जयंती विशेष: कहने को तो नाम ज्योति था मगर ज्वालामुखी थे ज्योतिबा राव…
By: JD Chandrapal
विमर्श। भारत के भावी इतिहास को प्रभावित करने के लिए उन्नीसवे एवं बीसवें शतक में पांच महत्वपूर्ण ग्रन्थ सार्वजनिक जीवन में अपना विशेष स्थान बना चुके थे। इन बहुचर्चित पांच ग्रंथो ने न केवल भारत के सामाजिक जीवन को प्रभावित किया बल्कि राजनितिक एवं सांस्कृतिक जीवन में भी खलबली मचा दी।
(1) मार्क्स-अन्गेल्स का सर्जन “कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” (1848)
(2) जोतीराव फुले का ग्रन्थ “गुलामगिरी” (1873)
(3) मोहनदास करमचंद गाँधी की किताब “हिन्द स्वराज” (1909)
(4) वि दा सावरकर की रचना “हिंदुत्व” (1923)
(5) बाबासाहब डॉ आंबेडकर का ग्रन्थ “एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट” (1936)
गौरतलब है कि “कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” में परिलक्षित मार्क्स का दर्शन भारतीय साम्यवादी पार्टीओं का वैचारिक आधार है, “हिन्द स्वराज” एवं “हिंदुत्व” में परिलक्षित दर्शन उसमे भी खास कर सावरकर का दर्शन भारतीय जनता पार्टी का वैचारिक आधार है। और “गुलामगिरी” एवं “एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट” में परिलक्षित फुले अम्बेडकरी दर्शन बहुजन समाज पार्टी का वैचारिक आधार है। आज इन्ही ग्रंथो के प्रभाव में भारत के समूचे सामजिक एवं राजनितिक जीवन में उथल पुथल मची हुई है। ज्योतिराव के विचारों और उनके सामाजिक क्रांतिवाद के दर्शन की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है।
“गुलामगिरी” (1873) के अलावा ज्योतिबा फुले की यह है प्रमुख रचनाएं
(1) तृतीय रत्नभ (नाटक 1855),
(2) छत्रपति राजा शिवाजी भोसले का पवडा(1869),
(3) ब्राह्मणों की चालाकी (1869)
(4) किसान का कोडा (1883),
(5) सत्सा र: अंक-1 और 2 (1885),
(6) चेतावनी (1885),
(7) अछूतों की कैफीयत (1885),
(8) सार्वजनिक सत्ययधर्म पुस्तवक (1889),
(9) सत्यवशोधक समाज के लिए उपयुक्त, मंगलगाथाएं तथा सभी पूजा विधि (जून 1887) तथा
(10) अखंडादि काव्यल रचनाएं है ।
और उनकी इन ग्रन्थ सम्पदा से उनका सामजिक क्रांतिवाद परिभाषित एवं परिलक्षित होता है और यह भी प्रतिपादित होता है कि कहने को उनका नाम ज्योति था मगर वे ज्वालामुखी थे।
ऐसे महामानव महात्मा जोतीराव फुले के बारे में बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर ने 28 अक्टूहबर,1954 को पुरूदर स्टेडियम, मुम्बई में भाषण देते हुए कहा है कि “तथागत बुद्ध तथा संत कबीर के बाद मेरे तीसरे गुरु ज्योतिबा फूले हैं, केवल उन्होंने ही मानवता का पाठ पढाया। प्रारम्भिक राजनीतिक आन्दोलन में हमने ज्योतिबा के पथ का अनुसरण किया । मेरा जीवन उनसे प्रभावित हुआ है ।“
इससे पहले 10 अक्टूणबर,1946 को डॉ. अम्बेडकर अपनी पुस्तक “शूद्र कौन थे ?” महात्माब फूले को समर्पित कर चुके थे और समर्पित करते हुए उन्होंने लिखा कि
” जिन्होंने हिन्दू समाज की छोटी जातियों को, उच्च वर्णों के प्रति उनकी गुलामी की भावना के सम्बन्धक में जागृत किया और जिन्होंने विदेशी शासन से मुक्ति पाने से भी सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना अधिक महत्व्पूर्ण है, इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उस आधुनिक भारत के महान शूद्र महात्मा फूले की स्मृाति में सादर समर्पित ।”
आज आधुनिक भारत की सामाजिक क्रांति के प्रणेता महात्मा ज्योतिबा राव फुले की 190वी जन्म जयंती है इस मंगल अवसर पर उनके शत शत नमन।
-जेडी चंद्रपाल
बाबा साहेब को पढ़कर मिली प्रेरणा, और बन गईं पूजा आह्लयाण मिसेज हरियाणा
हांसी, हिसार: कोई पहाड़ कोई पर्वत अब आड़े आ सकता नहीं, घरेलू हिंसा हो या शोषण, अब रास्ता र…