लालू यादव को ललुआ कहने की मानसिकता क्या है?
Published By- Aqil Raza
By- Prashant Tandon
लालू यादव की राजनीति क्या है. तमाम राजनीति विज्ञान के जानकारों से साफ और एक लाइन में मुझे मेट्रो स्टेशन और अपने घर के बीच बिहार के रहने वाले एक रिक्शा चालक ने कुछ साल पहले समझा दी थी. उसने कहा लालू जी ने हमे क्या दिया है आप लोग कभी नहीं समझ पाएंगे. सामने से कोई बड़ा आदमी (सवर्ण) आ जाये तो हम साइकिल से उतर कर पैर छूते थे. लालू जी के आने के बाद अब हम किसी के पैर नहीं छूते हैं हाथ मिलाते हैं.
इस वाकये को दोबारा लिख रहा हूँ क्योंकि लालू की राजनीति को इससे बेहतर कोई और नहीं बता पाया.
लालू यादव ने विकास की असल ज़मीन तैयार की है. उन्होने वंचित समाज को आत्मसम्मान और आत्मविश्वास दिया. उनकी राजनीति ने सदियों से शोषित समाज को वो रास्ता दिखाया है जिस पर चलकर वो विकास के स्टेक होल्डर बन सकते हैं. इसके बगैर विकास का फायदा उन्ही तक पहुंचता है जो पहले से लाइन में आगे खड़े हैं.
लालू की राजनीति कह रही है कि लाइन फिर से बनेगी बस इसी बात पर लालू यादव लालुआ हो जाते हैं. सवर्ण समाज में लालू से नफरत की असल वजह भी यही है. जिस टीवी ऐंकर ने ऐसा कहा वो उसी समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है जिसे इस नई लाइन से दिक्कत है.
भ्रष्टाचार में सुखराम से लेकर सुरेश कलमाडी दर्जनों नेता जेल गए हैं पर उनके प्रति ऐसी हिकारत भरे अल्फ़ाज़ सुनने को नहीं मिले जैसे लालू यादव या मायावती के लिये सुनने को मिलते हैं.
एक खतरनाक ट्रेंड और देखने को मिला कि जो लोग धर्म छोड़ कर नास्तिक हो गए लेकिन जाति का असर वहां भी देखने को मिला. बेगूसराय में दो राजनीतिक दलों के तालमेल का मामला था जिसकी अपनी अंकगणित और समीकरण होते हैं. वो तालमेल नहीं हो पाया तो इस टीवी ऐंकर जैसी ही शब्दावली वहां से भी सुनने को मिली जो सर्वहारा के सिद्धांतों के समर्थक रहे हैं.
ये ट्रेंड भविष्य की तस्वीर दिखा रहा है कि जब वंचित समाज अपने हक़ का दावा पेश करेगा तो कौन किस तरफ खड़ा दिखेगा.
~ Via Prashant Tandon
(लेखक के अपने निजी विचार हैं)
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