दिल्ली में सामाजिक न्याय पर हुई नेशनल कन्वेंशन कि प्रमुख बातें, आसान भाषा में समझें
By- Suraj Yadav
संविधान_बचाओ_संघर्ष_समिति तत्वाधान में, मंगलवार, 29 जनवरी, 2019 को दिन 2 बजे से आयोजित कन्वेंशन में, आरजेडी नेता तेजश्वी यादव, बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम, जस्टिस एवं ओबीसी फेडरेशन के अध्यक्ष ईश्वरैया, पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर, सांसद मनोज झा, गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी, दिल्ली सरकार में मंत्री राजेंद्र पाल गौतम, वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल, वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल, प्रो. डा रतन लाल, ने शिरकत की, खचाखच भरे कॉन्शटीट्यूशन क्लब के स्पीकर हॉल में निम्नलिखित प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया
संविधान पर हमला
आज जब हम 26 जनवरी को देश का 70 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं, भारत के संविधान को अपनाए जाने के भी 70 साल पूरे हो रहे हैं। परन्तु, आज देश के बहुजन अवाम को इस बात का डर है कि EVM के कोख से निकले सत्ताधारी मोदी सरकार से हमारे देश के गणतंत्रात्मक लोकतंत्र की नींव भी गंभीर खतरे में है। पिछले लगभग पांच वर्षों में, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की BJP सरकार ने संविधान और उसके कई स्तंभों को व्यवस्थित रूप से बदल दिया है, चाहे वह सुप्रीम कोर्ट हो, संसद हो, लोकतांत्रिक चुनाव हो और शासन प्रणाली हो, सीबीआई या सीवीसी, भारतीय रिजर्व बैंक जैसे विभिन्न प्रहरी की भूमिका हो। यह आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि सत्तारूढ़ बीजेपी आरएसएस से वैचारिक जीविका प्राप्त करती है, और आज शीर्ष सरकार के अधिकांश पदों पर, यहाँ तक की प्रधानमंत्री से शुरू होने वाले पद पर भी, आरएसएस के नेताओं द्वारा नज़र रखा जाता है। आरएसएस खुले तौर पर एक हिंदू राष्ट्र के लिए प्रयास करता है जिसे वह वर्तमान संवैधानिक लोकतंत्र के खंडहरों पर स्थापित करना चाहता है।
यह याद रखने योग्य है कि स्वतंत्रता के ठीक बाद, आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र ने मांग की, कि संविधान के बजाय, मनुस्मृति को देश के कानून के रूप में लागू किया जाना चाहिए, (देखें ऑर्गेनाइजर दिनांक 30 नवंबर, 1949 और 25 जनवरी 1950)। मनुस्मृति वो ग्रंथ है जिसे तथाकथित ऋषि मनु ने ब्राह्मणवादी सिद्धांतों के आधार पर लिखा है। इसमें महिलाओं और बहुजनों के विरुद्ध शर्मनाक व्यवस्थाएँ शामिल हैं। इस पर डॉ अम्बेडकर ने विरोध के रूप में सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति की प्रति जलाए थे।
आरएसएस का सबसे लम्बे समय तक सुप्रीमो रहा गोलवलकर लिखता है, कि लोकतंत्र एक पश्चिमी अवधारणा है जो भारत के लिए उपयुक्त नहीं है। वह लिखता है (श्री गुरुजी समागम Vol.5 pp.89-90), हिंदुस्तान ऐसे लोगों के एक समूह द्वारा शासित होना चाहिए जो चतुरवर्णश्रम (चार जाति) प्रणाली पर आधारित हो, जिसमें शासक ब्राह्मण थे और वे योद्धाओं, व्यापारियों, और निश्चित रूप से पूरे श्रमजीवी वर्ग पर हावी थे। ध्यान रहे कि आरएसएस स्वयं इस फासीवादी तरीके से संगठित है। यह भी सनद रहे कि आरएसएस का इस देश के स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं है। ऐसे में, इस पर आश्चर्य नहीं है कि नरेंद्र मोदी और उनके कई कैबिनेट सहयोगियों जो आरएसएस के कैडर हैं और जो उस विचारधारा में डूबे और पस्त हैं, उन्हें भारतीय संविधान और लोकतंत्र के लिए कोई जवाबदेही या सम्मान नहीं है।
