सिंधु सभ्यता से ब्राह्मणों ने चुराया है योग, बुधनमा
By: Nawal Kishor Kumar
कोई भी धर्म तभी लोककल्याणकारी हो सकता है जब समानता और सम्मान उसके बुनियादी मूल्य हों। और लोककल्यणकारी धर्म की सबसे पहली शर्त तो यह है कि वह यथार्थपरक हो। लेकिन हिंदू धर्म में इसका सर्वथा अभाव है। समझे बुधनमा भाई।
नवल भाई, मेरा सवाल योग को लेकर है। क्या आप योग को भी पाखंड मानते हैं?
मैं योग की ही बात कर रहा हूं बुधनमा भाई। लेकिन पूरी बात समझ में आए, इसलिए सबसे पहले धर्म से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें कह रहा हूं। अच्छा यह बताओ कि धर्म का मतलब क्या केवल पूजा-पाठ होता है या कुछ और भी।
हमको लगता है कि धर्म जो है न उ लकड़ी के जैसन है। जीते लकड़ी, मरते लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का। हम सब के जीवन में धर्म ऐसा ही है। एक बच्चे के जन्म लेने के साथ ही धर्म शुरू हो जाता है। आप तो जानते ही हैं। फिर मरने के बाद भी धर्म अपना काम करता रहता है। समाज को धर्म एकजुट करके रखता है। आप बताइए हम कुछ गलत कह रहे हैं क्या?
नहीं बुधनमा भाई। आप जिसको धर्म कह रहे हैं, वे परंपराएं हैं। इन परंपराओं को धर्म के साथ जोड़ दिया गया है। इनमें कर्मकांड भी शामिल है। यदि ये कर्मकांड न हों तो फिर धर्म बेमजा नहीं हो जाएगा। योग भी एक परंपरा है, जिस पर ब्राह्मणों ने कब्जा किया है। यह असल में भारत के मूलनिवासियों के जीवन का हिस्सा हुआ करता था।
यह कैसे नवल भाई?
वही तो आपको समझा रहा हूं। दो दिन पहले आपको एक कहानी मैंने सुनायी थी। गौरैया बाबा की। उस कहानी में मैंने यह कहा था कि आर्यों के पहले भी इस देश में नगरीय सभ्यता थी। यही भारत में एगो जगह है हरियाणा में। धौलावीरा नाम है उस गांव का। यहां सिंधु सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यहां खुदाई के दौरान एक बड़ा स्टेडियम मिला है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार, इस स्टेडियम में नगर के सभी लोग एकजुट होते थे और अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नियमित रूप से अभ्यास करते थे।
अच्छा। यह तो आपने सुंदर जानकारी दी नवल भाई।
बुधनमा भाई, उन दिनों योग का चलन था या नहीं, यह ठीक-ठीक पूरे प्रमाण के साथ नहीं कहा जा सकता है। लेकिन जिस तरह का स्ट्रक्चर उस स्टेडियम का है, यह अनुमानित है कि बड़ी संख्या में लोग उसमें एकजुट होते थे और कुछ ऐसे अभ्यास करते थे जिससे शरीर फिट रहे। हो सकता है कि योग सिंधु सभ्यता की ही देन हो। हालांकि यह भी हो सकता है कि आज जिसको योग कहते हैं, वह उन दिनों इस तरह धर्म का हिस्सा न होकर रोजाना के जीवन का हिस्सा हो।
फिर क्या हुआ होगा नवल भाई। मेरा मतलब है कि ब्राह्मण सब के आने के बाद।
हां तो हुआ यह होगा कि जब सिंधु घाटी सभ्यता का पतन हुआ होगा और ब्राह्मण जो बाहर से आए होंगे तब उन्होंने देखा होगा कि किस तरह भारत के लोग खुद को स्वस्थ रखते हैं। चूंकि ब्राह्मण सब लूटपाट करते थे। उनका कोई अपना धर्म नहीं था। वे क्रूर थे। जहां जाते मारकाट मचाते थे। जबकि भारत के मूलनिवासी अमन पसंद थे। वे अपना जीवन सुकून से जीते थे। पूरी सामाजिक व्यवस्था कृषि आधारित थी। सिंधु सभ्यता में चिकित्सा की सुविधा थी। ऐसी संभावना इतिहासकार जताते हैं।
तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि योग ब्राह्मणों ने हम मूलनिवासियों से लिया और उसको कर्मकांड बना दिया?
