RSS और Modi की राजनीति !
राहुल गांधी आजकल विद्वान, दार्शनिक और इंटेलेक्चुअल की मुद्रा में ज्ञान बांच रहे हैं, नोबेल और क्लासिक विद्वानों से विमर्श कर रहे हैं और देश के बुद्धिजीवियों और समझदारों को लगातार संबोधित और आकर्षित कर रहे हैं! उन्हें बुद्धिजीवियों और समझदारों की प्रशंसा भी मिल रही है! और इस तरह उनको लगता है कि बौद्धिकों के बीच अपनी विद्वानीयत वाली छवि बना कर आरएसएस और मोदी की पोलिटिक्स का सामना किया जा सकता है!
शायद उनको पता ही नहीं है कि इस देश के बुद्धिजीवियों, क्रांतिकारियों या इटेलेक्चुअलों की हैसियत आरएसएस या मोदी की नजर में धेले भर की नहीं है! मोदी या आरएसएस की पोलिटिक्स का एक भी उदाहरण इन बुद्धिजीवियों या क्रांतिकारियों को न संबोधित करता है, न इनकी क्लासिक बौद्धिक प्रतिक्रिया की फिक्र करता है!
आरएसएस-भाजपा ने अपने लिए ‘विशेष जनता’ का निर्माण किया है, जो अपना गला काटने वालों को भी अपने उद्धारक के तौर पर देखती है! सवालों से पूरी तरह दूर… आस्था और यहां तक कि पारलौकिकता की हद तक..! अगर सड़ती-गलती इस जनता को संबोधित करने का कोई तरीका निकाल सकिए… तो ठीक, वरना अर्थशास्त्र की विद्वानीयत किसी को इटेलेक्चुअल नेता का इमेज तो बख्श सकता है, लेकिन अगर आम जनता का नेतृत्व नहीं मिल सका, तो उस विद्वानीयत की उपयोगिता भी निल बटे सन्नाटा है!
सिर्फ दो-तीन साल और मौजूदा स्थिति बनी रह गई, तो गेम यही है कि भाजपा के बरक्स कांग्रेस तो किसी कोने में खड़ी दिख भी जाएगी, बाकी किसी दूसरे को भाजपा या कांग्रेस के खुले दरवाजे में किसी एक में घुसना पड़ेगा या फिर खत्म होना पड़ेगा! तब लोकतंत्र एक अचार की तरह होगा, जो सबसे लजीज़ खाने के स्वाद को भी खा जाता है..! समांतर पार्टियों के भीतर राजनीति को राजनीति की तरह नहीं देखने का हासिल यही हो ही सकता है..!
ये लेख अरविंद शेष के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है.
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