एएमयू की लड़कियों के साथ बदसलूकी करके पीटते हुए CRPFके जवान अपनी सरकार प्रायोजित मर्दानगी दिखा रहे हैं, लेकिन तब भी वही स्टूडेंट्स पुलवामा में मारे गए CRPF के जवानों के लिए न्याय मागेंगे, पुलवामा की जांच की मांग करेंगे और CRPFजवानों के लिए पेंशन की डिमांड करेंगे. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि स्टूडेंट्स इस देश के हाशिये के तबके के साथ खड़े हैं और धमकी से नहीं डरते हैं. जामिया में पुलिस हिंसा पर लोग सोशल मीडिया पर तरह-तरह से टिपण्णी कर रहे है.
वहीं प्रियंका भारती जिन्होंने jnu छात्र संघ का चुनाव लड़ी थी वो अपने fbवॉल पर लिखती है कि ये डर हमने महसूस किया था,पर जिन लोगों ने जामिया और छात्रों पर शक किया और गलत समझा, सोचिये आप की आंखो पर कैसी पट्टी बंधी है की अपने देश के युवाओं का ना दर्द पता चल रहा है और ना ही देश की बदहाली दिख रही है. लेकिन अब हम सभी को जागना, लड़ना और सबूत देना होगा की हम भी जिंदा हैं. दिल्ली पुलिस पर देश का युवा थूकता हैं, साथ ही पूरी इंसानियत शर्मसार है. रक्षा और क़ानून तो दूर की बात है इन से तो इंसानियत की उम्मीद भी नहीं कि जा सकती है.
लेकिन अचम्भे की बात तो यह है कि बात यही खत्म नहीं होती. जामिया से जिस तरीके से खबरे उभर के आई है वो कहीं ना कहीं मौजूदा सरकार पर कड़े सवालिया निशान खड़ा कर रही है. अब आपको एक कड़वी सच्चाई बताता हूं. पुलिस द्वारा लाइब्रेरी में घुसने और लाठीचार्ज करने की बात से इनकार किया गया था, हालांकि 16 फरवरी को सामने आए एक वायरल वीडियों में पुलिस लाइब्रेरी के अंदर नजर आयी थी. इसी शाम एक दिल्ली पुलिस द्वारा एक अन्य वीडियो जारी किया गया था, जिसमें उनके अनुसार ‘दंगाई’लाइब्रेरी में घुसे थे. इस वीडियो में कई छात्र लाइब्रेरी में घुसकर दरवाजे के आगे फर्नीचर लगाकर उसे ब्लॉक कर रहे थे. इनमें से केवल एक व्यक्ति मास्क पहने दिखता है, वहीं एक अन्य शख्स के हाथ में कोई चीज है, जिसे पुलिस द्वारा ‘पत्थर’बताया जा रहा है. बीते 16 फरवरी को इंडिया टुडे द्वारा इसी वीडियो को ‘एक्सक्लूसिव’फुटेज बताते हुए चलाया गया. इंडिया टुडे को यह फुटेज दिल्ली पुलिस की विशेष जांच दल द्वारा दिया गया था, जिसे उसने ‘प्रमाणिक’ कहकर चलाया और यह दावा किया गया कि छात्र पत्थर लेकर लाइब्रेरी की रीडिंग रूम में घुसे थे.
वहीं दूसरी ओर जामिया में पढ़ने वाले लॉ के छात्र मोहम्मद मिन्हाजुद्दीन हैं. इससे पहले 15 दिसंबर की रात जब जामिया की लाइब्रेरी में घुसकर तड़ीपार गृहमंत्री के निर्देश पर पुलिस और अर्धसैनिक बल लाठियाँ मार रहे थे, उसी वक़्त इनकी एक आँख बुरी तरह ज़ख्मी हो गई. ज़ख्म इतना गहरा था कि उस आँख की रौशनी चली गई. ये उस वक़्त लाइब्रेरी में बैठकर एक कॉन्फ्रेंस पेपर लिख रहे थे. आज उसी पेपर को कॉन्फ्रेंस का बेस्ट पेपर अवार्ड मिला है. बेस्ट पेपर अवार्ड मिलने के बाद यह साबित हो गया कि सपनों व स्वर्णिम ख़्वाबों की रोशनी छीनकर अंधेरा फैलाने वालों की मंशा रखने वाले हारेंगे और उजियाला जीतेगा.
गौरतलब है कि दिसंबर महीने में शुरु हुए नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के बाद देश में मामला तूल पकड़ते नज़र आया. जिसके बाद माहौल बिगड़ता ही चला गया. केंद्र सरकार की ओर से भी प्रदर्शनकारियों से कोई सीधी बातचीत नही की गई. साथ ही पुलिस ने छात्रों को बड़ी ही बरहमी से पीटा. कई छात्रों को तो गंभीर हालत में तुरंत अस्पताल रेफर किया गया. ऐसी बर्बरता देखने के बाद तो एक ही ख्याल आता है, देश की ऐसी हालत शायद ही कभी हुई हो जो अब हो रही है.
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