‘वो भीड़ बन के आएंगे और सब तहस-नहस कर देंगे’ पद्मावत की आढ़ में साजिश पर शानदार विमर्श
-शीबा असलम फ़हमी
विमर्श। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ-विश्व हिन्दू परिषद्, करनी सेना का खुल के समर्थन कर रहे हैं और पुलिस मूक दर्शक बनी खड़ी है, उधर मीडिया सिर्फ विज़ुअल्स दिखा रहा है। कल्पना कीजिये कि आरक्षण ख़त्म करने की मांग करती एक बेख़ौफ़-ज़िद्दी भीड़ जब संसद, न्यायपालिका, व्यवस्था, मीडिया, शहर, गाँव, गली-मोहल्ले को घेरेगी तब कोई सूरमा क्या कर लेगा? भीड़ से मनचाहा करवाना भाजपा की शैली बन चुकी है। बाबरी मस्जिद विध्वंस से लेकर आज तक भाजपा ने सड़कों पर अराजकता से ही हासिल किया है। और खबर यही है कि आरक्षण मुक्त भारत भी ऐसे ही मिलेगा!
तो बारी-बारी से गुर्जर, जाट, पटेल, मराठा, राजपूत भीड़ों का आतंक आमजन के दिलों में उतार कर भाजपा सरकार करना क्या चाहती है? वो काम जो वोट से नहीं हो सकता, चोट से हो सकता है!
वो हाशियाग्रस्त समाज जो संविधान के विशेष सुरक्षा घेरे में हैं जैसे- शूद्र-दलित-आदिवासी समूहों को मानसिक तौर पर कमज़ोर, आतंकित और पस्त कर तैयार कर रहा है कि जब आरक्षण के विरुद्ध ये भीड़ एकजुट होकर तांडव करें तो सरकारों का इनके आगे झुकना स्वाभाविक और व्यावहारिक लगे। तर्क रहेगा कि ‘आखिर देश भी तो बचाना है’? आप वोट की ताक़त पर ग़ुमान करते रहिये, वो भीड़ बन के आएंगे और सब तहस-नहस कर देंगे। तब आप ही अपनी जान का सौदा करेंगे आरक्षण के बदले. एक मनगढंत कहानी के ख़िलाफ़ ज़िद्द के लिए जब ऐसा तांडव हो सकता है तो सियासत के सबसे बड़े सवाल पर क्या नहीं हो सकता है? गुर्जर, जाट, पटेल, ठाकुर, मराठा सब आरक्षण से आहत हिन्दू समाज के दुलारे हैं।
दलितों को इकहरे तौर पर पीटना, बलात्कार, आगज़नी, हत्या से जो न हुआ वो एकमुश्त भीड़ से होगा, और बहोत जल्द होगा। भाजपा और आरएसएस का नेतृत्व गाहे-बगाहे आरक्षण पर यूंही सवाल नहीं उठाता रहा है। सवर्ण हिन्दू बेरोज़गार युवा के मन में ये बात बिठा दी गयी है कि तुम्हारे दुखों का मूल कारण आरक्षण है। यही वजह है कि सरकारी नौकरियों के ख़त्म होने पर सवर्ण हिन्दू वर्गों से कभी चिंता नहीं जताई गयी। उन्हें ये भ्रम बेच दिया गया है कि सरकारी नौकरी तो बस अनुसूचितजाति/जनजाति/पिछड़ावर्ग डकार जाता है।
सवर्ण शासित भारत को सरहद के उस पार से चुनौती नहीं है। जन्म के आधार पर नीच तय कर दिए गए वर्गों को संविधान द्वारा दिये गए सुरक्षा कवच से ही उसकी लड़ाई है। इस सुरक्षा कवच को ख़त्म करना ही सवर्ण चुनौती है।
करणी सेना ‘राजपूत गौरव'(जिसने देश को विदेशियों के अधीन होने दिया) के सवाल पर समझौता नहीं करेगी।अपने भाई-भतीजों, सजातियों के विरूद्ध षडयंत्रो के इतिहास पर गौरव करने वाले कहाँ से ये हिम्मत लाते हैं? दरअसल ठाकुर पहचान को एकजुट करने का ये गेम बीजेपी के सक्रिय नेतृत्व में खेला जा रहा है। उसी तरह जैसे हरियाणा में जाट आंदोलन को हवा दी गयी थी। अभी पिछले महीने ही बहुजनों के विरुद्ध मराठा उकसाये गए थे। फ़िलहाल राजपूत उग्रवाद के ज़रिये आल इंडिया सतह पर एक मुस्लिम किरदार के विरुद्ध हिन्दुओं का जुटान हो रहा है। तभी बीजेपी के सहयोग से बेफिक्र घूम रहे ये फ्रेंडली गुंडे आतंक का नंगा नाच कर पा रहे हैं। ये रिपब्लिक डे ब्रेक भी लेते हैं और टीवी पर भी बुलाए जाते हैं। ‘देयर इस ए मेथड बिहाइंड मैडनेस’, किसानों पर गोली चल सकती है दुलारों पर नहीं!
