मोदी कॉर्पोरेट आणि युनियन स्थावर, विन क्रेडिट घेण्याचा प्रयत्न करणे
~ Nawal किशोर कुमार
द इकोनॉमिस्ट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित किया है। इसके मुताबिक नरेंद्र मोदी जीत सुनिश्चित है। रिपोर्ट का शीर्षक है – “नेशनलिस्ट फर्वर इज लाइकली टू सेक्योर अ सेकेंड टर्म फॉर मोदी”। यानी राष्ट्रवाद के सहारे नरेंद्र मोदी को दुबारा मौका मिलना लगभग तय। कुछ ऐसे ही संकेत हाल ही में संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा अजहर मसूद को आतंकी माने जाने और उसके खिलाफ वैश्विक स्तर पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भी मिलते हैं। इन सबके अलावा आरएसएस भी अब खुलकर नरेंद्र मोदी के समर्थन में नारे लगाने लगा है जो कि चौथे चरण के पहले एकदम खामोश था।
त्याच्या निष्कर्ष बाणा केलेल्या अर्थतज्ज्ञ 24 मार्च पासून 31 मार्च दरम्यान 10,010 लोकांमध्ये आयोजित सर्वेक्षणाचे निष्कर्ष आधार आहे. भाजप मते 222-232 जागा होईल. त्याच्या सहयोगी करताना 41-51 जागा पूर्ण होणे अपेक्षित आहे. काँग्रेस आणि त्याच्या सहयोगी करताना 115-135 जागा शक्यता आहे गेला.
या अहवालात चार्टर्ड 2 मे 2019 को द इकोनॉमिस्ट लंदन से प्रकाशित होनेवाली साप्ताहिक पत्रिका है।
अब सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि चार चरण बीतने के बाद विश्व स्तर पर मोदी की पुनर्वापसी तय मानी जा रही है?
इस सवाल से पहले एक घटना और। आरएसएस ने इन दिनों दस दिवसीय एक अभियान चला रखा है। इसे नेशन फर्स्ट की संज्ञा दी गयी है। इसके तहत संघ ने अपने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया है कि वह भाजपा के चुनाव प्रचार में जुट जाएं। अपने समर्थकों से भाजपा को वोट देने के लिए अपील के साथ ही आरएसएस ने उन्हें कहा है कि वे घरों में काम करने वाले माली, रसोइये, चालक, नौकरों से भी भाजपा को वोट करने के लिए प्रेरित करें।
इसका एक मतलब यह भी है कि आरएसएस से जुड़े सवर्ण यह मानते हैं कि केवल उनके वोट देने नरेंद्र मोदी की जीत नहीं होगी। जीत तो तभी होगी जब समाज के निचले स्तर के लोग उन्हें वोट करें। उन्हें प्रेरित करने का श्रेय भी संघ लेना चाहता है।
यापूर्वी (चौथे चरण के पहले) तक संघ ने चुनाव में प्रत्यक्ष भागीदारी से परहेज रखा था। यहां तक कि को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक बयान में यह कहा था कि संघ के सदस्य जिस दल को वोट देना चाहें दें। वे जिस दल में शामिल होना चाहते हैं, वे शामिल हों। संघ के लिए कोई दल अछूत नहीं है।
यह पहला अवसर नहीं है जब मोहन भागवत ने ऐसा कहा है। पिछले वर्ष 9 एप्रिल, 2018 में भी विज्ञान भवन में हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि “आरएसएस की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। संघ का कोई पदाधिकारी राजनीति में नहीं है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि राष्ट्र हित से जुड़े मुद्दों पर संघ चुप रहेगा। यह किसी के लिए भी उचित नहीं है। स्वयंसेवकों के लिए किसी राजनीतिक दल में शामिल होने का विकल्प खुला है।”
भागवत ने नरेंद्र मोदी के बयानों से खुद को अलग रखते हुए कहा था कि “कांग्रेस मुक्त भारत एक राजनीतिक नारा है और ये संघ की भाषा का हिस्सा नहीं है।”
अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हो गया है कि संघ नरेंद्र मोदी के पक्ष में उतर गया है। क्या उसने यह मान लिया है कि मोदी की संभावित जीत नरेंद्र मोदी के पिछड़ावाद के कारण है और अब श्रेय लेने की बारी है।
हालांकि इस संबंध में आरएसएस के गंगा समग्र, बिहार प्रांत के संयोजक अजय यादव का कहना है कि संघ एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है। संघ की ओर से देश के मतदाताओं को जागरूक बनाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है ताकि देश में राष्ट्रवादी और मजबूत सरकार बन सके। उन्होंने यह भी बताया कि यह अभियान चुनाव शुरू होने से पहले से ही चलाया जा रहा है।
वहीं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता विजय सोनकर शास्त्री के मुताबिक संघ का कोई सदस्य राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं लेता है। जहां तक बात श्रेय लेने की है तो ऐसा कुछ भी नहीं है। भाजपा ने जाति का कार्ड कभी नहीं खेला है। उन्होंने यह भी कहा कि बड़ी मुश्किल से इस देश की राजनीति जाति-धर्म से दूर विकास की तरफ अग्रसर हुई है।
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