Home Social Politics अपराधियों के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक विरोधियों पर लगाम कसने के लिए हैं यूपीकोका कानून!

अपराधियों के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक विरोधियों पर लगाम कसने के लिए हैं यूपीकोका कानून!

By- Aqil Raza

योगी सरकार में खराब कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठते रहे हैं। हलांकि योगी सरकार ने एनकाउंटर के नाम पर वाहवाही लूटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। जबकि यूपी में कई फरिजी एनकाउंटर को लेकर भी मानवाधिकार आयोग योगी सरकार से जवाब तलब कर चुका है। वहीं अब राज्य की योगी सरकार यूपीकोका कानून के पीछे पड़ी है। यूपी विधानसभा में भारी हंगामे के बीच मंगलवार को यूपीकोका बिल पास हो गया.

विधानसभा में यूपीकोका बिल तब पास हुआ जब विपक्ष ने इसका पूरा बहिष्कार कर दिया. इससे पहले भी सदन ने इसे पास किया था, लेकिन विधान परिषद में बहुमत नहीं होने की वजह से यूपीकोका बिल गिर गया था, अब दूसरी बार विधानसभा में लाकर इसे फिर से पास कराया गया है और अब यह सीधे राज्यपाल के पास अनुमोदन के लिए जाएगा यानी जल्द ही मकोका की तर्ज पर यूपीकोका कानून भी दिखाई देगा।

नियम के मुताबिक अगर विधान परिषद में कोई बिल गिर जाता है और विधानसभा उसे दोबारा पास कर देती है तो उसे फिर से विधान परिषद नहीं भेजा जाता और उसे सीधे राज्यपाल के पास अनुमोदन के लिए भेजा जाता है जहां पास होना बाध्यता है.

पूरा विपक्ष यूपीकोका के खिलाफ था क्योंकि उसे डर है कि पोटा और एनएसए जैसे कानून की तर्ज पर इसका भी दुरुपयोग हो सकता है और सत्ता पक्ष इसका इस्तेमाल जनप्रतिनिधियों नेताओं पत्रकारों और सिविल सोसायटी के लोगों के खिलाफ कर सकती है.

अगर ऐसा होता है तो ये वाकई देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है, क्योंकि अगर इसका दुरुपयोग हुआ तो विपक्ष से लोकर आम आदमी भी अपने हक की अवाज़ उठाने से कतराएगा। क्योंकि उसे यूपीकोका कानून का खतरा होगा। इसके अलावा पत्रकारों के कलम भी सत्ता में बैठी सरकार के खिलाफ सच्चाई लिखने से कांपेगें। जिससे होगा ये कि अपराध रुकने की जगह निरंतर बढ़ेगा, साथ ही भ्रष्टाचार में भी बढ़ोतरी होगी, लेकिन आम आदमी को सबकुछ ठीक लगेगा, किसी को भी ये एहसास नहीं होगा की अपराध बढ़ा है। क्योंकि जब डर की वजह से कोई सवाल नहीं पुछेगा तो लोगों को पता भी नहीं चलेगा, और भ्रष्टाचारी आराम के साथ अपने काम को अंजाम देते रहेंगे।

वहीं विपक्षी दल लगातार इसका विरोध कर रहे हैं. विपक्षी दलों का मानना है कि सरकार अपराधियों के नियंत्रण के लिए यह बिल नहीं लाई है बलकि अपने राजनीतिक विरोधियों को क्लिक करने के लिए काला कानून लेकर आई है.

बीएसपी नेता लालजी वर्मा ने कहा निश्चित रूप से यह एक लोकतंत्र की हत्या के समान विधेयक है. यह लोकतंत्र को खत्म करने वाला विधेयक है. उन्होंने आगे कहा कि अगर सरकार इस तरीके का अपराध नियंत्रण करना चाहती तो महाराष्ट्र में ऐसी ही बीजेपी की सरकार में ऐसा ही एक विधेयक और कानून बना हुआ है, लेकिन उससे कितना अपराध नियंत्रण हो रहा है यह भी देखने वाली बात है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि अगर अपने पक्ष का कोई अपराध करता है तो उसे वाई श्रेणी की सुरक्षा दी जाती है और दूसरे पक्ष का होता है तो उसे प्रताड़ित करने का काम किया जाता है इस विधेयक का हम पुरजोर विरोध करते हैं.

वहीं समाजवादी पार्टी के नेता और नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी ने भी बिल पर निराशा जाहिर करते हुए काला दिवस करार दिया. उन्होंने आम जनता, किसानों, गरीबों और पत्रकारों के लिए इसे हानिकारक बताया. उन्होंने कहा कि अब इस काले कानून के माध्यम से राजनीतिक विरोधियों को और जो सरकार के खिलाफ पत्रकार लिखते हैं उन पर भी लगाम कसने की अपनी गिरफ्त में लेने के लिए यह दुस्साहस कर रही है.

वहीं सदन में कांग्रेस के नेता अजय कुमार लल्लू ने कहा कि सरकार ने काला कानून लाकर अंग्रेजी हुकूमत याद दिलाने का काम किया है, यह काला कानून है, संविधान विरोधी है, लोकतंत्र विरोधी है. इसमें पत्रकारों तक को आजादी नहीं है. कांग्रेस इस बिल का पुरजोर विरोध करेगी और हमने इसी के विरोध में वॉकआउट भी कर दिया.

बहरहाल विपक्षी नेता चाहे जो कहे, योगी सरकार इस कानून को अपना ट्रंफ कार्ड मान रही है और अपने चुनावी वादे के अनुकूल उसने यूपीकोका को लागू करने की आखिरी बाधा पार कर ली है. यूपीकोका जल्द ही कानून बन जाएगा और यह अपराधियों के खिलाफ कितना कारगर साबित होता है ये देखना वाली बात होगी।

यूपीकोका की अगर हम बात करें तो ये संगठित अपराध के खिलाफ पुलिस को असीमित अधिकार देता है.

यूपीकोका के तहत जुर्म के लिए पुलिस आरोपी को 15 दिनों की रिमांड पर ही हवालात में रख सकती है.

यूपीकोका के सेक्शन 28 (3ए ) के अंतर्गत बिना जुर्म साबित हुए भी पुलिस किसी आरोपी को 60 दिनों तक हवालात में रख सकती है. आईपीसी की धारा के तहत गिरफ्तारी के 60 से 90 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करना होता है, वहीं यूपीकोका में 180 दिनों तक बिना चार्जशीट दाखिल किए आरोपी को जेल में रखा जा सकेगा.

इस नए कानून में जेल में बंद कैदियों से मिलने के लिए भी बहुत सख्ती है. सेक्शन 33 (सी) के तहत किसी जिलाधिकारी की अनुमति के बाद ही यूपीकोका के आरोपी साथी कैदियों से मिल सकते हैं, वो भी हफ्ते में एक से दो बार.

यूपीकोका की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट होगा, उम्रकैद से लेकर मौत की सजा का भी प्रावधान होगा. साथ ही मुजरिम पर 5 से लेकर 25 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

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