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Social - State - January 26, 2019

गणतंत्र के नाम पर षडयंत्र ?

By- ~ सुरेश द्रविड़ ~

आखिर वास्तविक रूप में गणतंत्र का देश क्यों नही बना भारत देश ?

साथियों गणतंत्र का अर्थ होता है कि ऐसा राष्ट्र जिसकी सत्ता जनसाधारण में समाहित हो । साथियों क्या उस जनसाधारण को ये अधिकार मिले? उस जनसाधारण को यह अधिकार आज तक क्यों नहीं मिले ?

आप लोगों का ये उत्तर हो सकता है कि जनसाधारण ही वोट डालकर सरकारों को चुनता है तो फिर उसके द्वारा चुनी गई सरकारें ,उस जनसाधारण के लिए काम क्यों नहीं करती ?

मेरा ये भी सवाल है कि क्या इस देश का जनसाधारण अपनी बुद्धि के अनुसार, अपने विवेक के अनुसार वोट डालने में सक्षम है ? आप भले ही यह कहे कि हां सक्षम है , लेकिन व्यवहारिक रूप में ये बात सत्य नहीं है । आखिर व्यवहारिक रूप में ये बात सत्य क्यों नहीं है ? क्योंकि इस देश की सरकारों ने जनसाधारण के पक्ष में इस देश का माहौल पैदा ही नहीं होने दिया ।

इस देश का जनसाधारण अपने वोट का इस्तेमाल प्रचार-प्रसार, पैसा,बहाव, कौन जीतेगा , कौन जीत रहा है आदि पर निर्भर करता है और यह माहौल इस देश के राजनेता, पत्रकार,पुंजीपती, सामंतवादी, मुफ्तखोर, मुनाफाखोर,राजचोर, ब्राह्मणवादी आदि मिलकर तैयार करते है , इस माहौल से देश की सरकारें तय होती है ।

क्या हमारे संविधान निर्माताओं का यही लक्ष्य और उद्देश्य था ? उनका लक्ष्य यदि ये नहीं था तो फिर क्या था ? वह लक्ष्य देश की आजादी के 72 वर्षों में भी क्यों नहीं हासिल हो पाया ? इन 72 वर्षों में देश के साथ गद्दारी किस किस ने की और क्यों की ? वह देश का दुश्मन कौन है जिसने देश के जनसाधारण को आजादी की सांस नहीं लेने दी ? फिर कैसे कह सकते है कि देश में गणतंत्र है ?

सबसे ज्यादा बेरोजगार और सबसे ज्यादा भूखे यहीं पर है फिर कैसे कह सकते है कि गणतंत्र है ? गणतंत्र का अर्थ है , जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का शासन। यदि गणतंत्र का यही अर्थ है तो इस देश में छोटी छोटी बच्चियों के साथ क्यों बलात्कार हो रहे है और वो भी उनकी इच्छा के विरुद्ध ? क्या उनके लिए इस देश का गणतंत्र मर गया है ? यदि यह गणतंत्र मर गया है तो फिर गणतंत्र गणतंत्र क्यों चिल्लाया जा रहा है ? यह षडयंत्र क्यों जारी है ? क्या गणतंत्र जैसे शब्दों से ही संतुष्ट हो जाना उचित है ?

इस देश में न्याय पाने के लिए आम आदमी अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है तो भी उसे न्याय नहीं मिल पाता और बहुत से तो ऐसे लोग हैं कि वे न्याय लेने की सोच भी नहीं सकते ,न्याय तो उनके लिए बहुत ही दूर की बात है । आखिर अभी भी इस देश में ऐसा हाल क्यों है ? बहुत से लोगों एफ आई आर भी दर्ज नहीं होती , इस देश में जब एफआईआर भी जब सही तरीके से लिखी नहीं जाती , तो फिर गणतंत्र का क्या अर्थ रह जाता है ?

गण शब्द का अर्थ है संख्या या समूह, गणतंत्र या गणराज्य का शाब्दिक अर्थ है बहुसंख्यक का शासन , लेकिन इस देश का बहुसंख्यक हर जगह उत्पीड़न का शिकार है । देश में सुई से लेकर जहाज बनाने के श्रमिक के तौर पर यह बहुसंख्यक वर्ग ही योगदान देता है , लेकिन इस वर्ग के लिए न अच्छे स्कूल है और ना ही चिकित्सा के अच्छे प्रबन्ध है । इसके साथ यह भेदभाव क्यों है ? क्या गणतंत्र में यह भेदभाव उचित है ? इस भेदभाव वाले तंत्र को गणतंत्र कहा जा सकता है ? नहीं, नहीं कदापि नहीं । आइए सच्चे अर्थों में , वास्तविक रूप में गणतंत्र स्थापित करें ।

इस देश का बहुसंख्यक बहुजन समाज आज भी इस देश का हुक्मरान नहीं है , जबकि संख्या में वह बहुसंख्यक हैं । बहुसंख्यक वर्ग के हाथ में देश की शासन सत्ता होनी चाहिए। इस बहुसंख्यक वर्ग को किसने अलाचर और बेबस किया है और क्यों किया है ? इस शैतानी करने वाले को कब दण्ड मिलेगा ? इस देश का बहुसंख्यक वर्ग अनुसूचित जाति, जनजाति, और अन्य पिछड़ा वर्ग आज भी भेदभाव का शिकार है , इस देश में संविधान में मौजूद अधिकार भी उसे नहीं मिल पा रहे । इनके अधिकारों से इस लोकतंत्र में कौन खिलवाड़ कर रहा है ? यह शैतानी करने वाला कौन है ? क्या गणतंत्र में यह शैतानी जायज है ?

गणतंत्र का मतलब सरकार के उस रुप से है जहां राष्ट्र का मुखिया राजा नहीं होता , लेकिन भारत में सत्तापक्ष के लोग निरंकुश हो रहे है ? संविधान के नीति नियमों से खिलवाड़ करके संविधान विरोधी निर्णय दे रहे है ? क्या गणतंत्र में ये जायज है ? मुझे नहीं लगता कि ऐसे नौटंकी टाईप गणतंत्र की हमें जरूरत है । संविधान को पूर्ण रूप से लागू करने से ही गणतंत्र स्थापित हो सकता है ।

भारत के प्रधानमंत्री से मेरा आग्रह है कि कल इस बात की चर्चा करिए कि कहां कहां पर संविधान को मौजूदा सरकार ने फेल किया है ? कहां कहां पर इस देश के बहुसंख्यक बहुजन समाज के अधिकारों से धोखाधड़ी की गई है ? इस धोखाधड़ी से देश में गणतंत्र स्थापित नहीं हो सकता ।

देश में बहुत सारी राजनैतिक पार्टियां भी गणतंत्र में बाधा है , वहां मठाधीश, सुप्रीमों, परिवारवाद की पराकाष्ठा जोरों पर है , लोकतंत्र के नाम पर एक फुटी कौड़ी भी नहीं है , ऐसे लोगों से क्या उम्मीद कर सकते है गणतंत्र की ?

देश की बहुसंख्यक जनता से अपील है कि आइए इस नौटंकीबाज गणतंत्र का पर्दाफाश करें और सच्चे अर्थों में, वास्तविक रूप में गणतंत्र स्थापित करने का प्रयास करें और इसके लिए लोगों को कन्विन्स करें , लामबंद करें । इस लामबंदी के लिए अधिक से अधिक त्याग और समर्पण करें ।

~ सुरेश द्रविड़

(यह लेखक के अपने निजी विचार हैं)

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