घर सामाजिक रोजगार कामगारांच्या जखमांवर मीठ शिंपडा- सुरजेवाला

कामगारांच्या जखमांवर मीठ शिंपडा- सुरजेवाला

देश में पीएम मोदी ने 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया. जिसको लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. लॉकडाउन के इस मंदी के समय में जब निर्मला सीतारमण को मजदूरों और गरीबों को उनके हाथों मे पैसा थमाने की जरुरत थी. तब उन्होंने कर्ज की जो घोषणाएं की है, उन्हें प्रोत्साहन पैकेज नहीं कह सकते. जिसके बाद कांग्रेस पार्टी प्रवक्ता ने पीएम मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर तीखे वार किए है.

खरंच, केंद्र की ओर से घोषित उपाय भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का केवल 1.6 प्रतिशत हैं जो 3.22 लाख करोड़ रुपये है, जो कि मजदूरों और गरीबों के लिए केवल एक छोटा सा हिस्सा है. जिससे गरीबों की जरुरतें पूरी नही हो सकती. जिसको लेकर रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर नाराजगी व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि राहत के मलहम की बजाय घाव पर नमक छिड़कना बंद करें. ये मजदूर हैं मजबूर नहीं हैं. अगर मजदूरों का दर्द बांटना अपराध है तो हम करेंगे. मजदूर की बेबसी आपको ड्रामेबाजी लगती है. नंगे पांव में पड़े सैकड़ों छाले ड्रामेबाजी दिखती है. भूखे-प्यासे चलते जाने की व्यथा ड्रामेबाज़ी है. 135 मजदूरों की मौत क्या उन्हें ड्रामेबाजी लगती है.

वहीं सुरजेवाला ने आगे कहा कि सरकार ने मजदूरों का घोर अपमान किया है. संवेदनहीन सरकार मजदूरों से माफी मांगे. सुरजेवाला ने कहा किराहुल गांधी उनका दर्द बांटने गए थे. अंधी बहरी सरकारों को जगाना अपराध है, तो हम करेंगे. ते म्हणाले, ड्रामेबाजी वो थी जब मोदी जी ने वोट लेने के लिए मजदूरों के पांव धोने का स्वांग किया था. ड्रामेबाजी वह थी जब हवाई चप्पल पहनने वाले व्यक्ति को हवाई जहाज में बैठाने का वादा कर सत्ता हथियाई थी. देश का मेहनतकश आपको कभी माफ नहीं करेगा.

गौरतलब है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी यूपी सरकार से मजदूरों की मदद करने के लिए अनुमति मांगी है. प्रियंका गांधी ने कहा कि ये राजनिती का वक्त नही है, हमारी 1000 बसें बॉर्डर पर खड़ी है. हजारों श्रमिक, प्रवासी भाई बहन बिना खाये पिये, पैदल दुनियाभर की मुसीबतों को उठाते हुए अपने घरों की ओर चल रहे हैं. हमें इनकी मदद करने दीजिए. हमारी बसों को परमिशन दीजिए. साथ ही प्रियंका गांधी ने मजदूरों के लिए ज्यादा ट्रेंने और बसें चलाने का अनुरोध किया.

बता दें कि भले ही मजदूरों के लिए श्रमिक ट्रेनें चलाई जा रही हो, लेकिन ट्रेनों के दाम ज्यादा होने के कारण कई मजदूर पैदल घर लौटने को ही मजबूर है. जिनकी वजह से उनके पांवों में छाले तक हो गए है. कई मजदूरों की मीलों रास्ता पैदल ही तय करने पर ही मौत हो गई. हालांकि अब देखना ये होगा कि मजदूरों को उनक गृहराज्य वापसी के लिए कब पूरी मदद मिलती है.

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