वह पत्र जिसने रफ़ाल मामले में मोदी सरकार का पर्दाफ़ाश कर दिया
Published By- Aqil Raza ~
24 नवंबर, 2015 को उप सचिव (एयरफोर्स) के दस्तख़त से जारी रक्षा मंत्रालय के इस दस्तावेज का अविकल अनुवाद प्रस्तुत है. इसके जरिए आप उस निष्कर्ष तक पहुंच सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किस हद तक अपने मित्र अनिल अंबानी को लाभ पहुंचाने के लिए विकल थे कि रक्षा मंत्रालय की प्रतिष्ठा और हैसियत को दांव पर लगाकर खुद ही लेनदेन का एक वैकल्पिक चैनल खोल रखा था.
-अतुल चौरसिया
मंत्रालय के उस दस्तावेज़ का हिंदी अनुवाद जिसे ने The Hindu छापा है-
“अत: यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा इस तरह की समांतर बातचीत से रक्षा मंत्रालय और मोल-भाव करने वाले भारतीय दल की हैसियत कमजोर हुई है. हमे प्रधानमंत्री कार्यालय को यह सलाह देनी चाहिए कि ऐसा कोई भी अधिकारी जो भारतीय मोल-भाव वाले दल का सदस्य नहीं है, वह फ्रांसीसी सरकार के अधिकारियोंं के साथ किसी भी समांतर परस्पर बातचीत से दूर रहे. किसी दशा में अगर प्रधानमंत्री कार्यालय मौजूदा दल और रक्षा मंत्रालय के मोल-भाव से संतुष्ट नहीं होता है तो पीएमओ की तरफ से एक संशोधित प्रस्ताव को यथोचित समय पर प्रस्तुत किया जा सकता है.”
(पत्र जो ‘दी हिन्दू’ ने छापा)
( The Hindu की इस रिपोर्ट ने हिन्दुस्तानी राजनीति में हलचल पैदा कर दी है. मोदी सरकार में रक्षा मंत्रालय सम्हाल रही निर्मला सीतारमण तल्ख़ तेवरों के साथ सरकार का बचाव करतीं मीडिया कैमरों के सामने आईं और (The Hindu की रिपोर्ट पर इस पत्र को अधूरा पेश करने का आरोप लगाया। इसके लिए रक्षा मंत्रालय की ओर से पत्र की वह प्रति भी जारी की गई है जिसमें तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर की टिप्पणी भी शामिल है. सं.)
पार्रिकर ने क्या लिखा है पढ़ें-
“..ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय और फ़्रांसीसी राष्ट्रपति कार्यालय उस मामले की प्रगति की निगरानी कर रहे हैं, जो कि समिट बैठक का एक आउटकम था। पैरा 5 एक ओवर रिऐक्शन प्रतीत होता है। रक्षा मंत्रालय के सचिव को प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव के साथ सलाह मशविरे से इस मामले को सुलझा लेना चाहिए।”
पूरे पत्र का आधा सच
(पत्र जो सफ़ाई के बतौर आया)
द हिंदू के रफ़ाल घोटाले वाले पत्र की दो व्याख्याएं हो सकती हैं एक तो पत्र को जानबूझकर काटा गया या फिर लीक करने वाले ने उन्हें काटा हुआ पत्र ही दिया हो. यह सफाई द हिंदू को देनी है. अब उस पत्र का पूरा रूप सामने आया है जिसमें तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पारिकर की नोटिंग है कि- रक्षा मंत्रालय के सचिव इसे पीएमओ के साथ आपसी समझदारी से हल कर लें.”
यह नोटिंग पत्र में एयरफोर्स के उपसचिव द्वारा उठाए गए सवाल को खारिज कहां करता है? मूल सवाल- कि प्रधानमंत्री कार्यालय समान्तर लेन-देन फ्रांस के साथ कर रहा था- को इस पूरे पत्र में कहां चुनौती दी गई है? अपनी नोटिंग में पारिकर ने कहीं भी यह सफाई दी कि नहीं प्रधानमंत्री कार्यालय समांतर लेनदेन नहीं कर रहा है? बल्कि पारिकर ने द हिंदू की स्टोरी और एयरफोर्स के उपसचिव के पत्र को वैलिडेट ही किया कि इस तरह का कुछ मिसएडवेंचरिज्म मोदीजी कर रहे थे.
तो जो लोग “पूरा पत्र-पूरा पत्र” लेकर उड़ गए उनको क्या कहा जाय. पहली बात तो ये कि उन्होंने कायदे से पत्र पढ़ा नहीं, कौवा कान ले गया की तर्ज पर कौवे के पीछे भागने लगे. गोदी मीडिया का जो ठप्पा है उसे अपने पीठ से उतारकर सीने पर चिपका लिया. गोदी में बैठने को आतुर कुछ शिशु पत्रकार भी यहां फेसबुक पर एन राम का सिर उतारने का प्रसस्ताव पेश करने लगे. और इन सब का दावा है कि वो पत्रकारिता में नैतिकता बहाली के लिए यह सब कर रहे हैं.
कुछ और तथ्य. पूरे पत्र में परिकर की नोटिंग उप सचिव एयरफोर्स द्वारा पत्र जारी करने की तारीख से पूरे 50 दिन बाद लिखी गई. इतने महत्वपूर्ण विषय पर 50 दिन रक्षा मंत्री सोते रहे. क्यों? एक ही खरीद में 2 समांतर चैनल खुले हुए थे और रक्षा मंत्री को 50 दिन बाद फुरसत मिली. ज़ाहिर है इतने दिनों में प्रधानमंत्री कार्यालय अपना काम निपटा चुका होगा. फिर ये कहना कि आपसी बातचीत से निपटा ले, ज्यादा परेशान होने की ज़रूरत नहीं, ये सब असल मे लीपापोती थी. कोई भी कुशल राजनेता यही करेगा.
(पत्र में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर परिकर की यह टिप्पणी क्या दर्शाती है? यही कि उन्हें मालूम ही नहीं था कि PMO भी इस डील में निगोशिएट कर रहा है। यह पात्र रक्षामंत्री के बतौर एक डेपलोमेटिक रिस्पोंस प्रतीत होता है।
रक्षा मंत्रालय और के इस स्पष्टीकरण के बाद प्रश्न तो अब भी बरक़रार है, PMO किसके लिए बैटिंग कर रहा था.. अनुभवी सरकारी कम्पनी HAL से छीन कर यह डील ‘रिलाइंस डिफेंस’ जैसी नई नवेली कंपनी को क्यों दे दी गई, वह भी रक्षा मंत्रालय को घाटे में डालकर, 41 प्रतिशत बढ़ी कीमतों पर..? -सं.)
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