जन्म दिन विशेष: बहुजनों के मसीहा बाबा साहेब के विचार, और कांशीराम के संघर्ष की यादें…
By- Aqil Raza
दुनिया-भर में अलग अलग समय पर दुंखो और मसीबतों के खिलाफ बड़े स्तर पर संघर्ष होते रहे है। इन संघर्ष में अनेक बड़े नेता उभर कर सामने आते रहे हैं। जैस दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ नेल्सन मंडेला, अमेरिका में अब्राहम लिंकन और मारिन लूथर किंग। भारत में भी जात-पात, छुआछात और नस्लीए भेदवाव के खिलाफ बहुजनों के मसीहा बाबा साहेब भीम राव अंमेडकर ने बड़े पैमाने पर संघर्ष किया, और इस संघर्ष की बदौलत वो भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में अपने विचार औऱ सिद्धांतो के लिए जाने जाते है।
बाबा साहेब अंबेडकर की मृत्यु के ततकरीबन 15 साल बाद तक भारत में कोई भी राष्ट्र स्तरीय बहुजन नेता सामने नहीं आया, उस दौरान छोटे मोटे जो नेता बहुजन समाज से उभर रह थे, या तो वो किसी दूसरे राजनीतिक दल में शामिल हो जाते थे, या फिर राजनीतिक पार्टियों द्वारा उनके संघर्ष के आड़े आकर अपनी पार्टी में मिला लिया जाता था।
लेकिन बाबू काशिराम एक ऐसे बहुजन नेता बने जिन्होंने बाबा साहेब के विचारों को आगे बढ़ाते हुए संघर्ष किया, औऱ बड़े बहुजन नेता सिद्ध हुए। काशीराम का जन्म आज ही के दिन यानी 15 मार्च 1934 में हुआ था। 1954 में ग्रेजुएशन करने के बाद में वो 1968 में डिफैंस रिसर्च एंड डिवैल्पमेंट ऑग्रेनाइजेशन, पुणे में सहायक वैज्ञानिक के रुप में भर्ती हो गए।
उस समय बाबा साहेब के आंदोलन का काफी असर था, इसी दौरान डीआरजीओ का एक कर्मचारी दीनाभान, एक बहुजन नेता के रूप में अपने साथी कर्मचारियों के साथ मिलकर बाबा साहेब के जन्म दिन की छुट्टी बहाल कराने के लिए संघर्ष कर रहा था। काशीराम भी इस आंदोलन में जुड़ गए।
इसके बाद उन्होंने बाबा साहेब कि विचारधारा का अच्छी तरह अध्यन किया, और 1971 में लगभग 13 साल की नौकरी के बाद इस्तीफा दे दिया। वो बाबा साहेब के मिशन को आगे बढाने के लिए संघर्ष करने लगे।
जिसके बाद काशीराम ने 14 अप्रेल 1984 को बहुजन समाज पार्टी के नाम से राजनीतिक संघठन का गठन किया और समस्त भारत में चुनाव लड़ने का बिगुल बजा दिया। उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्रचार और संघर्ष किया और देश की सभी राजनीतिक पार्टियों का पसीना छुड़ा दिया। 1993 में पहली बार बीएसपी के 67 विधायक अपने दम पर जीत हासिल करने में सफल रहे और पार्टी का खूब बोलबाला हो गया। जिसके बाद उन्होने यूपी बीएसपी की कमान मायावती के हाथों में सौप दी, और काशीराम जी की ही बदौलत यूपी की प्रथम बहुजन मुख्यमंत्री बनी।
काशीराम अपने मिशन में इतने मशरूफ रहते थे कि उन्होंने अपने शरीर की भी परवाह नहीं की थी। बीमार होने के बावजूद उन्होंने संघर्ष को जारी रखा था, जिसके बाद धीरे धीरे बीमारी बढ़ती गई और 2003 में उनकी हालत बेहद खराब हो गई। आखिर 9 अक्टुबर 2006 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी म़ृत्यु हो गई, और बहुजन समाज अपने मसीहा से वंचित हो गया।
बाबा साहेब डॉ भीम राव अंबेडकर के बाद कांशीराम ही एक ऐसे बहुजन नेता थे, जिन्हें आज भी राष्ट्रीय स्थर पर याद किया जाता है।
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