इसलिए, जबसे वो सत्ता में आये हैं, उन्होंने तुरंत संविधान को कमजोर करना शुरू कर दिया है। विभिन्न संवैधानिक निकायों को अलग करते हुए, सभी नियमों और लोकतांत्रिक परम्पराओं को ताक पर रख कर, सरकारी नौकरशाही को अपने अक्षम अनुयायियों के साथ पैक कर रहे हैं। उनका न तो लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति सम्मान है और न ही वे असंतोष और असहमति को महत्व देते हैं। संविधान में तोड़फोड़ कर, संसदीय प्रक्रियाओं को नष्ट करने से (आधार कानून को अंतिम समय पर विभिन्न वित्तीय विधेयकों के साथ स्मगल करके पारित करना) से, सुप्रीम कोर्ट, रिज़र्व बैंक और CIC जैसे विभिन्न प्रहरी निकायों के कामकाज में दखल देकर मोदी सरकार बेशर्मी से अपनी पीठ थपथपा रही है। मोदी सरकार सभी प्रकार की प्रपंच के माध्यम से विभिन्न राज्यों में सत्ता पर कब्जा करके संविधान में निहित लोकतंत्र के सिद्धांतों को भी उलट दिया है। उन्होंने SC, ST, OBC, पिछड़ों, और अल्पसंख्यकों को और अधिक हाशिए पर रखकर, संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना का उल्लंघन किया है, अल्पसंख्यकों को हिंसा से बचाने में जानबूझ कर नाकाम रहें हैं और हिंदुत्व आधारित नीतियों को खुले तौर पर अपनाने और प्रचार करने में लगे हुए हैं।
- सवर्ण आरक्षण सवापस लो…
आधुनिक मनुस्मृति 124 वां संविधान संशोधन कानून (सवर्ण आरक्षण) को वापस लिए जाने की माँग और इस असंवैधानिक आरक्षण के राष्ट्रव्यापी विरोध का आह्वान।
सवर्णो को आरक्षण दिए जाने का फैसला जुमला नहीं बल्कि संविधान व सामाजिक न्याय पर बड़ा हमला है। आरक्षण के खात्मे की मनुवादी साजिश है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसे आवाम माफ नहीं करेगी।
आरक्षण गरीबी उन्मूलन व रोजगार गारंटी कार्यक्रम नहीं है। सवर्णो के गरीबी उन्मूलन के लिए आर्थिक विशमता बढ़ाने वाली पूंजीवादी नई आर्थिक नीति का खात्मा जरुरी है। गरीबी उन्मूलन का जवाब आरक्षण नहीं है।
देश के संविधान को ताक पर रख कर, बहुजनों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के वाजिब हक़ पर लगातार हमला कर, सार्वजानिक क्षेत्र के करोड़ों नौकरियों को समाप्त कर, संविधान के मूल भावना के साथ खिलवाड़ कर, बाबासाहेब भीम राव अम्बेडकर को अपमानित करते हुए, आरएसएस की साज़िश के अंतर्गत, केंद्र की मोदी सरकार द्वारा 124 वां संविधान संशोधन कानून (सवर्ण आरक्षण) लागू किये जाने का हम पुरजोर विरोध करते हैं और देश के बहुसंख्यक SC ST, पिछड़े और अल्पसंख्यक को इस असंवैधानिक कानून के विरोध में राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ने का आह्वान करते हैं।
- केंद्रीय विश्वविद्यालय एवं अन्य शैक्षिक संस्थानों में नियुक्ति हेतु
आरक्षण को विषयवार, बिना बैकलॉग के 13 पॉइंट रोस्टर को तुरंत रद्द करते हुए उसकी जगह पुनः 200 पॉइंट रोस्टर लागू किये जाने के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश (Ordinance) या कानून लाए।
मंगलवार, 22 जनवरी, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2017 के आदेश को चुनौती देने वाले केंद्र द्वारा दायर सभी अपीलों को मंगलवार को खारिज करने के बाद विश्वविद्यालयों में संकाय पद अब किसी विश्वविद्यालय में उपलब्ध कुल पदों के अनुसार आरक्षित नहीं होंगे। कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के 5 मार्च 2018 का आदेश जिससे 200 पॉइंट रोस्टर व्यवस्था को बदल कर 13 पॉइंट विभागवार / विषयवार / बिना बैकलॉग के कर दिया था, जिसे केंद्र सरकार ने संसद में बयान देकर रोक लगाई थी, पुनः प्रभावी हो गयी है।
