NRC की आड़ में खेला जा रहा है धर्म का खेल!
पिछली लोकसभा भंग होने के साथ ही मोदी-1 में लाया गया विवादित नागरिकता संशोधन विधेयक भी रद्द हो गया. मोदी सरकार ने 8 जनवरी, 2019 को इसे लोकसभा में पेश किया था, जहां ये पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में ये बिल पास नहीं हो पाया था. अब इसे दोबारा से लाने की कोशिश की जा रही हैं.
यह ऐसा विधेयक था जो भारत के पिछले 70 सालों के संसदीय इतिहास में कभी नही आया था. यह विधेयक भारतीय संविधान की मूल अवधारणा के खिलाफ है. यह हमारी संविधान की प्रस्तावना की मूल भावना के विपरीत है.
दरअसल, सरकार के नागरिकता संशोधन विधेयक में पड़ोसी देशों अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, पारसी, सिख, जैन और ईसाई प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है. लेकिन मुसलमानों को नहीं.
इस विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि ग़ैर-मुस्लिम समुदायों के लोग अगर भारत में छह साल गुज़ार लेते हैं तो, वे आसानी से नागरिकता हासिल कर सकते है. लेकिन मुस्लिम मतावलंबियों (वे मुस्कोलिम जो कट्टरपंथ कहलाते हैं) को ये छूट हासिल नहीं होगी.

नागरिकता का आधार धर्म से है
किसी ने सोचा भी नही था कि भारत में नागरिकता का आधार धर्म को बनाया जाएगा ओर धार्मिक आधार पर लोगों से नागरिकता प्रदान करने को लेकर भेदभाव किया जाएगा पर अब यह सच होने जा रहा है.
संघ चाहता है कि मोदी सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक को एक बार फिर संसद में पेश करे. दरअसल, NRC में एक गड़बड़ भी हो गयी है, एनआरसी की फ़ाइनल सूची से जो 19 लाख लोग बाहर रह गए हैं, उनमें 13 लाख हिंदू ओर अन्य आदिवासी समुदाय के लोग शामिल हैं और उन्हें अब कैसे भी करके बचाना है.
लेकिन पूर्वोत्तर की शरणार्थी समस्या कभी भी हिन्दू वर्सेज मुस्लिम नहीं थी. यह मुद्दा हमेशा से स्थानीय वर्सेज बाहरी था.

नागरिकता संशोधन क्या है?
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 1985 के असम समझौते का उल्लंघन करता है. सरकार की ओर से तैयार किया जा रहा राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर NRC और असम समझौता ये दोनों धर्म को आधार नहीं मानते.
ये दोनों किसी को भारतीय नागरिक मानने या किसी को विदेशी घोषित करने के लिए 24 मार्च, 1971 को आधार मानते हैं.
असम समझौता बिना किसी धार्मिक भेदभाव के 1971 के बाद बाहर से आये सभी लोगों को अवैध घुसपैठिया ठहराता है. जबकि नागरिकता संशोधन क़ानून बनने के बाद 2014 से पहले आये सभी गैर मुस्लिमों को नागरिकता दी जा सकेगी, जो कि असम समझौते का उल्लंघन होगा.
इसलिए यहां समझने लायक बात यह है कि NRC का मुद्दा उठा कर, घुसपैठियों की बात कर के देश में हिन्दू वोट बैंक को पक्का किया जा रहा है.
दरअसल, बीजेपी की राजनीति देश हिंदू वोट बैंक मज़बूत करने की कोशिश है. पहले दलित वोट बैंक होता था, मुस्लिम वोट बैंक होता था, पिछड़ा वोट बैंक हुआ करता था.

लेकिन अब इनसे कही आगे हिंदू भी अब वोट बैंक बन चुका है पूर्वोत्तर क्षेत्र के कई छात्र संगठन प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक में पहले ही विरोध में उतर चुके हैं.
पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोग प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ हैं, क्योंकि यह धार्मिक आधार पर लोगों को नागरिकता देगा. उदाहरण के तौर पर मिज़ोरम के संदर्भ में इसका मतलब यह होगा कि यह कानून बनने के बाद चकमा बौद्धों को वैध कर देगा जो अवैध तरीके से बांग्लादेश से राज्य में घुसे हैं. ऐसे ही नगालैंड ओर अन्य राज्यों की स्थिति है.
लेकिन इन सब बातों को सिरे से खारिज कर मोदी सरकार जल्द ही फिर से सिटिजनशिप अमेडमेंट बिल (Citizenship Amendment Bill-CAB) लाने वाली है. इसलिए बार-बार NRC के बहाने घुसपैठियों का तर्क दिया जा रहा है इस खेल को जनता जितना जल्दी समझ ले उतना अच्छा है.
(ये शब्द गिरीश मालवीय के हैं, जिन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फ़ेसबुक पर इसे लिखा है.)
(अब आप नेशनल इंडिया न्यूज़ के साथ फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब पर जुड़ सकते हैं.)
Remembering Maulana Azad and his death anniversary
Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…