PMC बैंक के बाद, अब दिल्ली के सहकारी बैंको का घोटाला?
दिल्ली नागरिक सहकारी बैंक की हालत क्या पीएमसी बैंक जैसी हो रही है. ये सवाल इसलिए क्योंकि दिल्ली सरकार के रजिस्ट्रार ऑफ कॉपरेटिव सोसाइटीज ने दिल्ली नागरिक सहकारी बैंक के सीईओ के खिलाफ मामला चलाने की इजाजत दी है. आरसीएस ने उन्हें बैंक ऑडिट टीम प्रमुख के कार्यकाल के दौरान कई तरह की गड़बड़ियों का दोषी पाया है. बताया जा रहा है कि इन गड़बड़ियों के कारण बैंक के नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स ए .न.पी में तेजी से इजाफा हुआ और बड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचा. रजिस्ट्रार ऑफ कॉपरेटिव सोसाइटीज ने दिल्ली असेंबली के एक पैनल को मंगलवार को मामले की जानकारी दी.
उन्होंने बताया कि बैंक का एनपीए बढ़कर 38 प्रतिशत पहुंच चुका है. जबकि जून 2019 तिमाही की इसी समय अवधि में स्टेट बैंक का नेट एनपीए 3.07% और ग्रॉस एनपीए 7.52% था. दरअसल, सीईओ जितेंद्र गुप्ता के खिलाफ, आरसीएस के वीरेंदर कुमार ने 24 सितंबर को ही कार्रवाई की इजाजत दी थी. और डीसीएस एक्ट 2003 के सेक्शन 121(2) के तहत यह कार्रवाई की गई. लेकिन जितेंद्र गुप्ता इसके खिलाफ दिल्ली फाइनेंशियल कमिश्नर की अदालत में अपील की और स्टे हासिल करने में कामयाब रहे. आरसीएस ने इस स्टे ऑर्डर को चुनौती दी थी.
उल्लेखनीय है कि ग्रेटर कैलाश के विधायक सौरभ भारद्वाज की अगुवायी में हाउस पेटिशंस कमिटी की मंगलवार को हुई बैठक में पाया गया कि यह बैंक भी पंजाब एंड महाराष्ट्र कॉपरेटिव बैंक की राह पर चल पड़ा है. आपको याद दिला दें कि पीएमसी बैंक पर कार्रवाई करते हुए आरबीआइ ने उस पर कई तरह की बंदिशें लगा दी थीं. जिसे लेकर पीएमसी के ग्राहक खासे परेशान हैं. और लगातार आंदोलन कर रहे थे.
वहीं जितेंद्र गुप्ता ने 1984 में दिल्ली नागरिक सहकारी बैंक बतौर क्लर्क जॉइन किया था. भारद्वाज के मुताबिक, उनके खिलाफ कई शिकायतें होने के बावजूद गुप्ता जनवरी 2018 में बैंक के सीईओ बन गए. उनपर लगे मुख्य आरोपों में फर्जी आइटीआर और प्रॉपर्टी के कागजात पर लोन जारी करना, बैंक के पैसे से गिफ्ट खरीदना आदि शामिल थे. जिन्होने इन मुद्दों पर रिपोर्ट पेश की थी उन मैनजरों के पैनल को भंग कर दिया गया था.
गौरतलब है कि दिल्ली नागरिक सहकारी बैंक में करीब 560 करोड़ रुपये जमा हैं. और एक विसिलब्लोअर यानि की मुकबीर की शिकायत पर हुई कार्रवाई में लोन से जुड़े 72 मामलों की जांच की गई, जिनमें 59 मामले फ्रॉड से जुड़े पाये गए हैं.
आरसीएस ने कई जांच रिपोर्ट्स पर संज्ञान लिया. जिसमें आरबीआइ की एक टीम की ओर से पेश की गयी रिपोर्ट भी शामिल है. इन रिपोर्ट्स में पाया गया कि सभी तरह के फर्जीवाड़े के विषय में बैंक को जानकारी थी.इतना ही नहीं, ‘जिन लोगों पर इन फर्जीवाड़ों को रोकने की जिम्मेदारी थी, वो भी इसमें शामिल थे. जिसके खिलाफ कोई ऐक्शन ही नहीं लिया गया है.
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