यह हैं ‘भारत के सच्चे सिपाही’
कभी सोच के देखीये हमको ऑक्सिजन के बदले हाइड्रोजन सल्फाइट, काबनमोनो आक्साईड और मिथेन गैस सांस लेते समय मिले तो हम 5 Min के अंदर ही दम तोड देंगे। तो जरा सोचीये सिवर कर्मचारी यानि गटर साफ करने वालो का क्या हाल होता है। जब हमारी ओर से फैलाये मल गंदगी को साफ करने के लिये ये कर्मचारी गटर में उतरते है। स्वच्छता के इतने सघन अभियान होने पर भी हर साल 600 से ज्यादा सिवर कर्मचारी की मौत हो जाती है। ये 10 गुणा ज्यादा है उन भारतीय सैनिको से जीनकी मृत्यु सरहद पर आतंकवादी द्वारा होती है।
सिवर (गटर) भी देश के भितर की वो सिमा है जीसमे हमारा कर्मचारी मारा जाता है। लेकिन भारत माता से ना उसे शहिद का दर्जा मिलता है और ना मुवावजा ,सिफ्र इनको भारत माता का सपुत कह देने से समस्या हल नही होती। जानकारी के लिए बता दें की गटर कर्मचारी हर रोज लोगो की 200 करोड़ लिटर गंदगी साफ करते है फिर भी लोगों से उन्हे वो सम्मान नही मिल पाता जीसके वो हकदार है। Manual Seavengers (मैला ढोना) की प्रथा सालो से चली आ रही है ये सर्वणो द्वारा बहुजनों आदिवासीयो पर जातीवाद की निशानी है।
लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें की इस प्रथा पर सुप्रिम कोट ने भी 1993 और 2013 अधिनियम पर आये फैसले मे इसको खत्म करने की बात की है। पर हमारी सरकार के पास 6 लाईन रोड, 12 लाईन रोड बनाने के लिये पैसा है, पुजीपतीयों और खुद के आफिस बनाने के लिये करोडो रुपया है। लेकिन गटर की परेशानी को पुर तरह खत्म करने के लिये Underground Drain बनाने के लिये कोई प्लान और पैसा नही है।
अगर हांगकांग और दुसरे देशो के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो वहां इस काम के लिये worker को 12 साल कि ट्रेनिंग के साथ 15 लाईसेंस लेना पडता है और Full Body Suit दिया जाता है जीसमे Oxygen Cylinder लगाया होता है। लेकिन हमारे देश मे गटर कर्मचारीयो का खुन चुस लेता है जब तक उनकी मौत ना हो जाये। और सरकार
आज के 21वी सदी मे भी तमीलनाडु और बाकी बडे राज्यों में सडास साफ करना मैला ढोने का काम बहुजनों से ही कराया जा रहा है। आज भी बहुजनों के छोटे बच्चो से सर्वणो के स्कुलो के शौचालय साफ कराय जाते है। लेकिन अगर इंसानियत की नजर से देखा जाए तो हर बहुजन सफाई कर्मचारी नही होता ,लेकिन हर सफाई कर्मचारी ये बहुजन ही होता है
नोट- ये भी भारत की जातीवाद का घिनौना चेहरा है,यहा मरने वाला कोई सर्वण नही बल्कि बहुजन और आदिवासी समाज से ही होता है
(ये अतुल देशभ्रतार के नीजि विचार है)
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