लॉकडाउन के कारण चरमराती अर्थव्यवस्था, सरकार पर उठाती सवाल ?
लॉकडाउन के चौथे चरण में चरमराती अर्थव्यवस्था को देखते हुए मोदी सरकार ने 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान किया. इस पैकेज में बताया गया कि ये राहत पैकेज msme को फायदा देगा. लेकिन CMIE के चीफ महेश व्यास का कहना है कि इस पैकेज में समाधान कम और समस्याएं ज्यादा हैं.
दरअसल, CMIE एक संस्था है, जो बेरोजगारी पर डेटा जारी करती है. लॉकडाउन, इकनॉमी, बेरोजगारी और प्रवासी मजदूरों की समस्या पर द क्विंट पर चीफ महेश व्यास ने बताया कि सरकार लॉकडाउन के बुरे असर से देश की इकनॉमी को बचाने के लिए 20 लाख करोड़ का पैकेज लेकर आई, लेकिन CMIE के चीफ महेश व्यास का कहना है कि इस पैकेज में समाधान कम और समस्याएं ज्यादा हैं. व्यास की दलील है कि एक तो ये पैकेज इतना बड़ा नहीं है जितना बताया जा रहा है, लेकिन उससे भी बड़ी बात ये है कि इसमें ज्यादातर कर्ज का प्रावधान है. समस्या ये है कि जो लोग, जो बेरोजगार और जो छोटे उद्योग पहले से ही मुसीबत में हैं वो कर्ज कैसे लेंगे और लेंगे तो फिर चुकाएंगे कैसे. तो ये लोगों को कर्ज में डालने का प्लान है.
महेश व्यास ने आगे कहा कि अगर इकनॉमी को रिस्टार्ट करना है तो कर्ज नहीं रोजगार देना होगा, बाजार में डिमांड पैदा करनी होगी. MSME को कर्ज देने से फायदा नहीं होगा, क्योंकि डिमांड में कमी के कारण उन्हें ग्राहक नहीं मिलेगा, जब ग्राहक नहीं होंगे तो कंपनियां रोजगार भी नहीं दे पाएंगी.
बड़ी कंपनियों के बारे में व्यास ने कहा कि कंपनियां मुनाफा तो बना रही हैं लेकिन निवेश नहीं कर रही हैं. 2008-09 में 26-27 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव थे, अब वो गिरकर 11 लाख करोड़ रह गए हैं. आप इससे समझ लीजिए कि इकनॉमी कहां जा रही है. महेश व्यास कहते हैं कि वाजपेयी सरकार के समय भी कम डिमांड की समस्या हुई थी, तब उन्होंने हाईवे प्रोजेक्ट शुरू कर इकनॉमी में जान फूंकी. इसी तरह 2004 में मनमोहन सरकार के समय SEZ नीति लाकर सरकारी खर्च बढ़ाकर इकनॉमी को चालू किया गया. ऐसे ही तत्काल सरकार को उनसे सीख लेकर कोई बड़ा कदम उठाना चाहिए.
CMIE के मुताबिक, सरकार को गरीबों के हाथ में पैसा देंना चाहिए, लेकिन सरकार ये क्यों नहीं कर रही है, ये वही बता सकती है. एक परंपरा बन गई है कि वित्तीय घाटा नहीं होने देंगे. जब लॉकडाउन लगाकर हमने खुद इकनॉमी को बंद किया तो इसे हमें ही स्टार्ट करना होगा. इसके लिए सरकार को खर्च करना होगा. कर्ज लेना हो तो लें, नए नोट छापना हो तो छापें.
बता दें कि बेरोजगारी दर 27 फिसदी से ज्यादा बढ़ गया है. जिसे पटरी पर लाने के लिए लोगों को रोजगार देना होगा. जिसके चलते रेहड़ी वालों की दुकाने चलेंगी. और इसी तरह से अर्थव्यवस्था पर बल दिया जा सकता है. लिहाजा लॉकडाउन की वजह से काम में मंदी होने के कारण लाखों लोग बेरोजगार हो गए है. जिसके लिए मोदी सरकार को कोई बड़ी रणनीति के तहत कदम उठाना होगा.
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