Home International दिल्ली में बैठे नहीं, कस्बों के पत्रकारों को है धोखा?

दिल्ली में बैठे नहीं, कस्बों के पत्रकारों को है धोखा?

भारत में पत्रकारिता के नाम पर जो कुछ नाम मात्र का बचा-खुचा है, वह छोटे शहरों और कस्बों में काम कर रहे पत्रकारों की वजह से है, जो सिस्टम का पुर्जा बन नहीं पाए हैं, या सिस्टम ने जिन्हें अब तक अपना पुर्जा बनाया नहीं है. हो सकता है कि पत्रकारिता के कुछ आदर्श, कुछ normative values अब भी वहां बचे हों. छोटी जगहों पर खबर छिपाना मुश्किल भी होता है क्योंकि पब्लिक जानती है.

मिर्जापुर में मिड डे मील के नाम पर नमक रोटी दिए जाने की खबर का पर्दाफाश करने वाले के काम का प्रेस कौंसिल, एडीटर्स गिल्ड और तमाम संस्थाओं को संज्ञान लेना चाहिए और उन्हें सम्मानित करना चाहिए. उनके खिलाफ दर्ज FIR वापस होनी चाहिए. ये वो पत्रकार हैं, जिनकी जान सचमुच जोखिम में होती है. दिल्ली में आज तक किसी पत्रकार, संपादक, एंकर की जान खबर लिखने या बताने के कारण नहीं गई है. जाएगी भी नहीं.हम दिल्ली वाले बहुत ही सुरक्षित माहौल में जी रहे हैं. हम दर्जनों आईपीएस अफसरों को निजी तौर पर जानते हैं. उनके साथ खाते-गपशप करते हैं. हमारे पास वकील हैं. हम सुरक्षित अपार्टमेंट में रहते हैं. दफ्तर के दरवाजों पर गार्ड खड़े रहते हैं. हमारे लिए बोलने वाले बेशुमार लोग हैं. दिल्ली या राजधानियों में बैठे हम जैसे संपादक, पत्रकार या एंकर जब भय की बात करते हैं तो वह हमारी स्ट्रेटजी होती है, यह बताने के लिए कि देखिए हम कितना जोखिम लेकर आपको खबर दे रहे हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

Remembering Maulana Azad and his death anniversary

Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…