तीन तलाक पर प्रस्तावित कानून में इन बातों को लेकर मुस्लिम संगठन कर रहे हैं विरोध
नई दिल्ली। आज लोकसभा में तीन तलाक पर केंद्र सरकार बिल पेश करेगी। जिसका नाम है ‘मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज बिल’ प्रस्तावित बिल के मुताबिक कोई पति अपनी पत्नी को ट्रिपल तलाक देता है तो उसके खिलाफ क्रिमिनल एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाएगा। दोषी को तीन साल की सजा हो सकती है। इसके साथ ही इसे गैरजमानती और संगीन अपराध माना जाएगा। जम्मू कश्मीर के अलावा पूरे देश में यह बिल लागू होगा।
वहीं इस विधेयक का मुस्लिम संगठन विरोध भी कर रहे हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को गैरसंवैधानिक करार दे दिया है तो इतना कठोर कानून बनाने की क्या जरुरत है? उनका कहना है कि सरकार तीन तलाक के अन्य प्रावधानों को भी खत्म करना चाहती है. तलाक मुस्लिम पुरुषों को शरियत से मिला अधिकार है. सरकार इसे कैसे छीन सकती है?
वहीं बोर्ड का यह भी कहना है कि तलाक का मामला सिविल एक्ट के तहत आता है जिसे सरकार बिल के जरिए क्रिमिनल एक्ट बना रही है. अगर ऐसा हुआ तो क्या तलाक के बाद पती-पत्नी के बीच सुलह की गुंजाइस खत्म नहीं हो जाएगी। बोर्ड का कहना है कि सरकार इस बिल के जरिए इस्लामिक शरियत में दखलअंदाजी करना चाहती है. मुस्लिम समुदाय को अपने धर्म के हिसाब के जीने का अधिकार संविधान से मिला है. क्या यह विधेयक मुस्लिमों की धार्मिक आजादी और संवैधानिक अधिकार का हनन नहीं है?
आपको बता दें क्रिमिनल केस बेहद संगीन अपराधिक मामलों में दर्ज किया जाता है। जैसे देशद्रोह का मामला हो, हथियारों से लैस होकर अपराध करना हो, बलात्कार, मर्डर का केस हो या फिर लोकसेवक नही होने पर गलत तरीके से खुद को लोकसेवक दिखाकर कानून के खिलाफ कार्य करना हो. इन्हीं मामलों में क्रिमिनल एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है जिनमें कठोर सजा का प्रावधान है, अपराधी पर तमाम तरह के प्रतिबंध लग जाते हैं।
Remembering Maulana Azad and his death anniversary
Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…