त्यामुळे ते आपापल्या घरी परततात, त्यामुळे ते आपापल्या घरी परततात 30 त्यामुळे ते आपापल्या घरी परततात
त्यामुळे ते आपापल्या घरी परततात,और इस कोरोना से सबसे ज्यादा जो लड़ रहा है वो एक गरीब मजदूर।सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी मजदूर तक सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही है।लेकिन सवाल ये उठता है की अगर सरकार की सुविधा मजूदरों तक नहीं पहुंच पा रही तो कई अभिनेताओं की सुविधाएं समय पर कैसे पहुंच रही है।जो कही ना कही हम सभी को ये सोचने पर मजबूर कर रही है की कही सरकार या सरकारी अधिकारियों का तो इसमें हाथ नहीं।या ये फिर ये लोग गरीबों की मदद नहीं करना चाहते।

लेकिन इन सब के बीच सरकार ने अपने ऊपर लगे इलजाम हटाने के लिए मजदूरों के घर पहुंचाने के लिए रेल यात्रा शुरू की।कुछ मजूदर किसी तरह लाख मशक्कत के बाद अपने घर भी पहुंचे।लेकिन कुछ लोग अभी भी अपने घर जाने की राह ताक रहे है।बता दें की जो ट्रेने शुरू की गई है,वो श्रमिक और कुछ स्पेशल ट्रेनें है। लेकिन इस सब के बीच सरकार ने फिर अपनी लापरवाही दिखाते हुए भारतीय रेलवे ने 30 जून तक के सभी टिकटों को रद्द कर दिया है।जो कही ना कही फंसे मजदूरों के चेहरे पर मायूसी लाने का कारण बन रही है।तो दूसरी ओर इससे ये भी साफ हो रहा है की सरकार की तैयारियां हर जगह की तरह यहां भी अधुरी है।
देश में लागू लॉकडाउन की वजह से करीब दो महीनों से ट्रेन सेवा पूरी तरह से ठप हैं।ऐसे में जिन लोगों ने पहले ही टिकट बुक करवा दिए थे उनके टिकटों को रद्द किया गया है। भारतीय रेलवे ने 30 जून तक की बुकिंग रद्द कर सभी टिकटों का रिफंड ग्राहकों को दे दिया है। बता दें कि 12 मई से भारतीय रेलवे ने पंद्रह स्पेशल ट्रेन चलाने का फैसला किया है, जो कि राजधानी दिल्ली से देश के अन्य पंद्रह शहरों को जोड़ेंगी। ये ट्रेनें जोड़ी के हिसाब से चलेगी, यानी दिल्ली से जाकर वापसी की व्यवस्था भी होगी।पिछले तीन दिनों में इन ट्रेनों में हजारों लोग सफर कर चुके हैं और हजारों लोग अभी भी घर जाने की राह ताक रहे है।

जानकारी के लिए बता दें की स्पेशल ट्रेन के तौर पर जो गाड़ियां चलाई जा रही हैं वो सभी राजधानी हैं और उसमें सिर्फ एसी कोच ही हैं। साथ ही यहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा रहा है और मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके अलावा कुछ अन्य गाइडलाइन्स को जारी किया गई है, जिनका पालन करना यात्री और स्टेशन कर्मचारियों के लिए जरूरी है। वहीं दूसरी ओर प्रवासी मजदूरों के लिए विशेष तौर पर श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं, जो कि रोजाना करीब सौ ट्रेनें चल रही हैं।इन ट्रेनों में अबतक पांच लाख से अधिक मजदूरों को वापस पहुंचाया जा चुका है और लगातार ये सर्विस जारी है।
अब सवाल ये उठता है की आखिर बचे हुए मजदूरों का क्या होगा।क्या होगा उनका जो अभी भी अपने घर जाने के मजबूर है।लेकिन रोड पर पैदल जाते मजदूरों की हालत ने ये तो बयां कर दिया की हर मुद्दे की तरह सरकार मजदूरों और गरीबों को बस,ट्रेन मुहैया कराने में भी विफल है।लेकिन अब देखने वाली बात ये होगी की अब सरकार कुछ मजदूरों के लिए करती है या फिर मजदूरों की जान ऐसे ही जाती रहेगी।और उसकी जिम्मेदारी सरकार कब लेगी….
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