हां, यही हुआ और इसके साथ ही ब्राह्मणों ने शरीर को स्वस्थ रखने के तरीकों को धर्म से जोड़ दिया और शूद्रों को इन तरीकों को अपनाने से रोक दिया। इनको वेद में शामिल कर दिया और नाम दे दिया आयुर्वेद। और आप तो यह जानते ही हैं कि वेदों को पढ़ने से शूद्रों को रोका गया। यह एक गहरी साजिश थी ब्राह्मणों की। वह यह नहीं चाहता था कि शूद्र स्वस्थ रहें और मजबूत बनें। वजह यह थी कि वह भयभीत रहता था। वैसे भी उनकी संख्या कम थी और धर्म का भ्रमजाल फैलाकर राज कर रहा था।
बाप रे। एतना सबकुछ किया इन ब्राह्मणों ने। अच्छा नवल भाई एगो सवाल का जवाब दें कि क्या ब्राह्मण केवल एक जाति का नाम है या यह कुछ और है?
भाई बुधनमा, ब्राह्मण वैसे तो एक जाति है। लेकिन जाति से अधिक यह एक वर्ग है जो श्रमण परंपरा मानने वालों को अपना गुलाम समझता है। वह खुद श्रम से दूर रहता है और जीवनोपयोगी सभी सुविधाओं का उपभोग करता है। यह केवल एक जाति नहीं है। इसका वर्चस्व आज भी है। देखें नहीं कि किस तरह इंसेफलाइटिस के कारण बिहार में गैर ब्राह्मण बच्चों की मौतें हो रही हैं। यह सब उसी साजिश का परिणाम है जो सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद ब्राह्मणों ने इस देश में रचाा था। आज भी हम सभी जो मेहनत करने वाले हैं, यह मानते हैं कि मेहनत करने मात्र से शरीर स्वस्थ रहता है। लेकिन यह गलत है। हमारा शरीर स्वस्थ रहे, इसके लिए देह से मेहनत तो जरूरी है ही, साथ ही शरीर को जिन तत्वों जैसे कि प्रोटीन, कैल्सियम, आयरन आदि की आवश्यकता होती है, उसकी आपूर्ति होती रहे। तुम जानते हो उन दिनों ब्राह्मण भी सब तरह का मांस खाता था। जैसे कि पहले बताया मैंने कि वह लूटपाट करता था, बर्बर तो था ही। भूख मिटाने के लिए वह यह नहीं सोचता था कि सुअर खा रहा है या गाय-भैंस या कुछ और। वह सभ्य तो तब बना जब वह भारत आया और उसने यहां सिंधु सभ्यता को देखा। अनाज के भंडार देखे। जौ, गेहूं, बाजरा, चावल आदि का स्वाद चखा।
हां नवल भाई। परसों एगो मरनी के काम में गया था मैं। वहां एगो पंडित आया। क्या आदमी था। एक किलो चूड़ा और पांच किलो दही खा गया। उपर से 50 गो रसगुल्ला। लग रहा था जैसे कोई इंसान नहीं जानवर खाना खा रहा है।
जाए दें बुधनमा भाई। हमारा धर्म जो कि हिंदू नहीं है, सबको समाहित करता है। फिर चाहे वह ब्राह्मण ही क्यों न हो।
अच्छा नवल भाई। चलते-चलते एगो बात बताइए कि हम सबका अपना धर्म क्या है?
यार बुधनमा, यह बहुत बड़ा सवाल है। फिर कभी बताउंगा। चलिए टीवी पर नरेंद्र मोदी की रांची में नौटंकी देखते हैं।
हां, आपने सही कहा नवल भाई। एक दिन योग करने का दिखावा नौटंकी ही तो है। कभी-कभी तो गरियावे के मन करता है। लेकिन आपने ही मना किया है। नहीं तो…
गालियां कायर देते हैं बुधनमा भाई। चलिए पहले चौक पर चाय पीते हैं।
(तस्वीर : धौलावीरा, हरियाणा)
लेखक- नवल किशोर कुमार, वरिष्ठ पत्रकार, फॉरवर्ड प्रेस, हिंदी. नवल किशोर जी अपने लेखों के जरिए नेशनल इंडिया न्यूज को भी लगातार अपनी सेवा दे रहे हैं।
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