नसीमुद्दीन तो बहाना है असल में काग्रेंस को बहुजन-मुस्लिम गठजोड़ पर निशाना लगाना है
By: Ankur sethi
मेरठ :बीएसपी के पूर्व कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के काग्रेंस में शामिल होने की पुष्टी हो गई. असल में कांग्रेस पार्टी तीन दशक पुराने बहुजन-मुस्लिम जातीय गठजोड़ को दोहराने का सपना सजो रही है। कांग्रेस जिग्नेश मेवाणी और भीम आर्मी के बहाने बहुजनों का साथ हासिल करने के लिए हाथ पैर मार रही है। वहीं नसीमुद्दीन के बहाने सूबे में मुस्लिमों को जोड़ने का प्लान है। कांग्रेस की जनाधार वाले नेताओं को साथ जोड़ने की यह मुहिम 2019 में बीजेपी से मुकाबले के मद्देनजर देखी जा रही है। गुरुवार को सिद्दीकी दिल्ली में राहुल गांधी के सामने कांग्रेस में शामिल होने का ऐलान करने वाले हैं।
कांग्रेस की बहुजन-मुस्लिमों को साधने की कोशिश
BSP के पूर्व नेता नसीमुद्दीन को साथ लाने की तैयारी
सियासी चाल में कितना कामयाब हो पाएगी कांग्रेस?
कांग्रेस लगातार अपने पुराने जातीय गठजोड़ को साधने में जुटी है, लेकिन हर बार उसे नाकामी मिलती है। इस बार उसने बहुजनों को साधने के लिए गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी को साथ लिया। उनके जरिए भीम आर्मी पर नजर डाली। भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर के खिलाफ हो रही कार्रवाई को बीजेपी का अन्याय बताकर रिहाई के लिए साथ दिया। आठ मार्च से भीम आर्मी की तरफ से चंद्रशेखर की रिहाई को लेकर शुरू किए जाने वाले जेल भरो आंदोलन को भी कांग्रेस का साथ मिलने की उम्मीद है।
बता दें की तीन दशक पहले तक कांग्रेस बहुजन, मुस्लिम और ब्राह्मण के बल पर सत्ता हासिल करती रही है। 1986 में कांशीराम की कोशिश से बीएसपी के अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस के बुरे दिन शुरू हो गए। बहुजन पूरी तरह कांग्रेस से छिट गया और बीएसपी के साथ जुड़ गया। इसी दौर में जनता दल के उदय और बाद में मुलायम सिंह यादव के सीएम बनने से मुस्लिमों का रुझान उनकी तरफ हो गया। 1989 में जब मुलायम सिंह यादव सीएम बने तो कुछ दिन बाद समाजवादी पार्टी अस्तित्व में आ गई। उसके बाद मुसलमान कांग्रेस से अलग हो गया। कांग्रेस की तीसरी बड़ी ताकत ब्राह्मण का रुझान भी बीजेपी की तरफ हो गया। तीन बड़ी जातियों का साथ छूटने से कांग्रेस हाशिये पर आ गई और आज तक सत्ता में लौटकर नहीं आई।
मुस्लिमों को साधने के लिए कांग्रेस के पास प्रदेश में कोई बड़ा चेहरा नहीं है। कांग्रेस ने चर्चित इमरान मसूद को सूबे में उपाध्यक्ष बनाया हुआ है लेकिन वह सहारनपुर और आसपास की राजनीति से ऊपर नहीं उठ पाए हैं। दूसरे प्रदेश उपाध्यक्ष डॉक्टर यूसुफ कुरैशी, नसीब पठान को प्रदेश का नेता नहीं मानती कांग्रेस। नसीमुद्दीन सिद्दीकी बीएसपी में मायावती के बाद दूसरे नंबर के नेता माने जाते थे। पूरे सूबे में उनका नेटवर्क है। मुस्लिमों के साथ बहुजनों और अति पिछड़े तक उनकी पहुंच है। नसीमुद्दीन को साथ लेकर एक तीर से कई शिकार का मौका कांग्रेस को मिल सकता है। राजनीतिज्ञों का मानना है कि सिद्दीकी और कांग्रेस, दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत है। इसके बाद का समय 2019 के चुनाव का है जहां काग्रेंस का पूरा निशाना बहुजनों- मुस्लिमों को अपने पक्ष में करना रहेगा जिसके लिए नसीमुद्दीन तो बड़ा चेहरा मिल जाायेंगे पर बहुजनों में बड़े चेहरे की अभी भी काग्रेंस को तलाश ही है।
The Rampant Cases of Untouchability and Caste Discrimination
The murder of a child belonging to the scheduled caste community in Saraswati Vidya Mandir…