जानिए कौन है अनुसूचित वर्ग के पहले अरबपति? खुद के दम पर खड़ा किया साम्राज्य
एक ऐसे वर्ग को जिसे किसी दौर में संपंत्ति, शिक्षा पाने का अधिकार तक नहीं हुआ करता था. लेकिन बाबा साहेब डॉ अंबेडकर द्वारा अधिकार दिलाए जाने के बाद हर वर्ग, हर शख्स समाज में अपनी पहचान बना रहा है और अपने समाज का नाम रोशन कर रहा है।
आज हम कहानी बताएंगे एक शख्स की जो अनुसूचित वर्ग से होने के बावजूद उसने अपने जज्बे, जुनून और मेहनत के बल पर फर्श से अर्श तक का सफर तय किया, जिसने समाज की उस मानसिकता को तोड़ा जिसमें कहा जाता था कि उद्योग व्यवसाय अनुसूचित जाति के लिए नहीं है।
उस वक्त किसी ने कल्पना भी नहीं कि होगी कि देहरादून के मध्यमवर्गीय परिवार में 1969 को जन्मा राजेश सरैया नाम का यह बालक भारत का पहला अनुसूचित वर्ग का अरबपति बनेगा।
राजेश सरैया, यह नाम उस वक्त चर्चा में आया जब भारत सरकार ने सन् 2014 में उनकी औद्योगिक उपलब्धियों के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। आज राजेश स्टील, कोयला रसायन व अन्य उद्योगों के क्षेत्र में पांच सौ मिलियन अमरीकी डॉलर का एम्पायर खड़ा कर चुके है।
राजेश ने अपनी प्राथमिक शिक्षा देहरादून से प्राप्त की इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए रशिया चले गए। उन्होनें रशिया के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। राजेश ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत लौटने के बजाए यूक्रेन में ही रहकर अपने देश का नाम रोशन करने की ठान ली। राजेश पढ़ाई में तो अव्वल रहे ही साथ ही उन्हें रशियन भाषाओं समेत कई अन्य भाषाओं का ज्ञान भी था।
कुछ इस तरह शुरु किया कारोबार
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजेश कहते हैं कि वह अपने शुरुआती दिनों में लंदन से इलेक्ट्रानिक सामान लाकर रशियन देशों में बेचा करते थे। उसी दौर में भारत के मित्तल परिवार के सदस्य लक्ष्मी मित्तल, प्रमोद मित्तल व विनोद मित्तल स्टील बिजनेस के सिलसिले में रशिया आते जाते रहते थे। एक बार प्रमोद मित्तल बिजनेस के लिए यूक्रेन आए। और अचानक एक होटल के बाहर राजेश का प्रमोद से मिलना हो गया। प्रमोद को रशियन भाषा नहीं आती थी, राजेश अक्सर ऐसे व्यापारियों और वीआइपी लोगों के साथ रशियन भाषा के ट्रांसलेटर का काम कर अपने बिजनेस के लिए पैसा जुटाते थे। प्रमोद मित्तल राजेश की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए और अपने मित्तल स्टील के ऑफिस में पांच सौ डॉलर महीने के वेतन पर रख लिया। कुछ समय नौकरी करने के बाद उन्हें लगा कि अब खुद का व्यवसाय शुरू करना चाहिए। स्टील बिजनेस के ऑफिस में काम करते हुए उन्हें भी इस बिजनेस के बारे में काफी जानकारी हो गई थी।
उन्होंने मल्टी एरा के नाम से कम्पनी बनाकर स्टील ट्रेडिंग का काम शुरू कर दिया। अभी बिजनेस जमने ही लगा था कि तभी रूस में गहरा राजनीतिक संकट पैदा हो गया। रूस के टुकड़े हो गए और उनका उभरता हुआ बिजनेस ठप हो गया। अब राजेश के पास कुछ नहीं बचा था। भारत लौटना समझदारी नहीं थी। इसलिए वहीं पर बिजनेस खड़ा करने के लिए इधर-उधर हाथ पांव मारना शुरू कर दिया। यूक्रेन में कुछ शान्ति होने लगी तो एक बार फिर से राजेश का बिजनेस चल निकला। इसी दौरान उन्होने “स्टील मॉन्ट” कम्पनी की नींव रखी । 1994 में उनकी कम्पनी को रतन टाटा की कम्पनी टाटा स्टील से बड़ा ऑर्डर मिला। रशियन व यूरोपीय देशों के बाद अब भारत से भी उन्हें बड़े ऑर्डर मिलने लगे। आज पूरी दुनिया में स्टील मॉन्ट का बहुत बड़ा कारोबार है। मित्तल व टाटा जैसी बड़ी कम्पनियों के साथ उनका समूह आज बिजनेस कर रहा है।
विदेशों में कर रहे हैं भारतीय संस्कृति का प्रचार
राजेश ने पूर्वी यूरोप में इंडियन कल्चर सेंटर “संस्कृति” नाम की संस्था बनाई है। जो यूक्रेन में जन्में भारतीय बच्चों में भारतीय संस्कृति की समझ और पूर्वजों की परंपराओं से परिचित करा रहे हैं। इस संस्था को इनकी पत्नी कस्तूरी सरैया संभालती हैं।
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