ठाकुरों को अगर आपत्ति ‘जाति की इज़्ज़त’ के सवाल पर होती, तो विरोध पद्मावती के बाप, पति, आशिक़ (जो खिलजी को भड़काता है), के किरदारों पर भी होता। लेकिन इन तीनों मर्द किरदारों को छोड़ कर पता नहीं क्यूँ ‘हादिया’ टाइप नफ़रत दीपिका के विरुद्ध उंडेल दी गयी और रणबीर, शाहिद बचा लिए गए। लव-जिहाद का एंगल भी इसकी जड़ में है।
अब जो लोग प्रतिक्रिया में फिल्म देखने जाएंगे वो राजपूती शान के समर्थन में लौटेंगे और खिलजी के बहाने सांप्रदायिक टोन से प्रभावित होंगे, क्योंकि हाई टेक्नालजी से इसे उभार कर शोकेस किया गया है। अंबानी को वैसे भी सौ पचास करोड़ चुनावों में देने ही होते हैं, एक फिल्म से उसने कितना बड़ा काम कर दिया?
भंसाली नफरत के इस प्रोजेक्ट का हिस्सा है, उसकी कोई भी फिल्म नहीं देखिनी चाहिए। वो इसीलिए चुप है, उसका न आर्थिक नुकसान हो रहा है न सामाजिक-राजनैतिक! कल जब वो बीजेपी में शामिल होगा और हिन्दू प्राइड का चैंपियन बनेगा तब आपको ये उसकी ‘मजबूरी’ लगेगी। परदे के पीछे वो जिन बीजेपी नेताओं से मिल रहा है उससे साफ़ ज़ाहिर है कि उसका गेम सेट है। ये फिल्म दर्शकों से पैसा कमाने नहीं, हिंदी बेल्ट में चुनावी पोलिटिकल माइलेज के लिए बनी है। चुनाव बाद करणी-सेना चीफ की मौजूदगी में बंसाली का अभिनन्दन और पार्टी जॉइनिंग हो सकती है। सबके ज़ख्म भर जाएंगे, बचेगा तो बस आतंक का अहसास जो कमज़ोरों के विरुद्ध काम आएगा वक़्त आने पर।
इतना बड़ा देश है, मुद्दों की कमी नहीं है, एक-एक कर हर दबंग जाति को यह मौका दे रहे हैं कि भीड़ बन आप जो चाहें कर सकते हैं। ‘इन सभी जातियों के युवाओं का बुनियादी ग़ुस्सा आरक्षण से है, जिसकी वजह से ये बेरोज़गार हैं.’ जिसकी वजह से जब-तब अम्बेडकर के विरूद्ध कार्रवाइयां होती हैं। फ़िलहाल अठावले, उदितराज जैसों का हश्र सबको पता है. बस देखते जाइये, समय की बात है बस।
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Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…