दुकानदारों का बुरा हाल एक महीने में पारले जी के सिर्फ तीन पैकेट बिस्किट बिके
क्या देश वाकई मंदी के दौर से गुजर रहा है? लोग बिस्किट, तेल, साबुन और शैंपू जैसे जरूरत के सामान भी नहीं खरीद पा रहे हैं? गांवों में हाल और भी बुरा है? अंग्रेजी बिजनेस अखबार ‘द मिंट’ में सायंतन बेरा ने मध्य प्रदेश के विदीशा के ग्रामीण इलाके से एक रिपोर्ट फाइल की है। इसमें नटेरन गांव के एक छोटे दुकानदार का कहना है कि उसने एक महीने में पारले जी बिस्किट (पांच रुपए वाले) केवल तीन पैकेट बेचे हैं। राम बाबू नाम का यह शख्स गुजारे के लिए दुकान चलाने के अलावा मजदूरी भी करता है। इनके हवाले से अखबार ने छापा है कि लोगों ने साबुन-शैंपू खरीदना भी कम कर दिया है।
जिले के गुलाबगंज में एक किराना स्टोर चलाने वाले जीतेंद्र रघुवंशी के मुताबिक दस रुपए से ज्यादा दाम वाला किसी भी सामान पैकेट नहीं बिक रहा है। ऐसे स्टोर्स में एफएमसीजी सप्लाई करने वाले एक डिब्यूटर के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि एक दिन उन्हें एक दुकानदार ने सिर्फ 46 रुपए का ऑर्डर दिया।
बता दें कि कुछ दिन पहले जब बिस्किट बनाने वाली कंपनी पारले जी की ओर से कहा गया था कि मांग घटने की वजह से उत्पादन कम करने और इसकी वजह से आठ-दस हजार लोगों की नौकरियां जाने का खतरा पैदा हो गया है। इसके अलावा भी कई ऐसे आंकड़े जारी हुए हैं, जिनसे पता चलता है कि लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसे नहीं हैं और वे अपनी जरूरतों में कटौती कर रहे हैं। हालांकि, सरकार कह रही है कि ये आंकड़े सही नहीं हैं।
मार्केट रिसर्चर्स का कहना है कि उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में कमी की वजह बचत दर में गिरावट भी है। पिछले कई वर्षों में बचत दर में गिरावट (सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी के 1% के रूप में) से पता चलता है कि घरों में खपत स्तर को बनाए रखने के लिए अपनी बचत पर कंट्रोल किया गया है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बारीक नजर रखने वाली फर्म JM फिनांशियल के विश्लेषक अरशद परवेज का कहना है कि 7वें वेतन आयोग के लागू होने के बाद हुई वेतन वृद्धि और कृषि ऋण माफी के बाद उपभोग (कंजम्पशन) में उछाल देखा गया था लेकिन वह प्रभाव अब कम हो रहे हैं और उपभोक्ता वस्तुओं की खपत धीमी हो रही है।
बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव के ऐलान से ऐन पहले केंद्र सरकार ने फरवरी में करीब 12.5 करोड़ सीमांत किसानों को सालाना 6000 रुपये (2000 रुपये की तीन किश्तों में) की वित्तीय सहायता देने का ऐलान किया था ताकि उनकी आय में इजाफा हो सके और वो उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद कर सकें। नियमत: अब तक किसानों को दो किश्तों में रकम मिल जानी चाहिए थी लेकिन चुनाव के बाद सरकार ने दूसरी किश्त अभी तक नहीं दी है। इससे करीब 50,000 करोड़ रुपये किसानों के खाते में जाते लेकिन अभी तक (सितंबर के शुरुआत) मात्र 21,300 करोड़ रुपये ही किसानों को मिल सके हैं। माना जा रहा है कि इससे भी किसानों की खरीद क्षमता प्रभावित हुई है।
हालांकि, ग्रामीण भारत में उपभोक्ता सामान की खपत में आई कमी अप्रत्याशित नहीं है। एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) की ब्रिक्री में ग्रामीण भारत का अंशदान लगभग 37% है। मार्केट रिसर्च फर्म निल्सन ने जुलाई में एक रिपोर्ट में कहा था कि हालिया तिमाही में शहरों के अनुपात में ग्रामीण भारत में खर्च करने की सीमा दोगुनी गति से नीचे गिर रही है। इस साल के शुरुआत में भी जरूरत और रोजर्मरे के सामान की मांग भी कमजोर हुई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल से जून के बीच नमकीन स्नैक्स, बिस्किट, साबुन और पैकेटबंद चायपत्ती समेत अनेक सामानों की मांग में गिरावट दर्ज की गई है।
एक अन्य मार्केट रिसर्च फर्म कांतार वर्ल्डपेनल के आंकड़ों के मुताबिक, चार साल में पहली बार वॉल्यूम ग्रोथ पिछले 31 मई तक 12 महीने के दौरान ग्रामीण भारत में नकारात्मक रही (वार्षिक कुल वॉल्यूम में 2% की गिरावट) है। हालाँकि, FMCG ब्रांडों ने अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए बाजार में छोटे पैक उतारे, बावजूद इसके भारत भर में FMCG उत्पादों की औसत वार्षिक खपत 2019 में 4% तक गिर गई। लेकिन लोगों ने 2018 में FMCG पर जितना खर्च किया उससे 9% अधिक खर्च इस कालखंड में किए।
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