Home Uncategorized अखबारनामा : रामविलास पासवान की लाश पर राजनीति
Uncategorized - October 10, 2020

अखबारनामा : रामविलास पासवान की लाश पर राजनीति

BY_नवल किशोर कुमार

दोस्ताें, डेमोक्रेटिक सियासत का सबसे खूबसूरत पक्ष यह है कि इसमें एक मर्यादा होती है। सियासत करने वाले इसे मानते हैं। तभी डेमोक्रेसी मजबूत होती है। लोगों का विश्वास बढ़ता है। इसी मर्यादा के तहत सियासत करने वाले चाहे लाख एक-दूसरे के उपर आरोप-प्रत्यारोप लगाएं, लेकिन वे सीमा का उल्लंघन नहीं करते। संसद में होने वाली बहसें इसका प्रमाण हैं। यहां तक कि चुनावी राजनीति में भी तीखे आरोप-प्रत्यारोप और दावे-प्रतिदावे होते हैं। लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद विजित पक्ष को सभी बधाई देते हैं।

लेकिन अब हालात बदलने लगे हैं। मर्यादा और लोाकाचार अब राजनीति से खत्म होती जा रही है। हालत यह हो गई है कि लाशों पर राजनीति की जाने लगी है।

तो आज हम इसी मामले पर बात करेंगे कि कैसे बिहार चुनाव में राजनीतिक मर्यादा लांघी गयी और इसमें अखबारों की भूमिका क्या है? हम इसके राजनीतिक पक्ष पर विचार करेंगे और यह भी कि इसका प्रभाव क्या पड़ेगा।

सबसे पहले यह समझते हैं कि मामला है क्या?

दरअसल, कल केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान के पार्थिव शरीर को पटना ले जाया गया। पटना से प्रकाशित अखबारों में इससे जुड़ी खबरों को प्रमुखता दी गयी है। इसकी वजह भी है। रामविलास पासवान बड़े कद वाले नेता रहे। उनकी सबसे दोस्ती थी और सबसे बैर भी। यही वजह रही कि उन्होंने लालू प्रसाद के साथ मिलकर राजनीति की तो नीतीश कुमार के साथ मिलकर भी। भाजपा सरकार में भी मंत्री रहे और कांग्रेसी सरकार में भी।

पटना से प्रकाशित अखबारों की बात ही करते हैं। दैनिक हिन्दुस्तान ने एक खबर प्रकाशित किया है। इसका आशय तो यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रामविलास पासवान के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित की। यह एक सामान्य प्रोटोकॉल है। जब कभी किसी बड़े नेता का निधन होता है तो इस प्रोटोकॉल को माना जाता है। एयरपोर्ट पर पार्थिव शरीर के बाहर आते ही सभी बड़े नेता इकट्ठे होते हैं। सेना की तरफ से उनके प्रतिनिधि भी जुटते हैं जो कि असल में राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह एक इवेंट होता है। आप चाहें तो इसे राजनीतिक रस्म भी कह सकते हैं।

दैनिक हिन्दुस्तान ने जो इस संबंध में खबर प्रकाशित किया है, उसका शीर्षक यह सबूत दे रहा है कि कैसे रामविलास पासवान की लाश पर राजनीति शुरू हो गई है। शीर्षक है -श्रद्धांजलि देते समय मुख्यमंत्री हुए भावुक। इस खबर के साथ उनकी एक तस्वीर भी है जिसमें वह रामविलास पासवान के पार्थिव शरीर पर पुष्प वलय यानी फ्लॉवर रिंग अर्पित करते नजर आ रहे हैं। अखबार ने खबर में इस बात पर जोर दिया है कि कैसे नीतीश कुमार की आंखें नम हुईं और वे कितने दुखी हुए। यहां तक कि उनकी दुख की पराकाष्ठा को बताने के लिए अखबार ने एक बुलेट भी बनाया है – रो पड़े।

जाहिर तौर पर किसी का निधन भी किसी को भी दुखी कर जाता है। यह भी मुमकिन है कि रामविलास पासवान को यादकर नीतीश कुमार की आंखें नम हुई होंगी। शायद ही ऐसा कोई होगा जिसकी आंखें नम न हुई हों। हालांकि यह भी सही है कि सियासत में मगरमच्छ के आंसू भी खूब बहाए जाते हैं।

खैर, हमारे सामने मुद्दा यह नहीं है कि नीतीश कुमार की आंखों से निकले आंसू मगरमच्छ वाले आंसू थे या फिर इंसान वाले। हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि अखबार को क्या हुआ है? अभी चुनाव का माहौल है। आदर्श आचार संहिता लागू है। यहां तक कि जिस दिन बिहर में चुनाव की घोषणा की गई तब उसी दिन हिन्दुस्तान अखबार ने अपने पहले दो पन्नों पर इस बात की कसम खायी थी कि वह किसी भी तरह के प्रायोजित खबर यानी पेड न्यूज को खबर जगह नहीं देखा। पारदर्शी पत्रकारिता करेगा। फिर उसने यह क्यों लिखा – श्रद्धांजलि देते समय मुख्यमंत्री हुए भावुक, रो पड़े।
अब इसके पीछे की राजनीति समझते हैं।

असल में रामविलास पासवान की राजनीतिक मौत तो पहले ही हो चुकी थी।

रामविलास पासवान लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनकी पार्टी की बागडोर उनके बेटे चिराग पासवान ने ले ली थी। उन्होंने नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ चार महीने से अभियान चला रखा था। उनके बयानों से नीतीश असहज हो रहे थे। जब गठबंधन के बीच सीट शेयरिंग की बारी आयी ताब जदयू और भाजपा ने आपस में मिलकर सीटों का बंटवारा कर लिया। दोनों पार्टियां नहीं चाहती थीं कि चिराग पासवान के नेतृत्व में लोजपा एक ताकत बने। इसलिए सीटों का बंटवारा 122 और 121 के रूप में कर दिया गया।

परंतु यह केवल एक पक्ष रहा। चिराग पासवान नीतीश कुमार के खिलाफ भाजपा के मोहरे बन चुके हैं। उन्होंने “मोदी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं” का नारा बुलंद कर दिया। भाजपा ने नीतीश कुमार का पर कतरने के लिए अपने मजबूत कद्दावर नेताओं को लोजपा से जदयू के खिलाफ उम्मीदवार बना दिया है। यहां तक कि भाजपा के उम्मीदवारों के लिए लोजपा ने अपने दल के समर्पित कार्यकर्ताओं को बेटिकट कर दिया।

यह सियासी पेंच है। यह सब रामविलास पासवान के नामपर तब से हो रहा है जब वह एक शरीर के रूप में दिल्ली के सबसे महंगे फोर्टिस एस्कार्ट अस्पताल में इलाजरत थे। अब तो उनकी मौत हो चुकी है। ऐसे में नीतीश कुमार का रोना और आंसू बहाना ननपॉलिटिकल नहीं है। यह बात नीतीश कुमार भी जानते हैं और लोग भी।

बहरहाल, हम मीडिया के लोग यह तय नहीं कर सकते कि लोगों पॉलिटिक्स की मर्यादा क्या हो। यह तो राजनेताओं की जिम्मेदारी है कि वे एक ऐसा आचरण प्रस्तुत करें जिससे लोगों के मन में लोकतंत्र के प्रति विश्वास बढ़े।

यह लेख वरिष्ठ पत्रकार नवल किशोर कुमार और  सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषण मनीषा बांगर के निजी विचार है ।

(अब आप नेशनल इंडिया न्यूज़ के साथ फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब पर जुड़ सकते हैं.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन को 100 दिन पूरे होने को हैं…