Home Social मीडिया का जातिवादी चहरा!
Social - State - November 14, 2018

मीडिया का जातिवादी चहरा!

By- Jayant Jigyasu,

प्रो. देवकुमार जी बताते हैं कि “जडेजा का राजपुताना प्रदर्शन” टाइप बातों का ही जिक्र इसी शैली में एक समय प्रभाष जोशी ने जनसत्ता में रोहित शर्मा और इशांत शर्मा को लेकर अपने लेख में किया था। मने जातिगत बोध से विभोर होता हुआ। सन और तिथि मुझे याद नहीं और न ही कटिंग सहेजकर रखी वरना प्रमाण यहाँ लगा देता। कहने का मतलब पढ़े-लिखे तथाकथित बुद्धिजीवियों (उच्च) ने भी इस तरह की हरकत की है।

एक सच यह भी है कि आज आप लालू प्रसाद के बारे में कुछ ढंग का लिखो, शरद यादव का बस नाम ले लो मंडल के सन्दर्भ में, तो जाने-माने प्रफेसर्स भी कहते हैं कि अकेडमिया में अपना गड्ढा खुद खोद रहा है, बाद में कोई कायदे का भी काम किया, तो कोई सीरियसली नहीं लेगा, अपने पैरों पर कुल्हाडी मार रहा है, आदि-इत्यादि।

मगर, हर सजग-सचेत लोगों को मालूम होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर पर कितनी किताबें सम्पादित कर डालीं प्रभाष जोशी ने। उनके भाषणों की भूमिका में क्या-क्या विशेषण-क्रियाविशेषण लगा डाले। बावजूद इसके, उनके यशस्वी सम्पादक होने की छवि को कोई आंच नहीं आई। यह सहुलियत इस देश में सिर्फ़ वृहत जोशी बिरादरी को ही है।

कितने लोगों को ख़बर है कि प्रभाष जोशी अपने बेटे को भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल कराने के लिए कितनी जतन कर रहे थे। नाम नहीं बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ व रीढ़ वाले पत्रकार ने एक बार बताया कि चंद्रशेखर के आगे लिटरली जोशी जी को गिड़गिडाते देखा है। इसलिए, ये छवि-निर्माण व छवि-भंजन, गम्भीर व्यक्तित्व व हल्का या फूहड़ शख्सियत बनाकर आम जनमानस में कैसे, किसको, कब और कहां पेश किया जाता है, ये सब तिकड़म थोडा-बहुत तो उपेक्षित-वंचित समाज के लोग भी समझने लगे हैं।

इसलिए, अब वो न किसी विश्वविजेता-सी छवि वाले एंकर के किसी सांध्यकालीन बहस की सुर-लय-ताल पर लहालोट होते हैं, न किसी गौरसारस्वत प्राइड को जीने वाले सरदेसाई की सुरेश प्रभु-पर्रिक्कर के पदासीन होने वाली हर्षलीला में शरीक होते हैं, और न ही मंडल के खिलाफ़ पन्ने के पन्ने रंग देने वाले व पूर्व में लोकदल को चकनाचूर करने के उद्देश्य से चौधरी चरण सिंह व चौधरी देवी लाल के बीच गहरी खाई पैदा कराने के वास्ते इंडियन एकसप्रेस में “ताऊ की इंदिरा से भेंट” वाली फेक न्यूज़ प्लान्ट करने और फिर ह्यूज डैमेज करा कर खंडन करने वाले चिरकुट सम्पादक अरुण शौरी के परिस्थितिजन्य फासीवाद विरोधी मुहिम में प्रेस क्लब में शामिल होने पर कोई दलित-पिछडा-आदिवासी-अल्पसंख्यक खुशी से झूम उठता है।

वह समाज अब धीरे-धीरे विषकुम्भम-पयोमुखं को पहचानने की प्रक्रिया का आनंद लेना सीख रहा है। उसे अपने अच्छे-बुरे, हित-अहित, दोस्त-दुश्मन की परख होने लगी है। बाकी, अभी भी समय है चेतने का। कभी भी विलम्ब नहीं होता। जगो और जगाओ! आगाह करते रहो! सबके लिए जीने लायक़ जगह बने यह देश, यही कोशिश, यही चिंता, यही चाहत!

~ Jayant Jigyasu

(लेखक के विचारों के साथ छेड़छेड़ नहीं की गई है)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

बाबा साहेब को पढ़कर मिली प्रेरणा, और बन गईं पूजा आह्लयाण मिसेज हरियाणा

हांसी, हिसार: कोई पहाड़ कोई पर्वत अब आड़े आ सकता नहीं, घरेलू हिंसा हो या शोषण, अब रास्ता र…