#MeToo में बहुजन औरतें क्यों नहीं ????
22 सितंबर 1992 को राजस्थान के जयपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर भटेरी गांव में सवर्णों ने एक बहुजन महिला भँवरी देवी प्रजापति के साथ सामूहिक बलात्कार किया सिर्फ इसलिए क्योंकि ‘साथिन’ पद पर पदस्थ सरकारी कर्मचारी की ड्यूटी निभाते हुए भँवरी ने एक नौ महीने की बच्ची की शादी रोकी थी। सवर्ण वर्ग उनसे बेहद नाराज़ था कि एक कुम्हारिन की हिम्मत कैसी हुई हमारी परंपरा और संस्कृति में टांग अड़ाने की।इसका बदला भँवरी देवी के पति को मारपीट करके बांधकर उसके ही सामने ही खेत में 5 सवर्णों ने बारी-बारी से बलात्कार करके लिया।
भँवरी ने जब अपनी आप बीती पूरी दुनिया को बताई तो उन पर झूठ बोलने के आरोप लगे। उन पर हमला करने वाले दरिंदों ने बलात्कार के आरोप से साफ़ इनकार कर दिया और कहा कि बस केवल मामूली कहा-सुनी हुई थी। पुलिस ने उनका बहुत मजाक बनाया। भँवरी देवी की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया ऊपर से तफ़्तीश में भी लीपापोती कर दी गई। लापरवाही का आलम यह था कि उनकी मेडिकल जांच भी 52 घंटे बाद की गई जबकि ये 24 घंटे के अंदर किया जाना चाहिए था। मेडिकल में उनके जख्मों का ब्यौरा भी दर्ज नहीं किया गया। उनकी दर्द और पीड़ा को भी बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया गया।
जब स्थानीय अखबारों ने भंवरी देवी की घटना को रिपोर्ट किया और कुछ महिला कार्यकर्ताओं ने विरोध किया तब ये मामला सीबीआई को सौंप दिया गया। सवर्णों की हर जगह पैठ थी इसलिए केस दर्ज होने के बाद भी वे बेख़ौफ घूमते रहे। पुलिस को पांच महीने लग गए के आरोपियों को गिरफ्तार करने में।
कोर्ट में ट्रायल के दौरान बिना कोई कारण बताये पांच बार जज बदले गए और नवंबर,1995 में अभियुक्तों को बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया गया। उन्हें मामूली अपराधों में दोषी करार दिया गया और वे महज नौ महीने की सजा पाकर जेल से छूट गए। अभियुक्तों को रिहा करने वाले अदालती फैसले में तर्क ये दिए गए थे-
1. गांव का प्रधान बलात्कार नहीं कर सकता।
2. 60-70 साल के ‘बुजुर्ग’ बलात्कार नहीं कर सकते।
3. एक पुरुष अपने किसी रिश्तेदार के सामने रेप नहीं कर सकता (ये दलील चाचा-भतीजे की जोड़ी के संदर्भ में दी गई थी)।
4. अगड़ी जाति का कोई पुरुष किसी पिछड़ी जाति की महिला का रेप नहीं कर सकता क्योंकि वह ‘अशुद्ध’ होती है।
5. अलग-अलग जाति के पुरुष गैंगरेप में शामिल नहीं हो सकते।
6.भंवरी देवी के पति चुपचाप खामोशी से अपनी पत्नी का बलात्कार होते हुए नहीं देख सकते थे।
भँवरी ने इसके बाद भी हिम्मत नहीं हारी और निचली अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ राजस्थान हाईकोर्ट में अपील की। भंवरी देवी की अपील हाई कोर्ट में अभी भी लंबित है। इस अपील पर पिछले 23 सालों में केवल एक बार सुनवाई की गई है।
आपको बता दूँ ये भंवरी देवी का ही मुकदमा था जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट को दफ़्तरों में यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए विशाखा दिशा-निर्देश जारी करना पड़ा था।
26 साल हो गए लेकिन आज भी भँवरी देवी न्याय के लिए दर-बदर भटक रहीं हैं। निचली अदालत के तर्कों को पढ़िए पता लगेगा कि जातिवाद कैसे काम करता है। बहुजन औरतों के लिए न्याय की लड़ाई तब भी मुश्किल है जब वो लड़ने के लिए खड़ीं हो जाये। #MeToo बहुजन औरतें के लिए नहीं हो सकता क्योंकि भारतीय फेमिनिज़्म में हमें शामिल ही नहीं किया गया।
भँवरी देवी को संघर्ष के बाद हासिल क्या हुआ???
#WeTooVsMeToo
#WeTooHuman
#BahujanFeminism
#WeDareWeCare
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