महान वीरांगना झलकारी बाई के इतिहास को भी जाति के कारण छूत लग गई, पढ़िए दिपाली तायड़े का लेख
एससी-एसटी हो ?…तो जाति के कारण इतिहास को भी छूत लगती है।” इसलिए इतिहास लक्ष्मीबाई को महान वीरांगना मर्दानी कह-कह कर अघाता नहीं है और कोरी जाति की बहुजन वीरांगना झलकारी बाई के नाम पर मौन धारण कर लेता है,…क्योंकि नाम लेने से भी छूत लग जाती है।
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की महान वीरांगना “झलकारी बाई” का जन्म 22 नवम्बर 1830 को हुआ था। तत्कालीन समय में झलकारी बाई को औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर तो नहीं मिला किन्तु वीरता और साहस का गुण उनमें बालपन से ही दिखाई देता था। किशोरावस्था में झलकारी की शादी झांसी के पूरनलाल से हुई जो रानी लक्ष्मीबाई की सेना में तोपची थे। झलकारीबाई शुरुआत में घेरलू महिला थी पर बाद में धीरे–धीरे उन्होंने अपने पति से सारी सैन्य विद्याएं सीख ली और एक कुशल सैनिक बन गईं। झलकारी की प्रसिद्धि रानी झाँसी भी पहुँची और उन्होंने उसे सैनिक बना दिया।
झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना के महिला दस्ते दुर्गा दल की सेनापति थी, उनकी वीरता के चर्चे दूर-दूर तक थे। शस्त्र संचालन और घुड़सवारी में निपुण साहसी योद्धा झलकारी की शक़्ल लक्ष्मीबाई से हूबहू मिलती थी। डलहौज़ी की हड़प नीति के तहत अप्रैल,1858 में जब झाँसी राज्य को हड़पने के लिए जनरल ह्यूगरोज़ ने झाँसी पर आक्रमण किया तब लक्ष्मीबाई ने कुछ समय युद्ध का नेतृत्व किया, अपने सेनानायक दूल्हेराव के धोखे के कारण जब झाँसी किले का पतन निश्चित हो गया तो लक्ष्मीबाई अपने विश्वस्त सैनिकों के साथ किले से भाग गई और युद्ध का नेतृत्व झलकारी ने अपने हाथों में ले लिया। उसने लक्ष्मीबाई की तरह वेश धारण करके सेना की कमान संभाली और डटकर अंग्रेजों का मुकाबला किया। इसी बीच पीछे से लक्ष्मीबाई किले से भागकर बहुत दूर चली गई।
किले की रक्षा करते हुए झलकारी का पति पूरन भी शहीद हो गया। पति की लाश देखकर भी बिना शोक मनाने की बजाय बिना विचलित हुए उन्होंने सेना का नेतृत्व किया और किले से निकल कर जनरल ह्यूगरोज़ के शिविर में पहुँची। पहले झलकारी को ही रानी झाँसी समझा गया बाद में यह भेद भी खुल गया। जब ह्यूरोज़ ने उनसे पूछा कि उनके साथ क्या किया जाना चाहिए तो झलकारी ने जवाब दिया कि मुझे फाँसी दे दी जाए।
झलकारी की नेतृत्व क्षमता और साहस देखकर ह्यूगरोज़ भी दंग रह गया। उसने झलकारी के सम्मान में कहा था कि-‘ यदि भारत की 1% महिलाएँ भी झलकारी की जैसी हो जाएं तो ब्रिटिशों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा। बाद में झलकारी को फाँसी दे दी गई या रिहा कर दिया गया जिसकी पुख़्ता सूचना नहीं मिलती। उनके संदर्भ में इससे ज्यादा जानकारी नहीं मिलती।
इतिहास वैसा नहीं है जैसा लिखा हुआ मिलता है। इतिहासकारों ने जो कि सभी सवर्ण थे, इतिहास लिखने में जमकर जातिवाद किया। उन्होंने कलम के बूते इतिहास तोड़ने-मरोड़ने के साथ ही ब्राह्मणवाद को मजबूत करने और बहुजनों की सांस्कृतिक विरासत को खत्म करने का काम किया है।
#WeAreBecauseTheyWere
#BahujanPride
लेखक- दिपाली तायड़े, सोशल एक्टीविस्ट
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