Home Social कभी धमकी, कभी FIR! क्यों पत्रकारों की आवाज पर अंकुश लगाने की हो रही है कोशिश?
Social - State - January 9, 2018

कभी धमकी, कभी FIR! क्यों पत्रकारों की आवाज पर अंकुश लगाने की हो रही है कोशिश?

By: Sushil Kumar

बेबाकी और स्वतंत्रता से अपनी आवाज रखने वाली पत्रकारिता वक्त के बेहद बुरे दौर से गुजर रही है। वैसे तो अब पत्रकारिता बची ही नहीं, सबकुछ धंधे में तब्दील हो गया है। लेकिन आज भी जिन चुनिंदा पत्रकारों में इसकी साख बचाने का जज्बा है तो उनको सत्ताधारी दबाने की कोशिश में लगे हैं। या तो उनके मुताबिक पत्रकारिता करो या फिर मुंह बंद करके बैठ जाओ!

बीते कुछ दिनों में पत्रकारों की हत्याएं, धमकी देने के सिलसिलें ने काफी काम किया गया है। चाहे वो गौरी लंकेश का मामला हो या फिर कांचा इलैया या अमितशाह के बेटे जयशाह के खिलाफ स्टोरी करने वाली रिपोर्टर हो। ताजा मामला द ट्रब्यून की रिपोर्टर का सामने आया है।

यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया UIDAI ने द ट्रिब्यून के पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। दरअसल अखबार के एक रिपोर्टर ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि कैसे पैसों के बदले आधार कार्ड की जानकारी आसानी से खरीदी जा सकती है। पुलिस एफआईआर में अखबार के रिपोर्टर के अलावा उन लोगों के नाम भी शामिल हैं जिन्होंने डाटा बेचने की बात कही थी।

UIDAI के उपनिदेश बीएम पटनायक ने ‘द ट्रिब्यून’ अखबार में छपी खबर के बारे में पुलिस को सूचित किया और रिपोर्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। बीएम ने बताया कि अज्ञात विक्रेताओं से व्हाट्सएप पर एक सेवा खरीदी थी जिससे एक अरब से अधिक लोगों की जानकारियां मिल जाती थी।

रिपोर्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद पत्रकार जगत में आक्रोश है और उन्होंने इसकी कड़े शब्दों में निंदा की है।

‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने इस मामले में रिपोर्टर रचना खैरा के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने की निंदा की है। उन्होंने अखबार और उसके रिपोर्टर पर से केस हटाने की मांग की है।

इंडिया टुडे के journalist राहुल कंवल ने लिखा कि “रिपोर्टर के खिलाफ FIR करना पूर्ण रूप से गलत हैं, अगर कोई आपकी गलती निकलता है तो उसको दूर करने की कोशिश करनी चाहिए न कि गलती निकलने वाले को डराने की. journalist को धमकाने की कोशिश मत करो”

पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का यह कोई पहला मामला नहीं है इससे पहले भी पत्रकारों पर कार्रवाई होती रही है। लेकिन ऐसे में सवाल इस बात का है कि क्यों पत्रकारों की आजादी पर अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है? क्या यही है फ्रीडम ऑफ स्पीच जिसे लोकतांत्रिक देश में सबसे मजबूत स्तंभ माना जाता है?

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