आक्रोश मार्च में आंबेडकरवादी नारों के साथ बहुजनों, वामपंथियों की एकता का अद्भुत नज़ारा
By- Siddharth Ramu ~
बिरसा, फुले, आंबेडकर, ब्राह्मणवाद की छाती पर
बिरसा, फुले, आंबेडकर, मनुवाद की छाती पर
बिरसा फुले आंबेडकर, आरएसएस की छाती पर
जनेऊ रोस्टर नहीं, चलेगा
ब्राह्मणवादी रोस्टर नहीं चलेगा
मनुवादी रोस्टर नहीं चलेगा
जो अंबानी का यार है, देश का गद्दार है
इन सभी नारों के बीच जय भीम का नारा बार-बार गूंज रहा था। SC/ST/OBC और वामपंथियों की एकता देखने लायक थी।
कल यानी 31 जनवरी को दिल्ली में मंडी हाऊस जंतर-मंतर तक बहुजनों और वामपंथी संगठनों के शिक्षको-छात्रों और बुद्धिजीवियों का हुजूम उमड़ा। मुद्दा था, उच्च शिक्षा संस्थानों में विभाग को इकाई मानकर आरक्षण लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विरोध और विश्विद्यालय को इकाई मानने के लिए अध्यादेश या बिल लाने की मांग।
बहुजनों और वामपंथी-प्रगतिशील संगठनों की और कार्यकर्ताओं की एकता देखने लायक थी। दिल्ली शिक्षक संगठन डूटा की इसमें अहम भागीदारी थी। बापसा और भीम आर्मी के साथ आइसा के साथी कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे थे। कांग्रेस, सीपीएम और सीपीआई के छात्र संगठनों का भी साथ मिला और आम आदमी पार्टी भी साथ थी । विभिन्न विश्विद्यालयों से छात्र प्रतिनिधि भी आए थे। उत्तर भारत के कई हिस्सों से शिक्षकों, छात्रों और बुद्धिजीवियों ने इसमें हिस्सेदारी की।
मेरी जानकारी में आरक्षण के पक्ष में इसके पहले इतनी सक्रियता के साथ वामपंथी संगठन उत्तर भारत में कभी बहुजनों के साथ एकत्रित नहीं हुए थे।
यह आक्रोशमार्च इस तथ्य की भी पुष्टि कर रहा था कि SC/ST और ओबीसी बहुजन के रूप में अपने को संगठित कर रहे हैं और ब्राह्मणवाद-मनुवाद को अपने निशाने पर ले रहे हैं।
आक्रोश मार्च में नारों के साथ नायकों के पोस्टर भी देखने लायक थे। बिरसा मुंडा, जोतिराव फुले, सावित्रीबाई फुले, पेरियार, डॉ. आंबेडकर, ललई सिंह यादव, कबीर, छोटू राम, कांशीराम और अन्य बहुजन नायकों के पोस्टर लोगों के हाथों में थे। ये बहुजनों की एकता के प्रतीक को दर्शा रहे थे।
इस सब का नेतृत्व कोई स्थापित पार्टी या नेता नहीं, बल्कि उभरते बहुजन युवा कर रहे थे, जिन्हें वामपंथी युवाओं का भरपूर सहयोग और समर्थन प्राप्त था।
देश में नई शक्तियां और नए विचार जन्म ले रहे है, जो बेहतर भारत के निर्माण का रास्ता प्रशस्त कर सकते हैं।
युवा साथियों को इस आक्रोश मार्च के लिए सलाम
~ Siddharth Ramu
(यह लेखक के अपने निजी विचार हैं)
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