Home Social Politics बहन मायावती सुप्रीम कोर्ट की गीदड़ भभकी से न डरें

बहन मायावती सुप्रीम कोर्ट की गीदड़ भभकी से न डरें

Published by- Aqil Raza
By- Dr. Manisha Bangar ~

कल 8 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती पर टिप्पणी की। चूंकि यह उनका फैसला नहीं है, इसलिए कायदे से उनकी टिप्पणी की आलोचना की जा सकती है। उन्होंने कहा है कि मायावती को वह रकम लौटा देनी चाहिए जो उन्होंने अपनी मूर्तियों और हाथी की मूर्तियों के निर्माण में खर्च किया था। कोर्ट में अभियोजन पक्ष द्वारा बतायी गयी जानकारी के अनुसार यह रकम करीब 2000 करोड़ रुपए है। जस्टिस गोगोई ने यह टिप्पणी नौ साल पहले दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के क्रम में की।

इससे पहले कि हम इस पूरे मामले पर विस्तार से विचार करें, जरा कोर्ट रूम का जायजा ले लें। जिस जनहित याचिका पर कोर्ट ने टिप्पणी की है, वह याचिका दो ब्राह्मणों ने दायर की थी। मायावती की तरफ से दलीलें पेश करने वाला वकील भी ब्राह्मण था। टिप्पणी करने वाला जज भी ब्राह्मण।

अब आते हैं टिप्पणी पर। कोर्ट ने इस बात पर ऐतराज व्यक्त किया है कि मायावती ने अपनी मूर्तियों क्यों बनवाया। चलिए इसी की तह में जाते हैं।

मूर्तियों का निर्माण कोई नयी बात नहीं है। सदियों से इस देश में यदि कुछ बना है तो मूर्तियां ही बनाई गई हैं। हर चौक-चौराहे पर मंदिरों में मूर्तियां हैं। उन मूर्तियों के निर्माण में भी जनता का पैसा लगा होता है। जाहिर तौर पर इसके लिए धर्म को आधार बनाया जाता है। हर मंदिर में शिलालेख लगाया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण किस राजा या किस धन्ना सेठ ने करवाया। मकसद तो यही होता है कि वह अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा दे। सरकारी पैसे से भी यह काम खूब होता है। मंदिरों के रख-रखाव में जनता के पैसे का इस्तेमाल होता है। अधिक दूर जाने की जरूरत नहीं है। दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर जिसपर 600 करोड़ रुपए से अधिक का खर्च किया गया है, वह भी जनता का पैसा है। अक्षरधाम तो नया मंदिर है, काशी विश्वनाथ मंदिर को ही देख लें। इस मंदिर का रख-रखाव सरकार करती है। इसके लिए जनता का पैसा खर्च किया जाता है।

कुछ देर तक मंदिरों को भी दूर रखते हैं। अभी हाल ही में सरदार पटेल की विशालकाय प्रतिमा नर्मदा के किनारे खड़ी की गई है और इस पर 3000 करोड़ रुपए का खर्च हुआ है। जाहिर तौर पर इसमें भी सरकारी पैसे का उपयोग हुआ है।

कोर्ट का कहना है कि मायावती ने खुद को महान बनाने के लिए अपनी मूर्तियों का निर्माण कराया। इसे सही ही माना जाना चाहिए। यही मकसद भी रहा होगा जब मायावती इन मूर्तियों को बनवा रही होंगी। अब यह उचित है या अनुचित, इसके दो पक्ष हैं। पहला पक्ष जो पितृसत्ता ब्राह्मणवादी नजरिया है जो किसी महिला को इस लायक नहीं समझता है कि वह समाज पर राज करे। उस पर से एक दलित महिला ने जीते जी अपनी मूर्तियां बनवाया है तो यह तो उनके कलेजे पर कील ठोंकने के समान है। साथ ही जिन महानायको और महानायिकाओं की मूर्तियां यहाँ स्थापित है ये वो है जो की एक महँ अवैदिक मूलनिवासी संस्कृति के विचार वाहक है मगर जिनका इतिहास हज़ारो सालो से दबाया गया था नष्ट किया गया था बुद्ध से लेकर पेरियार बाबासाहेब तक जिनके जीवन संघर्षो को तारोड ने मरोड़ने और कलंकित करने की कोशिशें हुई ताकि गैर ब्राह्मण सवर्ण वर्ग अपने आदर्श इनमे न ढूढ़ सके. मायावती जी ने मेटियां स्तापित कर ब्राह्मणवादी साजिशों के ऊपर जो कड़ा प्रहार किया उससे भी प्रस्थापित ब्राह्मण वर्ग विचलित हो उठा है. और इसलिए ये घृणा दर्शा रहा है.

