Home Opinions मान्यवर कांशीराम और पसमांदा मुस्लिम
Opinions - Politics - Schedules - Social - State - September 15, 2018

मान्यवर कांशीराम और पसमांदा मुस्लिम

 

“मुसलमानों में मैंने नेत्रत्व के स्तर से जाना ठीक समझा. उनके 50 नेताओं से मैं मिला इनमें भी ब्राहम्ण्वाद देखकर मैं दंग रह गया. इस्लाम तो बराबरी और अन्याय के खिलाफ लड़ना सिखाता है लेकिन मुसलमानों का नेत्रत्व शेख़, सय्यद, मुग़ल, पठान यानि अपने को ऊंची जाती का मानने वाले लोगों के हाथ में है, वह यह नहीं चाहते कि अंसारी, धुनिया, कुरैशी उनकी बराबरी में आयें.

इलाहाबाद के उपचुनाव (1988) में यह बात एक दम साफ तौर पर उभरकर आई. विश्व हिन्दू परिषद, आरएसएस, बजरंग दल, भाजपा और राम जन्म भूमि मुक्ति समिति यानि हिन्दू कट्टरवादी और मुस्लिम लीग, मुस्लिम मजलिस, जमात-ए-इस्लामी, मौलाना बुखारी और सय्यद शहाबुद्दीन की बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी यानि मुस्लिम कट्टरपंथी वी. पी. सिंह को जिताने और कांशीराम को हराने के लिए कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे थे. यहाँ पर दोनों का हित एक ही था. कांशीराम के जीतने से सवर्ण हिन्दू और सवर्ण मुसलमान दोनों को अपनी कुर्सी पर हमला होने की आशंका थी. इस चुनाव के बाद मैंने फैसला किया कि मुसलमानों में हिंदुओं की अनुसूचित जातियों से गए लोगों को ही तैयार किया जाए”.

–मान्यवर कांशीराम

(स्रोत: सतनाम सिंह, “कांशीराम की नेक कमाई जिसने सोती कौम जगाई”, गौरव प्रकाशन)

Translation

“I thought it was better to contact Muslims through their leadership. After meeting about 50 Muslim leaders I was astonished to witness their Brahmanism. Islam teaches us to establish equality and struggle against injustice but the leadership of Muslims is dominated by so-called high castes like Syeds, Sheikhs, Mughals and Pathans. The latter do not want the [subordinated Muslim castes like] Ansaris, Dhuniyas, Qureshis to rise to their levels.

In the Allahabad by-election (1988) this became very clear. Hindu fundamentalists like the Vishwa Hindu Parishad, RSS, Bajrang Dal, BJP and Ram Janambhumi Mukti Samiti and Muslim fundamentalists like the Muslim League, Muslim Majlis, Jamaat-e-Islami, Maulana Bukhari and Syed Shahabuddin were marching together to ensure the victory of V. P. Singh and the defeat of Kanshiram. Here both shared the same interests. Both the savarna Hindus and savarna Muslims were anxious that with the victory of Kanshiram their positions could be threatened. After this election I decided to groom only those Muslims who had converted from Hindu SC communities [Pasmanda Muslims] for leadership.”

–Manyawar Kanshiram

Translated by Prof Khalid Anis Ansari
khalidanisansari@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

बाबा साहेब को पढ़कर मिली प्रेरणा, और बन गईं पूजा आह्लयाण मिसेज हरियाणा

हांसी, हिसार: कोई पहाड़ कोई पर्वत अब आड़े आ सकता नहीं, घरेलू हिंसा हो या शोषण, अब रास्ता र…