अब केंद्रीय एवं अन्य विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों की नियुक्तियों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए कोटा प्रणाली के तहत आरक्षित शिक्षण पदों को लगभग समाप्त कर दिया जायेगा। यह देखते हुए कि आरक्षित संकाय पद पहले से ही भारी संख्या में खाली हैं, नई नीति से विश्वविद्यालय प्रणाली में हाशिए के वर्गों के प्रतिनिधित्व को लगभग समाप्त कर दिया जायेगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय और इससे सम्बद्ध कॉलेजों में, जहाँ पिछले 4 – 5 वर्षों से परमानेंट (स्थाई) नियुक्तियाँ नहीं हुई हैं और लगभग 4 – 5 हज़ार शिक्षक एड -हॉक नियुक्तियों के अंतर्गत काम कर रहें हैं वहाँ करीब इसके आधे यानि लगभग 2000 आरक्षित वर्गों के एसिस्टेंट प्रोफेसर पर गाज गिरने की सम्भावना है। चुकी नियमनुसार इन एड-हॉक एसिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति प्रक्रिया हर 4 महीने पुनः किया जाना चाहिए, तो जैसे ही व्यवस्था 13 पॉइंट रोस्टर लागू होगा, इन वर्गों का आरक्षण समाप्त हो जायेगा और ये सड़क पर होंगे।
विषयवार 13 पॉइंट रोस्टर को तत्काल वापस लेने की माँग और विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों की नियुक्तियों में सम्पूर्ण पदों को एक साथ लेते हुए, आरक्षित वर्गों को क्रम में पहले रखते हुए 200 पॉइंट रोस्टर को पुनः लागू किये जाने की माँग।
- निजी क्षेत्र में SC/ST/OBC आरक्षण लागू किया जाए
- 2021 सेंसस में कमिशनर द्वारा जातिगत जनगणना भी किया जाए, OBC को जनसँख्या के आधार पर 52% आरक्षण मिले
- उच्च न्यायपालिका यानि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में SC/ST/OBC आरक्षण लागू किया जाए
- एंटी लिंचिंग कानून लाकर, धर्म या समुदाय के नाम पर किसी नागरिक की सामूहिक हत्या के विरुद्ध कड़ी कार्यवाई हो और सज़ा मिले
देश में मौजूदा हालात बेहद खराब हैं। मुस्लिमों और SC/ST पर अत्याचार अपने चरम पर है। कभी गाय के नाम पर तो कभी झूठी अफवाहों का सहारा लेकर, बेगुनाह मुस्लिमों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। देश लोकतंत्र से भीड़तंत्र में परिवर्तित होता जा रहा है। जहां, कानून का डर मानों लोगों के दिलों से खत्म हो गया हो। आश्चर्य की बात है कि बुलंदशहर में एक दरोगा की हत्या करने वाला बेखौफ घूम रहा है और उस हत्या पर अपनी राय रखने वाले को लोग गद्दार कहकर पाकिस्तान भेज रहे हैं।
- ईवीएम की जगह पेपर बैलट से चुनाव हो
सर्वोच्च न्यायालय के 2013 के आदेशानुसार VVPAT पेपर ट्रेल को गिनने का प्रावधान इसी 2019 से लागू किया जाए, VVPAT डिस्प्ले 7 की जगह 12 से 14 सेकण्ड का करने का चुनाव आयोग इंतजाम करे।
यह सभा या कन्वेंशन इस प्रस्ताव का समर्थन करती है और संविधान_बचाओ_संघर्ष_समिति को इसे एक ज्ञापन के साथ सलंग्न कर महामहिम राष्ट्रपति को और सभी राजनैतिक दलों के अध्यक्ष को एक प्रति सौंपने का निर्देश देती है।
~ डा अनिल जयहिंद, श्री वामन मेश्राम, डा सूरज मंडल, डा रतन लाल, जयंत जिज्ञासु, योगेंद्र पी यादव, रिज़वान अहसान (संविधान_बचाओ_संघर्ष_समिति)
(यह लेखक को निजी विचार है)
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