दूसरा पक्ष मायावती का है। आखिर एक अनुसूचित जाति की महिला जो लंबे संघर्ष के बाद सत्ता के शीर्ष तक पहुंचती है तो उसे अपने लोगों को प्रेरित करने के लिए क्या करना चाहिए? इसी सवाल पर गौर करते हैं। एक उपाय तो यह था कि वह भी सवर्णों के जैसे देवी-देवताओं के मठ-मंदिर बनवातीं या फिर धर्मशाला आदि खुलवातीं। एक उपाय यह था कि वह अपने उपर महाकाव्य की रचनाएं करवातीं और उसे पाठ्यक्रमों में शामिल करतीं। लेकिन उन्होंने कुछ अलग किया। सभी दलित-बहुजन नायकों को पूरे उत्तर प्रदेश में सवर्ण समाज के सामने खड़ा कर दिया जो बहुजनों से यह पूछते थे कि हमारे आदर्श तो राम-कृष्ण-गांधी हैं, तुम्हारे आदर्श कौन हैं?

एक झटके में मायावती ने उनके इस सवाल को खत्म कर दिया। आज मायावती ही कारण हैं कि बहुजनों के अपने नायक हैं। ये नायक कोई काल्पनिक नहीं हैं बल्कि वे हैं जिन्हें सवर्ण इतिहासकारों ने इतिहास में जगह नहीं दी। कहीं दी भी तो ऐसे जैसे गांवों में बहुजन होते हैं। गांव की सीमा के बाहर कोई एक टोला। इतिहास में भी दलित-बहुजनों के लिए टोला ही था।

सुप्रीम कोर्ट टिप्पणी करते समय यह बात भूल गया कि वह जिस संबंध में बेहुदगी वाली टिप्पणी कर रहा है, उस पर सवाल उठेंगे तो बुतपरस्ती की परंपरा पर सवाल उठेंगे। ऐसे भी सवर्ण जिन्हें आराध्य मानते हैं, उनके चरित्र पर सवाल उठते रहे हैं। राम, कृष्ण और विष्णु आदि काल्पनिक मिथकों को छोड़ भी दें तो गांधी के चरित्र पर भी गंभीर सवाल उठते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राम की प्रतिमा बनाने की घोषणा की है। सुप्रीम कोर्ट को यह बताना चाहिए कि यदि यह प्रतिमा बनी तो यह किसका गौरव बढ़ाएगा।

बहरहाल, लोकतंत्र में सुप्रीम कोर्ट से बढ़कर जनता की अदालत है। मायावती को जनता की अदालत में इसे ले जाना चाहिए और न्यायपालिका के जातिवादी चरित्र की पोल खोलनी चाहिए। यह इतिहास का रूख मोड़ने का वक्त है। सुप्रीम कोर्ट की गीदड़भभकी से डरने का नहीं।

~ डॉ मनीषा बांगर
~सामाजिक चिंतक, विश्लेषक एवं चिकित्सक.
~राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पीपल पार्टी ऑफ़ इंडिया-डी ,
~पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बामसेफ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

बाबा साहेब को पढ़कर मिली प्रेरणा, और बन गईं पूजा आह्लयाण मिसेज हरियाणा

हांसी, हिसार: कोई पहाड़ कोई पर्वत अब आड़े आ सकता नहीं, घरेलू हिंसा हो या शोषण, अब रास्ता र…