प्रतिमाओं को नुकसान पहुंचाने से कैसे नहीं है लोकतंत्र को खतरा ?
By- Aqil Raza
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में नई सरकार बनने के बाद अब एक और नए विवाद ने जन्म ले लिया है। आरोप है कि बीजेपी के कार्यकर्ता पुरानी बनी प्रतिमाओं को नुकसान पहुंचा रहे हैं। 5 मार्च को त्रिपुरा के बेलोनिया में बुलडोजर से रूसी क्रांति के नायक व्लादिमिर लेनिन की प्रतिमा को गिरा दिया गया।
6 मार्च को तमिलनाडू के वेल्लुर जिले में महान समाज सुधारक और द्रविड़ आंदोलन के संस्थापक ईवी रामासामी ‘पेरियार’ की प्रतिमा क्षतिग्रस्त कर दी गई। उसके बाद कोलकाता के टॉलीगंज में लगी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा को निशाना बनाया गया है। वहीं यूपी के मेरठ से भी संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा को भी तोड़े जाने की खबर सामने आ रही है।
लेकिन सवाल कई हैं इन प्रतिमाओं पर हमलों के बीच, क्यों समाज सुधारक और लोगों के आदर्श बने इन विद्वानों की प्रतिमाएं तोड़ी जा रही हैं. आखिर क्या किसी की प्रतिमा तोड़कर उसके विचारों को दफन किया जा सकता है. क्या इन प्रतिमाओं पर हमला लोकतंत्र पर हमला नहीं है. आपको बता दें कि पेरियार ने न सिर्फ नस्लीय और जातीय भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई बल्कि देश की आधी आबादी यानी की महिलाओं को भी अपने हक की बात करने के लिए प्रेरित किया जो सबसे ज्यादा शोषित थी।
पेरियार ने अपने आंदोलन के जरिए बाल विवाह, देवदासी प्रथा, स्त्रियों के शोषण का जमकर विरोध किया। वहीं कुछ लोग लेनिन के बारे में कह रहे हैं कि वो विदेशी थे इसलिए भारत में उनकी मूर्ति का क्या मतलब है। लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिए कि भगत सिंह देश की आज़ादी के लिए फाँसी को गले लगाने से कुछ ही देर पहले लेनिन की किताब पढ़ रहे थे। उन्होंने कहा था, “एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिलने दो।”
ऐसे में सवाल यह है कि क्या विदेशियों को दूर रखने वाले तर्क से हम अपने देश में विदेशी वैज्ञानिकों के आविष्कारों को जला देंगे या प्रगतिशील विदेशी विचारकों के विचारों को बर्बरता की टोकरी में फेंक देंगे? कल कहा जाएगा कि भारत में सेब गिरेगा तो नीचे नहीं जाएगा क्योंकि इसका वैज्ञानिक आधार बताने वाला न्यूटन भारत में नहीं जन्मा था। संसद भवन और राष्ट्रपति भवन भी विदेशी इंजीनियर ने बनाया, तो क्या उन्हें भी गिरा देना चाहिए? लेकिन हमें समझना होगा कि विज्ञान और विचार देश की सीमा से परे होते हैं।
प्रतिमाओं को तोड़े जाने को लेकर सियासी गलियारों में भी हवा तेज हो गई है। एक तरफ जहां कुछ लोग इन प्रतिमाओं को तोड़े जाने का विरोध कर रहे हैं तो वहीं बीजेपी के नेता एच राजा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखकर इस सुलगती आग में घी डालने का काम किया है. उन्होंने लिखा कि “लेनिन कौन है? भारत से उनका क्या रिश्ता है? वामपंथियों का भारत से क्या रिश्ता है? आज त्रिपुरा में लेनिन की प्रतिमा को ध्वस्त कर दिया गया है।
कल तमिलनाडु में ईवीआर रामास्वामी (पेरियार) की प्रतिमा को ध्वस्त कर दिया जाएगा।” लेकिन सवाल इस बात का है कि देश में किस तरह का माहौल बनाया जा रहा है, जहां सिर्फ एक ही विचारधारा का वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है. लोकतंत्र की ताकत सभी विचारधाराओं को साथ लेकर चलने की होती है। जिन विद्वानों की हमारे समाज में एक अहम भूमिका रही हो उनका इस तरह अपमान करना कितना सही है?
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