अखबारनामा: बिहार में अखबार ऐसे भी और वैसे भी
दोस्तों, सामान्य जीवन में यह बहुत मुश्किल है कि कोई एक ही समय में हंसे और रोता भी दिखे। लेकिन यह होता है। राजनीति के मामले में तो इसके कई सारे प्रमाण हैं। रही बात अखबरों की तो अखबारों का काम ही यही होता है। समाजशास्त्र की कसौटी के आधार पर चाहे इसे अनुचित करार दिया जाय, लेकिन अखबारों के इथिक्स इससे दूर ही रहतें है। यही वजह है कि अखबारों में तमाम अच्छे-बुरे विज्ञापन प्रकाशित होते हैं और खबरें भी।
मौसम जब चुनाव का हो तब अखबारों का दोमुंहापन साफ-साफ दिखने लगता है। बिहार में भी यह साफ-साफ नजर आ रहा है। इस विषय पर और चर्चा करेंगे लेकिन सबसे पहले यह समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर एक ही समय में अखबार रोते और हंसते कैसे हैं? इनके दोमुंहेपन के सबूत क्या हैं?
आज फिर उदाहरण लेते हैं पटना से प्रकाशित दैनिक हिन्दुस्तान का। आज के संस्करण की सबसे पहली खबर है – बीजेपी ने फिर खेला सवर्णों पर दांव। खबर के मुताबिक बीजेपी ने दूसरे चरण के चुनाव के लिए 46 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। इस खबर में यह सच बताया गया है कि भाजपा सवर्णों और बनियों की पार्टी है। चूंकि बनिया समाज बिहार में ओबीसी में शामिल है। इसलिए भाजपा के साथ सहूलियत यह है कि वह आराम से बनिया समाज के उम्मीदवारों को यादव, कोईरी, कुशवाहा व अन्य अति पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों के साथ रख सकती है। फिलहार दूसरी सूची में भाजपा ने 26 सवर्णों और बनियों को अपना उम्मीदवार बनाया है। 22 सवर्णों में सबसे अधिक 11 राजपूत हैं। भूमिहारों का कद ब्राह्मणों से अधिक है लेकिन भाजपा के लिए ब्राह्मण महत्वपूर्ण हैं। इसलिए इन दोनों जातियों को क्रमश: 5 और 4 स्थानों पर उम्मीदवारी दी गई है। वहीं कायस्थों को दो सीटें दी गई हैं।
बिहार के चुनाव में जातिवाद कैसे किया जाता है, यह बिहार के अखबार बता रहे हैं। इस पर तुर्रा यह कि तमाम पार्टियां यह दावा भी करती हैं कि वह जाति की नहीं, जमात की राजनीति करती हैं। उनका मुद्दा सबका विकास है। अब भाजपा को ही देखिए कि वह कैसे जाति के सहारे नीतीश कुमार को पछाड़ बिहार की सत्ता हासिल करना चाहती है। दूसरे चरण के चुनाव के लिए उम्मीदवारों की सूची में उसने 8 यादवों, 4 कुर्मी-कुशवाहों व एक सीट अति पिछड़ा वर्ग तथा 7 चूंकि आरक्षित सीट हैं तो इस हिसाब से उसकी सूची में 7 अनुसूचित जाति के हैं।
अब इस पूरी खबर के केंद्र में कौन है? जाहिर तौर पर सवर्ण। बनिए तो केवल इसलिए कि वे सवर्णों के भामाशाह बने रहें। लेकिन हिन्दुस्तान ने खबर के साथ किसी सवर्ण उम्मीदवार की तस्वीर प्रकाशित नहीं की है। तीन उम्मीदवारों की तस्वीरें हैं। ये हैं – नंदकिशेर यादव, संजीव चौरसिया तथा सिन्हा सरनेम लगाने वाली यादव जाति की आशा सिन्हा।
अब इस एक उदाहरण से आप समझ सकते हैं कि एक ही समय में जातिवाद कैसे किया जाता है और जातिवाद के आरोपों से कैसे बचा जा सकता है। यदि अखबार ने सवर्णों की तस्वीरें छाप दी होती तो यह पूरी तरह स्थापित हो जाता कि यह अखबार सवर्णों का है जो कि वास्तव में है भी। लेकिन उसकी यह सच्चाई सामने न आए इसलिए तीन गैर सवर्णों की तस्वीर छाप दी।
चलिए, आगे बढ़ते हैं। आज के पटना संस्करण में हिन्दुस्तान ने एक सनसनीखेज खबर प्रकाशित की है तथा इसे पहले पन्ने पर प्रकाशित किया है। यह वाकई दिलचस्प है कि पटना के अखबार अब नीतीश कुमार को आंख दिखाने लगे हैं। अखबार ने पटना में एक 32 साल की युवती के साथ गैंगरेप और उसके दो साल के बच्चे की हत्या से संबंधित खबर को प्रकाशित किया है। मिल रही जानकारी के अनुसार युवती जातिविहीन नहीं थी। युवती का संबंध सवर्ण समाज से है। मुमकिन है कि इस वजह से भी अखबार ने उसके साथ हुई दरिंदगी को प्रथम पन्ने पर जगह दी हो। यदि अखबार नीतीश कुमार के पक्ष में खड़ा होता तो वह इस खबर को अंदर के पन्नों पर छापता। वजह यह कि युवती का संबंध बक्सर के डुमरांव से है।
इस खबर के ठीक पहले अखबार ने भाजपा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान को प्रमुखता से प्रकाशित किया है। खबर के मुताबिक वह गया जिले में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे।
खबर पटना के संस्करण में पहले पन्ने पर है। यह भी सोचने वाली बात है।पहले पन्ने पर ही नीतीश कुमार के वर्चुअल रैली से संबंधित खबर को पहले पन्ने पर विस्तार से छापा गया है। दूसरा पन्ना भी राजनीतिक पन्ना है लिहाला इस पन्ने पर भी चुनाव से संबंधित खबर हैं। इस पन्ने पर जदयू, भाजपा, कांग्रेस, भाकपा की खबरें हैं। लेकिन राजद से जुड़ी एक खबर नहीं है।
माफ करिए।एक खबर है।यह खबर नहीं बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का बयान है – राजद का अब जेपी-लोहिया से कोई वास्ता नहीं : मोदी। बहरहाल, अभी तो अखबारों के चेहरों से मुखौटे उतरने लगे हैं। चुनाव परिणाम आने तक ये नंगे भी हो जाएंगे। आप बस देखते रहिए हमारा यह खास कार्यक्रम जिसका मकसद ही है द्विजवादी अखबारों के घिनौने सच को आपके सामने लाना।
यह लेख वरिष्ठ पत्रकार नवल किशोर कुमार और सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषण मनीषा बांगर के निजी विचार है ।
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