पश्चिम बंगाल में रार से सीख ये है कि सभी बहुजन समय रहते मुकाबले को तैयार हो जाएं
Published by- Aqil Raza
By- Dr. Manisha Banagar ~
लोकसभा चुनाव सिर पर है। सो लोहा गर्म है। केंद्र में सत्तासीन सरकार हथौड़ा मारने को बेताब है। लेकिन राजनीति में कोई भी चीज एकतरफा नहीं होती। राजनीतिक लोहा पलटकर वार भी करता है। कल पश्चिम बंगाल में जो हुआ, वह इसी का परिणाम है। ममता बनर्जी ने सीबीआई के अधिकारियों को थाने में बंदकर एक तरफ भाजपा को तमाचा मारा है तो इसका एक दूसरा पहलू भी है। इस एक घटना ने भारतीय संघीय व्यवस्था की समीक्षा के दरवाजे खोल दिए हैं।
यानी केंद्र और राज्य सरकारों के रिश्ते सामान्य नहीं रह गए हैं। केंद्र और राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार होने पर स्थिति कुछ ठीक भी हो सकती है, लेकिन यह तो साफ है कि यदि परिदृश्य विषम हुआ तो इसके परिणाम वही होंगे जो इन दिनों पश्चिम बंगाल में हो रहा है।
जाहिर तौर पर यह भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत है। पहले भी देश में ऐसी परिस्थितियां रही हैं कि केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें थीं। कई बार सवाल भी उठते थे। यहां तक कि एक पार्टी की सरकारें होने पर भी विवाद होता था। मसलन 1978 में ही जब कर्पूरी ठाकुर ने मुंगेरी लाल कमीशन की अनुशंसाओं को लागू करते हुए पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था तब केंद्र में सत्तासीन जनता पार्टी की सरकार उनके इसे निर्णय से खुश नहीं थी। जयप्रकाश नारायण का आरक्षण विरोध तो जगजाहिर है।
इससे पहले इंदिरा गांधी का तानाशाही रवैया भले ही सत्ता के केंद्रीकरण का परिचायक रहा, लेकिन भारत की आम अवाम ने इसे पूरी तरह ठुकरा दिया। वजह यह भी रही कि तब राजनीति इतनी सत्तापरक नहीं थी। लोग यह समझते थे कि पाकिस्तान की तरह फौजी हुकूमत कायम कर भारत को विकास के रास्ते पर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है।
लेकिन वर्तमान में जो हालात हैं वे इसी ओर इशारा करते हैं। संघ अपनी हुकूमत पूरे मुल्क में कायम करना चाहता है। वह हर राज्य को हिंदू राज्य बनाना चाहता है। जैसे कि पूर्व में हुआ करते थे। एक सम्राट होता था और प्रांतों के राजे-महाराजे। लेकिन वह यह भूल रही है कि उन दिनों भी सत्ता के लिए युद्ध होते थे और जान-माल के नुकसान भी होते थे। सम्राटों का सिंहासन भी उजड़ा था उन दिनों।
बहरहाल, ममता बनर्जी बीजेपी RSS के लिए एक चीफ मिनिस्टर ही नहीं तो एक ब्राह्मण महिला चीफ मिनिस्टर है. वे उन्हें उतनी हानि नहीं पहुंचा पाएंगे.
ममता बनर्जी ने जो किया है, वह एक उदाहरण मात्र है। यदि समय रहते देश के राजनीतिज्ञों ने इसे नहीं समझा ( खासकर बहुजन राजनीतिज्ञ और नेता ) तब जाहिर तौर पर भारत एक बार फिर टुकड़ों में बंटेगा और हर टुकड़े पर ब्राह्मण सवर्ण राज करेंगे। रह गए पूर्व अछूत और पिछड़े, तो उनके लिए फिर से वही मनुवादी सामाजिक व्यवस्था रहेगी। कमर में झाड़ू बांधे और गले में मटका , शिक्षा ,राजनिंतिक अस्त्र, अभिव्यक्ति के शस्त्र से दूर , पूरी तरह से बेदखल .
लिहाजन जरूरी है कि दलित बहुजन समय रहते मुकाबले को तैयार हो जाएं।
~ डॉ मनीषा बांगर
~सामाजिक राजनितिक चिंतक, विश्लेषक एवं चिकित्सक.
~राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पीपल पार्टी ऑफ़ इंडिया-डी ,
~पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बामसेफ
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