Home International Political गुजरात में प्रदर्शन कर रहें आदिवासियों को पुलिस ने लिया हिरासत में?
Political - Politics - November 1, 2019

गुजरात में प्रदर्शन कर रहें आदिवासियों को पुलिस ने लिया हिरासत में?

सत्ता में आने के बाद 2014 से हर साल प्रधानमंत्री मोदी की सरकार सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाती है. इस साल राष्ट्रीय एकता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात पहुंचे. सरदार वल्लभ स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी पर अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “आज, सबसे ऊंची मूर्ति के नीचे हम सरदार की आवाज़ सुन सकते हैं. और मैं खुश हूं कि मैं सरदार के सपने को सच कर पाया. सरदार के जन्मदिन पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख एक सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं. साथ ही उन्होनें कहा कि अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर को सिर्फ अलगाववाद और आतंकवाद दिया.

ये देश में अकेली ऐसी जगह थी जहां अनुच्छेद 370 मौजूद था. अनुच्छेद 370 के हटने के बाद उनकी आत्मा को शांति मिलेगी. सरदार पटेल ने कश्मीर को भारत में मिलाने का यहीं सपना देखा था. तो वही दूसरी तरफ पीएम मोदी के भाषण के दैरान स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी बनाने के लिए ज़मीनें ली गईं आदिवासियों की जमींन पर आदिवासी लोग प्रदर्शन कर रहे थे.

आपको बता दें कि ये स्थानीय आदिवासी ज़मीन और रोज़गार के मुद्दे को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे और राष्ट्रीय एकता दिवस को ‘काला दिवस’ कह रहे थे. लेकिन स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी के नज़दीक सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं, जिसकी वजह से वहां प्रदर्शन नहीं हो सके. लेकिन इन लोगों ने गांवों में इकट्ठा होकर प्रदर्शन किए. जिसकी वजह प्रदर्शन कर रहे कई लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया और उन्हें राजपीपला पुलिस मुख्यालय ले गई.

आदिवासी लोगों का दावा है कि स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी के लिए उनकी ज़मीने ले ली गई, लेकिन उन्हें उचित रोज़गार नहीं दिया गया. साथ ही उन्होने ये भी कहा कि उन्हें स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी के नज़दीक फेरीवाले के तौर पर खाने का सामना बेचने की इजाज़त दी गई थी, लेकिन अब उन्हें इससे रोक दिया गया है. बहरहाल आदिवासी लोग सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि हमें कुछ नहीं चाहिए हमें बस रोजगार दे लेकिन सरकार ने विभिन्न पर्यटन स्थलों के विकास के लिए उनकी ज़मीनें ले ली लेकिन उचित मुआवज़ा और रोज़गार देने का वादा पूरा नहीं किया गया. वही ये कहना लाजिमी होगा कि क्या राष्ट्र की चिंताओं और विमर्श से आदिवासियों को अधिकारिक तौर पर बाहर कर दिया गया है?

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