टिस्स मुंबई : आयोग ने कहा, ST वर्ग के प्रति उदार बने टाटा, छोड़े कंजूसी
By: Santosh Yadav
राष्ट्रीय अनुसूचित जऩजाति आयोग ने मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस को साफ-साफ शब्दों में निर्देश दिया है की वह आदिवासी छात्रों के प्रति उदारता बरते और उनसे छात्रावास शुल्क के अलावा आहार शुल्क ना वसूले। इसके लिए आयोग ने संस्थान को अपने अन्य संसाधनों से राशि का प्रबंध करने को कहा है।
बताते चलें की संस्थान की ओर से इसी वर्ष अनुसूचित जनजाति के छात्रों को भी हॉस्टल की फीस तथा डाइनिंग फीस देने को कहा गया था। पूर्व में अनुसूचित जनजाति के छात्रों को इस से मुक्त रखा गया था। संस्थान के नए फरमान से छात्र आंदोलित थे। उनके आंदोलन को देखते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने यह फैसला लिया है।
आयोग द्वारा जा रही पत्र के मुताबिक आयोग की एक टीम ने बीते जून महीने में मुंबई स्थित संस्थान परिसर का दौरा किया था तथा आंदोलन कर रहे छात्रों के साथ मिलकर उनकी समस्याओं को सुना तथा उनकी समस्याओं के आलोक में संस्थान के अधिकारियों से मशवरा की थी बाद में टीम ने 25 जुलाई को आयोग को अपनी रिपोर्ट तथा अनुशंसाएं समर्पित की थी मुख्य अनुशंसा के रूप में कहा गया था की संस्थान अलग-अलग स्रोतों से धनराशि की व्यवस्था करने हेतु योजना बनाएं ताकि अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों को पूर्व की तरह छात्रावास शुल्क और डाइनिंग शुरू से मुक्त रखा जा सके
आयोग ने संस्थान को अपने अन्य शुल्कों में भी अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए कटौती करने को कहा है। साथ ही आयोग ने यह भी कहा है संस्थान में रिजर्वेशन रोस्टर का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। इसके कारण आरक्षित कोटे के बहुत सारे पद रिक्त पड़े हैं। आयोग ने संस्थान को एक समय सीमा निर्धारित कर रिक्त पदों के विरुद्ध जल्द से जल्द भर्तियां करने का निर्देश दिया है
आयोग की अनुशंसाओं के संबंध में संस्थान के एक अधिकारी द्वारा पुष्टि की गई है। एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा गया है कि आयोग की अनुशंसाएं पिछले सप्ताह प्राप्त हुई हैं। संस्थान आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने के लिए कार्य योजना बना रही है।
बहरहाल टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेंज सामाजिक विषयों, विशेष रूप से दलित पिछड़े जनजाति तथा अल्पसंख्यकों की सामाजिक आर्थिक स्थितियों पर शोध करने का एक बेहतरीन संस्थान है तथा इन वर्गों के छात्रों ने अपने समाजों पर इन विषयों पर महत्वपूर्ण शोध प्रस्तुत की है। अनेक महत्वपूर्ण शोध वर्तमान शासक वर्गों के आँखों को खटकने लगी थी। हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित बेमुला की संस्थागत हत्या के विरोध में तथा जेएनयू के आंदोलनों में भी इस संस्थान के छात्रों की भारी पैमाने पर शिरकत थी। इन सभी कारणों से यह संस्थान लम्बे समय से सरकार के निशाने पर था। लेकिन अपवाद को छोड़ अधिकांश मीडिया को इससे कोई सरोकार नहीं था।
लेकिन अब उम्मीद की जानी चाहिए कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के कड़े रुख के कारण संस्थान छात्रों के हित में आयोग की अनुशंसाओं को लागू करेगा।
-संतोष यादव
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