जन्मदिन विशेष: जानिए कौन थे बहुजनों के सम्मान के लिए लड़ने वाले कर्पुरी ठाकुर
By ~ जयंत जिज्ञासु
देश के बहुजनों के जीवन को सम्मानजनक बनाने के लिए आजीवन संघर्षरत…
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर को उनके जन्म दिवस (24 January 1924) पर सादर नमन…!!!
कर्पूरी ठाकुर : एक राजनीतिक योद्धा जिसने अपमान का घूंट पीकर भी बदलाव की इबारत लिखी कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री रहते हुए ही… बिहार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण लागू करने वाला देश का पहला सूबा बना था। सादगी के पर्याय कर्पूरी ठाकुर लोकतंत्र की स्थापना के हिमायती थे…
उन्होंने अपना सारा जीवन इसमें लगा दिया था…
वे मानते थे के समाज के दबे कुचले वंचित समुदाय को आत्मसन्मान मिले बगैर सशक्त लोकतंत्र स्थापित नहीं किया जा सकता
इसके लिए ऊंचे तबकों ने एक बड़े वर्ग ने भले ही कर्पूरी ठाकुर को कोसा हो… माँ बहन की गालियाँ दी हो… उनकी नाइ जाति को निशाना बनाते हुए यह कहा हो की…
“कर कर्पूरी कर पूरा… छोड़ दे गद्दी धर उस्तरा” लेकिन वंचितों ने उन्हें सर माथे बिठाया. इस हद तक कि 1952 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार विधायक बने थे..
1967 में जब पहली बार नौ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ तो महामाया प्रसाद के मंत्रिमंडल में वे शिक्षा मंत्री और उपमुख्यमंत्री बने, पहलीबार 1970 में मुख्यमंत्री बने… दूसरी बार 1977 में वो मुख्यमंत्री बने… और 1984 के एक अपवाद को छोड़ दें तो वे कभी चुनाव नहीं हारे.
1970 में 163 दिनों के कार्यकाल वाली कर्पूरी ठाकुर की पहली सरकार ने कई ऐतिहासिक फ़ैसले लिए. आठवीं तक की शिक्षा मुफ़्त कर दी गई. उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्ज़ा दिया गया सरकार ने पांच एकड़ तक की ज़मीन पर मालगुज़ारी खत्म कर दी.
जब 1977 में वे दोबारा मुख्यमंत्री बने तो…
एस-एसटी के अलावा ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला बिहार देश का पहला सूबा बना. महिला आरक्षण देने वाले भी पहले राजकर्ता बने.
11 नवंबर 1978 को उन्होंने महिलाओं के लिए तीन, अन्य वर्ग के लिए तीन और पिछडों के लिए 20 फीसदी यानी कुल 26 फीसदी आरक्षण की घोषणा की.
वे सादगी का पर्याय थे…
“1952 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार विधायक बने थे. उन्हीं दिनों उनका आस्ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल में चयन हुआ था. उनके पास कोट नहीं था. तो एक दोस्त से कोट मांगा गया. वह भी फटा हुआ था. खैर, कर्पूरी ठाकुर वही कोट पहनकर चले गए. वहां यूगोस्लाविया के मुखिया मार्शल टीटो ने देखा कि कर्पूरी जी का कोट फटा हुआ है, तो उन्हें नया कोट गिफ़्ट किया गया.”
इसी तरह एक और किस्सा है कि
“प्रधानमंत्री चरण सिंह उनके घर गए तो दरवाज़ा इतना छोटा था कि चौधरी जी को सिर में चोट लग गई. पश्चिमी उत्तर प्रदेश वाली खांटी शैली में चरण सिंह ने कहा, ‘कर्पूरी, इसको ज़रा ऊंचा करवाओ.’ जवाब आया, ‘जब तक बिहार के ग़रीबों का घर नहीं बन जाता, मेरा घर ऊँचा बनवाने से क्या होगा?”
उन्होंने निजी और सार्वजनिक जीवन, दोनों में आचरण के ऊंचे मानदंड स्थापित किए थे.
वे आत्मसन्मान की लड़ाई को व्यवस्थापरिवर्तन की लड़ाई ही मानते थे
इसीलिए तो वे कहते थे की
‘आर्थिक दृष्टिकोण से आगे बढ़ जाना, सरकारी नौकरी मिल जाना, इससे आप क्या समझते हैं कि समाज में सम्मान मिल जाता है? जो वंचित वर्ग के लोग हैं, उसको इसी से सम्मान प्राप्त हो जाता है क्या? नहीं होता है.’
आगे वे अपना उदाहरण देते हुए कहते थे की….
वे मैट्रिक में फर्स्ट डिविज़न से पास हुए थे. उनके बाबूजी जो नाई का काम करते थे वे उन्हें गांव के समृद्ध वर्ग के भूमिहार के पास लेकर गए और कहा, ‘सरकार, ये मेरा बेटा है, फर्स्ट डिविजन से पास किया है.’ उस आदमी ने अपनी टांगें टेबल के ऊपर रखते हुए कहा, ‘अच्छा, फर्स्ट डिविज़न से पास किए हो? चलो मेरा पैर दबाओ.’
इसीलिए केवल आर्थिक दृष्टिकोण से आगे बढ़ जाना या बौधिक योग्यता में आगे बढ़ जाने मात्र से सम्मान मिल जायगा इस बात पर उनका विशवास नहीं था…
उनका विशवास यह था की जब तक पिछड़े अपनी व्यवस्था का निर्माण नहीं करते तब तक उनको सम्मान नहीं मिलेगा.
इस तरह की तमाम चुनौतियों से पार पाते हुए कर्पूरी ठाकुर आगे बढ़े. ऐसे थे जननायक कर्पूरी ठाकुर… उनको उनके जन्म दिवस (२४-०१-१९२४) पर सादर नमन
~ जयंत जिज्ञासु
(लेखक के अपने विचार हैं)
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