Home Social प्रो. हेनी बाबू के उत्पीड़न के खिलाफ जन संस्कृति मंच, जनवादी लेखक मंच, दलित लेखक संघ और प्रगतिशील लेखक संघ का संयुक्त बयान।
Social - September 12, 2019

प्रो. हेनी बाबू के उत्पीड़न के खिलाफ जन संस्कृति मंच, जनवादी लेखक मंच, दलित लेखक संघ और प्रगतिशील लेखक संघ का संयुक्त बयान।

प्रोफेसर हनी बाबू के पुलिसिया उत्पीड़न के खिलाफ जन संस्कृति मंच, जनवादी लेखक मंच, दलित लेखक संघ और प्रगतिशील लेखक संघ का संयुक्त बयान।

दिल्ली, 11 सितम्बर 2019

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू के घर पर पूना पुलिस द्वारा मारे गए अवैध ”बिना वारंट” छापे, तलाशी और जाब्ते ही कार्रवाई का जन संस्कृति मंच, जनवादी लेखक मंच, दलित लेखक संघ और प्रगतिशील लेखक संघ पुरजोर विरोध करते हैं कड़ी निंदा करते हैं।

हनी बाबू अंग्रेज़ी साहित्य के अध्येता, शोधप्रज्ञ और लोकप्रिय प्रोफ़ेसर होने के साथ एक जाने माने समाज चिंतक और सांस्कृतिक व्याख्याता भी हैं वे जातिवादी उत्पीड़न, भाषा वर्चस्व और लैंगिक अन्याय के विरुद्ध सक्रिय बौद्धिक आवाज़ों में एक प्रतिष्ठित नाम हैं। पुणे पुलिस का कहना है कि ये छापा भीमा-कोरेगांव मामले के संबंध में मारा गया है। इस मामले में पहले गिरफ़्तार किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के विरुद्ध पुलिस अब तक कोई ठोस सबूत नहीं दिखा पाई है। इसी कारण माननीय सर्वोच्च अदालत ने ऐसी और गिरफ्तारियों पर रोक लगा रखी है।

भीमा-कोरेगांव या ऐसे ही मामलों में मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में फंसाना, उन्हे परेशान करना, और दमन के खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ को खामोश करने के लिए पुलिस, न्याय पालिका के नियमों को विकृत करके शिक्षकों, शिक्षाविदों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, मजदूर नेताओं आदि को परेशान करना वर्तमान सरकार की कार्यशैली बन चुका है।

भीमा-कोरेगांव के असली अपराधियों को देश की सत्ता के सर्वोच्च पदों पर आसीन लोगों का वरद-हस्त प्राप्त है और जातीय दमन के खिलाफ आवाज़ उठाना अपराध माना जा रहा है।

डॉ. हनी बाबू, दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर होने के साथ-साथ लोकतांत्रिक अधिकारों, सामाजिक न्याय के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता भी हैं। उनके घर पर बिना किसी वारंट के छापेमारी की ये कार्यवाही, उनकी किताबों, लैपटॉप, पेन ड्राइव आदि सामान को जब्त करने की ये कार्यवाही असल में उन्हे और तमाम लोकतंत्र पसंद, अमन पसंद, सामाजिक न्याय कार्यकर्ताओं के लिए धमकी है। पिछले कुछ सालों में पुलिस का यही पैटर्न रहा है, पहले धमकी स्वरूप छापे, और फिर छापों में मिले जब्त सामान को किसी ना किसी कुर्तक के साथ राज्य के खिलाफ होने वाली कार्यवाही बता कर सामाजिक न्याय के हक में आवाज़ उठाने वालों को जेल भेजना, या मुकद्मों में फंसाना। जन संस्कृति मंच और साथी लेखक संगठन इस कार्यवाही का विरोध करते हैं । बिना वारंट छापेमारी, लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ कार्यवाही है। हम इस तरह की धमकी भरी छापेमारियों, और प्रतिरोध की आवाज़ों को खामोश करने वाली कार्यवाहियों का विरोध करते हैं और नागरिक समाज से इसके विरुद्ध सक्रिय प्रतिरोध करने का आह्वान करते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंड़ल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

Remembering Maulana Azad and his death anniversary

Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…