Home Social Culture सावित्री बाई फुले और फ़ातमा शेख ने कैसे महिला शिक्षा के लिए लड़ाई लड़ी, पढ़िए शानदार लेख

सावित्री बाई फुले और फ़ातमा शेख ने कैसे महिला शिक्षा के लिए लड़ाई लड़ी, पढ़िए शानदार लेख

By: Zulaikha Jabeen

अठारहवीं सदी के पेशवाई युग में ब्राह्मणों के दबाव में जोतिबा फुले के वालिद ने जब अपने शादीशुदा बेटे को घर से निकाल दिया तो सावित्री बाई भी अपने ख़ाविंद के हमराह घर से बाहर निकल आईं। जोतिबा के बचपन के दोस्त गंजपेठ (पुणे) के उस्मान शेख़ ने फुले दंपत्ति को अपने घर में न सिर्फ़ पनाह दी. बल्कि “आत्मनिर्भर गृहस्थी” बसाने की ज़रूरत का हर सामान भी मुहैया कराया. उनका हर तरह से ख़याल रखते हुए उस्मान शेख़ जोतिबा को उनके “मिशन” को आगे बढ़ाने का मशवरा भी देते रहे। लोगों को शिक्षित करने के जोतिबा फुले के ख़ाब को ताबीर देने के लिए उस्मान शेख़ ने अपने घर का एक हिस्सा तैयार करके उन्हें स्कूल खोलने के लिए दे दिया।

ज़रा सोचिए उस “दौरे जाहिलियत” में सामाजिक तौर पे बहिष्कृत कर दिए गए दंपत्ति को “शेल्टर” देना कोई हंसी ठट्ठे का खेल नहीं रहा होगा। और ये भी के उस्मान शेख़ का ताल्लुक़ भी असर रुसूख़ वाले निडर घराने से रहा होगा। चूंकि उस्मान शेख़ जानते थे के सावित्री बाई ख़ुद भी शिक्षित हैं और अपने शौहर के काम में हाथ बंटाने की ख्वाहिशमंद भी हैं, इसलिए उन्होंने सबसे पहले अपने ख़ानदान की औरतों को तालीम याफ़्ता करने का बीड़ा उठाया। सावित्री बाई से गुज़ारिश की के वे उनके घर की औरतों को भी पढ़ना लिखना सिखाएं।

ये कोई कम क्रांतिकारी शुरूआत नहीं थी के गंजपेठ पुणे के उस्मान शेख़ ने अपने ही घर की औरतों को साथ लेकर, ग़ैर मुस्लिम औरतों की तालीम के लिए सावित्री बाई की बतौर टीचर बिस्मिल्लाह (शुरुआत) करवाई। उनकी देखा-देखी अड़ोस-पड़ोस की औरतों को भी मोटिवेट किया जाने लगा। जिन पुरुषों को जोतिबा पढ़ाना शुरू कर चुके थे वे अपने घर/रिश्ते की औरतों को स्कूल में लाने लगे. पढ़ना सीखने वाली औरतों की अच्छी ख़ासी तादाद होने लगी. चूंकि “फ़ातमा शेख़” काफ़ी तेज़ ज़हन की मलिका थीं इसलिए उनके सीखने की रफ़्तार साथ पढ़ने वालों से ज़्यादा रही। यही वजह थी के सावित्री बाई के अलावा जोतिबा भी फ़ातमा शेख़ को सिर्फ़ शिक्षार्थी की तरह नहीं बल्कि फ़्यूचर की टीचर बनाने में जुट गए। और फ़िर उनकी मेहनत रंग लाई. फ़ातमा अब दूसरी औरतों को उनकी पढ़ाई में मदद करने लगीं और देखते ही देखते वे बाक़ायदा पढ़ाने भी लगीं।

सावित्री बाई और जोतिबा के उपकारों को याद करते हुए हमें ये याद रखना होगा के (ओबीसी वर्ग से ताल्लुक़ रखने वाले- बहिष्कृत) फुले दंपत्ति के महात्मा बनने की “राह हमवार” (आसान) करने में गंजपेठ के उस्मान शेख़ का पूरा ख़ानदान (औरतों सहित) न सिर्फ़ पेश-पेश था बल्कि उनके मिशन के हर चरण की मज़बूत ज़मीन भी उस्मान शेख़ और फ़ातमा शेख़ ही रहे हैं।

ब्राह्मण पंडे पुजारी मर्दों के हवस की शिकार बनी “गर्भवती” ब्राह्मण बाल विधवाएं जो समाज के डर से ख़ुदकुशी कर लिया करती थीं या गर्भस्थ शिशु को मार डालती थीं के लिए पहला मेटरनिटी होम (प्रसूतिगृह) उस्मान शेख़ के ही घर में खोला गया था जहां पर ये गुमनाम बाल विधवाएं आकर शांति से अपने बच्चे पैदा करती थीं और सम्मान से घर भेज दी जाती थीं। जच्चा और बच्चा दोनों को सम्मान से जिंदा रखने वाली “छत, दरवाज़े और चूल्हे” उस्मान शेख़ और फ़ातमा ही के घर से थे।

नोट – यह लेख हमें सोशल एक्टीविस्ट जुलेखा जबीं ने भेजा है. इसमें लिखे सारे तथ्यों के लिए लेखकर जवाबदेह है। धन्यवाद

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

बाबा साहेब को पढ़कर मिली प्रेरणा, और बन गईं पूजा आह्लयाण मिसेज हरियाणा

हांसी, हिसार: कोई पहाड़ कोई पर्वत अब आड़े आ सकता नहीं, घरेलू हिंसा हो या शोषण, अब रास्ता र…