नागरिकता संशोधन कानून बीजेपी के गैर संवैधानिक रवैये को जायज ठहराने वाला कानून है।
BY: Khalid Ansari
यह भ्रम फैलाया जा रहा है की नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) तो ठीक है क्योंकि इससे नागरिकता दी जाती है ली नहीं जाती. इस कारण इससे देश के किसी नागरिक को घबराने heकी ज़रुरत नहीं है क्योंकि उनके ऊपर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा. बीजेपी इस तर्क को लेकर जनसंपर्क में निकलने वाली है. इस लाइन के समर्थन में अजमेर दरगाह के दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन और जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी पहले ही उतर चुके हैं. जैसे की कई लेखक पहले आगाह कर चुके हैं इस कानून का मूल्यांकन सिर्फ तात्कालिक नफा-नुकसान के बजाय संवैधानिक मूल्यों और दूरगामी परिणामों के आधार पर किया जाना चाहिए.
जैसे कि हम जानते हैं इस कानून में बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है.
बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान ही क्यों? यह छह अल्पसंख्यक समुदाय ही क्यों?
*पहला तर्क: इन देशों को इस लिए चुना गया क्योंकि भारत-पाकिस्तान विभाजन से इन देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों पर असर पड़ा है.
सवाल: पाकिस्तान और बांग्लादेश समझ में आता है. अफ़ग़ानिस्तान क्यों? अफ़ग़ानिस्तान तो ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा कभी नहीं रहा.
*दूसरा तर्क: यह देश धर्मतंत्र हैं (इन देशों में राज्य का धर्म है) और धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करते हैं.
सवाल: श्रीलंका और भूटान भी धर्मतंत्र हैं और इनका राज्य धर्म बुद्धिज़्म है. इनको क्यों नहीं शामिल किया? श्रीलंका में तो धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ प्रताड़ना का लम्बा इतिहास है. यहाँ पर ख़ामोशी क्यों? पाकिस्तान में अहमदियों को मुसलमान नहीं माना जाता और उनको लगातार धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जाता है. नास्तिकों और सेकुलरिस्टों को पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश में लगातार धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जाता है. यहाँ पर चुप्पी क्यों?
*तीसरा तर्क: इन देशों के बॉर्डर भारत से मिलते हैं.
सवाल: बॉर्डर तो बर्मा का भी मिलता है. बर्मा में बहुसंख्यक बौद्धों ने अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों का क़त्ल-ए-आम भी किया है. बर्मा को क्यों नहीं चुना?
बात साफ़ है. सरकार ने सिर्फ वह राष्ट्र चुने हैं जहाँ पर इस्लामिक धर्मतंत्र है. इन राष्ट्रों में भी वह सारे ग्रुप्स/तबके नहीं चुने हैं जो धार्मिक कारणों से प्रताड़ित होते हैं. धर्म के आधार पर भेदभाव संविधान के स्पिरिट और लेटर के खिलाफ है. CAA नागरिकता को धर्म से जोड़ता है जिसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे. CAA को लागू करने के पीछे सरकार की मंशा राजनीतिक है नैतिक नहीं, प्रत्यक्ष बहुसंख्यकवाद है, न्याय नहीं. इस लिए CAA का जनतांत्रिक और अहिंसात्मक विरोध जारी रहना चाहिए जब तक सरकार इसे वापस नहीं लेती या ज़रूरी संशोधन नहीं करती.
~ खालिद अनिस अंसारी
( ग्लोकल यूनिवर्सिटी, यूपी)
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