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रामदेव ने आंबेडकर, पेरियार के विचारों को पढ़ने-गुनने वालों के खिलाफ जो जहर टीवी चैनल पर उल्टी किया था. अब वह हजारों लोगों के बीच भी प्रवचन देते हुए उसी नफरत के जहर की उल्टी कर रहा है. सरेआम! उसकी जुबान से निकली जहर का असर यह भी हो सकता है कि उसे सही मानने वालों की भीड़ आंबेडकर या पेरियार का नाम लेने वालों की हत्या कर दे और दंगा फैल जाए कत्लेआम मच जाए गृहयुद्ध छिड़ जाए.
कायदे से एक ईमानदार लोकतांत्रिक शासन होता तो हिंसा भड़काने की कोशिश के लिए रामदेव को गिरफ्तार कर तुरंत जेल में बंद कर देता. नफरत और दंगा भड़काने के जुर्म में लेकिन खैर दरअसल, आंबेडकर या पेरियार के विचारों से तैयार दलित-पिछड़ी जातियों के लोगों का जो आंदोलन खड़ा हो रहा था. वह आरएसएस-भाजपा के लिए चुनौती बन रहा है और उसका सामना करना इस लोकेशन से उठे सवालों का जवाब दे पाना उनके लिए मुमकिन नहीं हो पा रहा है. तो अब इसका सामना ‘सीधी कार्रवाई’ या डायरेक्ट हिंसा से करने की कोशिश की जा रही ह
दूसरी बात क्या आपने गौर किया है. कि दलित-पिछड़ी जातियों की ओर से आंबेडकर-पेरियार-फुले के विचारों की चुनौती से जिस सामाजिक सत्ताधारी जातियों को दिक्कत हो रही थी. उनके बीच का कोई चेहरा यानी सवर्ण चेहरे के मुंह से इतनी नफरत से भरी घिनौनी और कत्लेआम मचा देने तक के असर वाली बातें नहीं प्रसारित करवाई गईं. बल्कि इसके लिए प्रचारित तौर पर एक पिछड़ी जाति के धार्मिक चोले वाले भारी बेवकूफ बाबा का सहारा लिया गया. जितनी भी इस तरह की दंगाई हिंसा फैलाने वाली या बेहद मूर्खतापूर्ण बातें सुर्खियों में आती हैं. उन्हें बकने वालों में से लगभग सभी चेहरे पिछड़ी या दलित जातियों के महिलाओं के होते हैं. क्या यह सब आपको सहज लगता है. क्या यह एक सोची-समझी व्यापक ब्राह्मणी राजनीति का हिस्सा नहीं लगता है.
Remembering Maulana Azad and his death anniversary
Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…