Home Social Politics हम “कांशीराम साहेब”के विरासत को कैसे याद करेंगे “बसपा संस्थापक या बामसेफ संस्थापक” के तौर पर?
Politics - Social - March 15, 2019

हम “कांशीराम साहेब”के विरासत को कैसे याद करेंगे “बसपा संस्थापक या बामसेफ संस्थापक” के तौर पर?

By – ले.प्रवीण प्रियदर्शी

बामसेफ संस्थापक कांसीराम साहेब को भले ही बसपा के लोग उन्हें 3-4 दसक में भूल जाएं परंतु बामसेफ के प्रशिक्षण शिविरों में कांसीराम/खापर्डे/दिनाभाना साहेब हमेशा चिरस्थायी बने रहेंगे।
मेरा अध्ययन/अनुभव ऐसा कहता है कि लोग राजनीतिक शक्ति/राजनेता को जितना तेजी से ग्रहण करते हैं उतना तेजी से उनके योगदान को भूला दिए जाते हैं।जैसे गांधी जी, नेहरू जी को जितना आरएसएस याद नही करता उतना बलिराम हेडगेवार, गोलवलकर,सावरकर आदि को याद करता है।इसका कारण है कि गांधी, नेहरू,जेपी ,लोहिया आदि जैसे नेताओं ने सांगठनिक शक्ति के बजाय उन्होंने राजनीतिक/सामाजिक धुर्वीकरण करना ज्यादा महत्वपूर्ण समझा ।उन्होंने सड़क से संसद के मार्ग को अपनाया न कि संगठन से संसद के मार्ग को अपनाया। जिन्होंने सामाजिक/सांगठनिक शक्ति से संसद के मार्ग को अपनाया है वह इतिहास में चिरस्थायी बने रहेंगे ।

आरएसएस जहाँ अपनी शख्शियतों का बारबार प्रचार कर उसकी विचारों को पुनर्जीवित करते रहता है,उनके गैर मानवीय आंदोलन को सांस्कृतिक आंदोलन के नाम पर बहुसंख्यक समुदाय को दिशाविहीन/दिग्भ्रमित करता रहता है वहीं दूसरी ओर बामसेफ मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए निरंतर अपने महापुरुषों के आंदोलनों को बड़े गर्व के साथ समाज जीवन में बताते रहती है।महापुरुषों की श्रेणी में हमेशा त्रिमूर्ति खापर्डे साहेब/कांशीराम साहेब दिनाभाना साहेब को कभी भुलाया नहीं जा सकता ।भविष्य में कांशीराम साहेब बसपा संस्थापक के नाम से कम अपितु बामसेफ के नाम से सम्पूर्ण विश्व में जाने जाएंगे।चूंकि राजनीतिक संक्रमणशीलता के दौर में लोग अपनी राजनेता को किसी एक दौर तक ही उसका स्मरण करते हैं।समयांतराल उनकी राजनीति दुश्मनों/वैमनस्य/अराजकता के साथ वैचारिक समझौता करने के लिए मजबूर हो जाती है और फलस्वरूप वह आंदोलन मिशन से कमीशन की ओर तब्दील हो जाता है।

राजनीतिक धरातल पर जहाँ जनसंघ संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के योगदान फिर पुनः1980में बीजेपी के नवनिर्माण कर अटल-आडवाणी के योगदान को उस दौर तक ही याद किया जा सकता है।2014-2019में मोदी-शाह के कार्ड को अपनी राजनीतिक के लिए ब्राह्मणो के द्वारा इस्तेमाल की विवर्चना ने मोदी को अहमियत देना शुरू कर दिया और पुनः अटल बिहारी वाजपेयी के ब्रह्मिनिकल आंदोलन को दरकिनार कर दिया।नए राजनीतिक दौर में नए कीर्तिमान स्थापित किये जा सकते हैं आज माया,मुलायम, लालू जी का दौर हैं तो कल तेजस्वी यादव जैसे अन्य नेताओं के द्वारा नए कीर्तिमान स्थापित किया जा सकता है।फिर पुनः एक निश्चित दौर के साथ उनकी ख्याति का नया कीर्तिमान कोई दूसरा ले सकता है।

अंततः इस श्रृंखला में कांशीराम साहेब के योगदान को बसपा सुप्रीमो मायावती तथा बसपा समर्थक उनके आंदोलन को कैसे पुनर्स्थापित करते हैं ये देखना बड़ा दिलचस्प रहेगा।उन्होंने अगर ब्राह्मणो के साथ वैचारिक समझौता किया है तो निश्चित रूप से कांशीराम साहेब के राजनीतिक आंदोलन की विरासत के साथ धोखेबाजी है और कांशीराम साहेब को भुलाने में भी ज्यादा देर नही लगेंगी।सामाजिक कार्यकर्ता/संगठन शक्ति के जन्मदाता के तौर पर हमेशा कांशीराम साहेब अपने बामसेफ के प्रशिक्षण शिविरों में स्मरण किये जायेंगे।यह स्मरण शशक्त व दीर्घकाल तक चिरस्थायी बना रहेगा।

“ये लेखक के अपने स्वतंत्र विचार हैं।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

बाबा साहेब को पढ़कर मिली प्रेरणा, और बन गईं पूजा आह्लयाण मिसेज हरियाणा

हांसी, हिसार: कोई पहाड़ कोई पर्वत अब आड़े आ सकता नहीं, घरेलू हिंसा हो या शोषण, अब रास्ता र…