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Social - State - Uttar Pradesh & Uttarakhand - January 31, 2018

कासगंज हिंसा के सहारे चुनाव 2019 के एजेंडे की तैयारी ?

Aqil Raza ~

2014 में हुए लोकसभा के वो चुनाव जिसमें चारो तरफ एक ही माहौल नजर आता था, या यूं कहिए कि उस माहौल को उन बुनियादी चीज़ों को लेकर तैयार किया गया था। और सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने दावे को मजबूत करने में लगी थी जिसमें सबसे ज्यादा वादे अगर जनता के लिए नज़र आ रहे थे तो वो बीजेपी सरकार के थे, अगर हम उन वादों की बात करें तो कुछ इस तरह थे, सबका साथ सबका विकास, सभी को रोज़गार, डिजिटल गांव, शिक्षा और सबसे ज़रूरी राम मंदिर का मुद्दा भी शामिल था।

भारत के मतदाता ने भरोसा दिखाया और एनडीए सरकार भारत में बन गई। अब ज़रा याद करिए जो वादे उस समय भारतीय जनता पार्टी ने किए थे वो किस हद तक पूरे हुए हैं, आंकड़ो में अगर आप जाने की बात करेंगे तो खुद समझ नहीं पाएंगे की देश में क्या क्या हुआ और कैसा चल रहा है। तो फिर समझने के लिए आप अपने पास की चीज़ों को देखिए और सोचिए कि जो आपके परिवार में पढ़ा लिखा बैठा है उसके लिए सरकार ने कुछ किया क्या…उस जैसे तमाम लोगों के लिए नौकरी की व्यवस्था की क्या.. ये सोचने से आपको थोड़ा बहुत तो समझ में आ ही जाएगा कि कथनी और करनी में कितना अंतर होता है।

हमने आपको एक उदाहरण बेरोजगारी का दिया अब आप इसी तरह हर उस वादे को याद करिए जिसके लिए आपने अपना वोट देकर सत्ता पर बैठाया था। ये हम नहीं कहेगें की बीते इन तकरीबन 4 सालों में किस चीज़ पर मोदी सरकार ने प्राथमिकता दी है, ये आपको हमारे देश में हो रही घटनाएं और उन चर्चित और गर्म मुद्दो से पता चल जाएगा जिनके ऊपर ये नेता अपनी अपनी सियासत की रोटियां सेंकते हैं।

हम आपको बताते चलें की 2014 से अब तक कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, और इन राज्यों के चुनावों के दौरान भी क्या क्या वादे हुए थे इसपर भी अपनी बुद्धी को घुमाने की ज़रूरत है, इन चुनावों के रिजल्ट क्या आए, ये भी आपके सामने हैं। इन राज्यों में सरकार बनने के बाद से राज्य सरकारों ने किस काम को प्राथमिकता दी, अगर हम बात करें उत्तर प्रदेश की तो कहीं पर भी रोज़गार, शिक्षा, या विकास की बात नहीं दिखी।

यूपी में योगी सरकार के बनने के बाद अगर बहस हुई तो वो हिंदू कि, मुसलमान की, मंदिर की और मस्जिद की. और ये मुद्दे मैनस्ट्रीम मिडिया पर भी छाए रहे वो इसलिए कि आप लोग शायद उसको ज्यादा तरज़ीह देते होंगे, और चैनल की टीआरपी इन मुद्दों से ज्यादा आती होगी लेकिन ये बात तो साफ है कि इन मुद्दों से हमारे देश का तो एक फीसदी भी भला होने वाला नहीं हैं।

हालंकि इनमें और भी कई मुद्दे शामिल हैं राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद, गौरक्षा, ताजमहल पर सियासत लेकिन कहीं भी बेरोज़गारी से लड़ रहे पढ़े लिखे गरीबों, युवाओं को नहीं दिखाया जाता है, हो सकता है इन मुद्दे से चैनल के लिए टीआरपी नहीं आती हो।

लेकिन अब आपको समझना पढ़ेगा कि जब देश में सारे मुद्दे खत्म हो गए तो किस चीज़ पर राजनीति हो, ये उन नेताओं के लिए बड़ा सवाल है, जिनका मतलब सिर्फ सत्ता और सिंघासन से होता है। लेकिन जब लोग जागरुक हो जाते हैं और सरकार से रोज़गार मांगते हैं तो इस तरह के दंगे सामने आ जाते हैं जिसके चलते उनकी आवाज़ को दबा दिया जाता है।

इन दंगो से आम जनता को नुकसान के अलावा तो कुछ नहीं होता लेकिन शायद इन्हीं दंगो की वजह से राजनेताओं को एक दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का मौका मिल जाता है, और आगामी चुनाव में बोले जाने भाषण के लिए इन दंगो को शामिल कर लिया जाता है। उस वक्त हम और आप भी उन नेताओं की वाहवाही लूटने में लग जाते हैं और पिछले वादों को भूल जाते हैं।

लेकिन सवाल इस बात का है कि क्या इस तरह के दंगे जो हमारे देश में हो रहे हैं वो लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है, क्या ये दंगे नेताओं के लिए चुनाव में काम आने वाली सीढी हैं अगर ऐसा है तो वाकई अफसोस की बात है, क्योंकि इन दंगो में मरने वाला एक आम आदमी था, वो हिंदू और मुस्लिम होने से पहले किसी मां का बेटा था, किसी बाप के बुढापे का सहारा था, और इस देश का जलता हुआ चिराग था।

देश में हुए ऐसे हर एक दंगे में अगर कुछ खत्म हो रहा है तो वो लोगों कि इंसानियत खत्म हो रही है. इसलिए ये समझना ज़रूरी है कि किसी के फायदे के लिए धर्म के नाम आगामी चुनाव में इस्तेमाल होने वाला मोहरा बनने से परहेज़ करें। ये कोशिश करें कि इस देश में रहने वाला हर एक नागरिक आपका भाई है चाहे वो कोई भी धर्म से ताल्लुक रखता है, वो आपके काम आ सकता है, लेकिन धर्म के नाम पर सियासत करने वाले शायद आपके काम नहीं आ सकते।

इसका उदाहरण आपको कासगंज हिंसा में मिल जाएगा, कि चंदन गुप्ता की शोक सभा में शामिल होने गए बीजेपी के नेताओं की मुस्कुराहाट खत्म नहीं हुई थी, इस मुस्कुराहट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनको इस मौत का कितना गम था। क्या यह नेता 2019 के चुनाव के लिए इस घटना का फायदा उठाएंगे…क्योंकि ये आप बेहतर जानते हैं कि किसी अपने के जाने का दर्द क्या होता है कोई नेता नहीं। बेहतर है कि आप अपने रोज़गार के लिए लड़े, शिक्षा के लिए लड़े, विकास के लिए लड़े, और धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों का बहिष्कार करें.. क्योंकि चुनाव 2019 आने वाला है।

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