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Opinions - Social - State - June 7, 2018

‘एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट के मामले में कोई अध्यादेश नहीं लाएगी सरकार’

By: Deepali Taday

नई दिल्ली। भारत में ब्राह्मणवाद अपनी सोशल इंजीनियरिंग और ओपरेशन के बूते ही बेहद मजबूती से जमा हुआ है। सोशल इंजीनियरिंग की इस व्यवस्था को संसद, प्रशासन, पुलिस, कोर्ट, मीडिया, उद्योग, स्कूल-यूनिवर्सिटी नाम के सात स्तम्भों पर कब्ज़ा करके ब्राह्मणवाद संचालित किया जा रहा है। चूँकि फिलहाल अब सत्ता सीधे मनुपुत्रों के हाथों में तो ये जमीनी स्तर पर सामाजिक व्यवस्था और सरकारी तंत्र के माध्यम से संवैधानिक व्यवस्था दोनों को कंट्रोल करते हुए एससी/एसटी, पसमांदा मुस्लिमों और ओबीसी वर्गों के खिलाफ़ प्रयोग कर रहें हैंl

ऐसा पूरी रणनीति के साथ एक स्तर नहीं बल्कि कई स्तरों पर किया जा रहाl यानि एक तरफ से दिखाया जा रहा है कि सरकार वंचितों के साथ है जैसे- तमाम तरह की योजनाएं, कार्यक्रम आदि। इसके ठीक दूसरी तरफ सरकार नीतिगत निर्णय इन वर्गों के खिलाफ ले रही है जैसे- आरक्षित वर्गों की सीट कटौती, यूनिवर्सिटीयों में रोस्टर सिस्टम, एडमिशन में इंटरव्यू व्यवस्था से इन वर्गों को बाहर करना, स्कॉलरशिप में कटौती करना, स्कॉलरशिप जारी नहीं करना आदि-आदि। साथ ही तीसरी तरफ सवर्णों को इन वर्गों पर अत्याचार की खुली छूट देना और ऐसे अपराधियों का संरक्षण तथा पीड़ितों का वंचन करते हुए सामाजिक वैमनस्य, भेदभाव, घृणा, असंतोष को बढ़ाना और ऐसी घटनाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन जो सीधे वंचित तबकों के खिलाफ प्रायोजित है। ऐसे ही नहीं सवर्ण दलितों पर अत्याचार करते हुए बेखौफ़ होकर कहते हैं कि सरकार उनकी है और उन्हें कोई डर नहीं।

इसी रणनीति का हिस्सा है कि सरकार ने साफ़ कर दिया है कि वो एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट लागू करने के लिए अध्यादेश नहीं लाएगी। कल सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने सुप्रीम कोर्ट के प्रमोशन में आरक्षण के मामले को कोर्ट के समक्ष विचाराधीन रहने तक प्रमोशन में आरक्षण लागू किये जाने की व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए यह बात कही कि सरकार आरक्षण लागू करेगी पर एट्रोसिटी एक्ट पर अध्यादेश नहीं लाएगी।

प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को एट्रोसिटी एक्ट के समर्थन में पूरे देश में बढ़ती बहुजन चेतना, विरोध और लामबंदी के साथ 2019 के चुनाव को देखते हुए समझियेl। सुप्रीम कोर्ट का आदेश सिर्फ फौरी राहत की रणनीति है ताकि विरोध की चेतना चुनाव को प्रभावित न कर सके। इसके ठीक दूसरी तरफ आरक्षण के विरोध में यज्ञ, पूजा, सेमिनार, बंद, हड़ताल, धरने से लेकर एक के बाद एक कई कोर्ट केस और जनहित याचिकाएं करवाई जा रही है। इन वर्गों के खिलाफ अत्याचार और अपराधों को बढ़ावा देकर इस हालत में पहुंचा दिया जायेगा कि न ये पढ़ सकेंगे, न यूनिवर्सिटी तक पहुंचेंगे, न इन्हें नौकरियों में आने दिया जायेगा और न ही फिर प्रमोशन में आरक्षण देने की जरुरत पड़ेगी। यानि संविधान को आपके ही खिलाफ यूज़ करके मनुस्मृति काल तक पहुंचा देने की पूरी तैयारी है।

प्रमोशन में आरक्षण प्राप्त करने वाले बचे ही कितने हैं उनसे तो प्रशासनिक पचड़े करके अलग तरह से भी निपटा जा सकता है। इसलिए प्रमोशन में आरक्षण के निर्णय पर संतुष्ट हो जाना बहुत बड़ी गलती साबित होगी।

नोट: यह लेख हमें दिपाली तायड़े ने भेजा है जो बहुजन समाज के मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखती है. साथ ही इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी के लिए नेशनल इंडिया न्यूज उत्तरदायी नहीं है।।

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