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Uncategorized - September 1, 2020

कौन हारा? मगरमच्छ या हाथी? या फिर पूरा हिन्दुस्तान?

मुझे सपनों को दर्ज करने की आदत रही है। वैसे तो रात में अनेक सपने आते हैं (कभी कभी नहीं भी आते हैं)। अधिकांश सपनों की उम्र केवल तभी तक होती है जबतक कि वे मेरे जेहन में रहते हैं और मेरी आंखें बंद रहती हैं। आंखें खुलने के बाद भी जेहन में जिंदा रहने वाले ख्वाब कम ही होते हैं। मैं उन ख्वाबों को ही कलमबद्ध करता हूं और फिर उनपर मनन करता हूं।

ख्वाब हमेशा एक जैसे नहीं होते और मैं तो अपने अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि ख्वाब आपके नियंत्रण में नहीं होते। आप चाहकर भी अपने मन के ख्वाब नहीं देख सकते। ख्वाब तो वही आते हैं जो आपके अंर्तमन में चल रहा होता है और आपको उसकी खबर नहीं होती। ऐसा बिलकुल नहीं होता कि आप जबरदस्ती ख्वाबों को आने का आदेश दें।

करीब चार बजे मैं उठ गया। मैंने एक सपना देखा था। एक छोटा सा आदमी बार-बार हंस रहा था। वह एक छोटे बच्चे के जितना था। सपने में मैं उसे पीट रहा था। उसका शरीर बहुत सख्त था। मैं जितना उसे पीटता, वह उतना ही हंसता था। मैंने अपनी पूरी ताकत लगा दी, लेकिन वह वामनावतार हंसता ही जा रहा था।क्या वह वामनावतार ब्राह्मणवाद है जिसका खात्मा मैं करना चाहता हूं और वह है कि मेरे हर हमले के बाद ठठाकर हंसता है? इस सपने पर फिर कभी विचार करूंगा।

फिलहाल मेरे सामने आज दिल्ली से प्रकाशित दो हिन्दी दैनिक के ई-पेपर हैं। पहला है हिन्दुस्तान और दूसरा जनसत्ता। हिन्दुस्तान मैं इसलिए पढ़ता हूं ताकि उन्हें समझ सकूं जो दावा तो हिन्दुस्तान होने का करते हैं, लेकिन गाते शासकों और पूंजीपतियों का हैं। इन दिनों मैं एक संग्रह भी कर रहा हूं कि हिन्दुस्तान के दिल्ली संस्करण में दलित-पिछड़ों से जुड़ी कितनी खबरें प्रकाशित होती हैं। और यह भी कि ये खबरें होती कैसी हैं। संग्रह को और व्यापक बनाने के लिए मैंने अपने गृह शहर पटना से प्रकाशित हिन्दुस्तान के ई-पेपर का उपयोग करना हाल में शुरू किया है। संग्रह के उद्देश्य और इसके निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए मुझे कम से कम 6 महीने का समय खुद को देना चाहिए।जनसत्ता को पढ़ने का एक उद्देश्य इसका साफ-सुथरा ले-आउट है। खबरों में ईमानदारी अब जनसत्ता का इतिहास है। लेकिन अभी भी जनसत्ता में खबरें होती हैं। यह खास बात है।

आज के अखबारों में तीन खबरें पेज वन पर हैं। एक तो भारत की अर्थव्यवस्था में अबतक की सबसे बड़ी गिरावट की खबर है। हिन्दुस्तान में खबर है कि चालू वित्तीय वर्ष के प्रथम तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई है जो कि सबसे अधिक है। दूसरी खबर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन से संबंधित है। खबर में यह नहीं बताया या है कि वे कोरोना संक्रमित थे या नहीं थे। बताया यह गया है कि बीते 10 अगस्त को उन्हें दिल्ली के सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके मस्तिष्क में संक्रमण था और सर्जरी की गई थी। सर्जरी के बाद उनके फेफड़े में संक्रमण हो गया था। कोरोना संक्रमित थे प्रणब मुखर्जी, पहले यह खबर आई थी और उनके निधन की खबर में यह जानकारी नहीं है। यह अकारण तो नहीं हो सकता।

खैर तीसरी खबर प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक रुपए का आर्थिक दंड दिए जाने की है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस अरूण मिश्रा, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस कृष्णमुरारी की खंडपीठ ने प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का दोषी पाया और उन्हें एक रुपए का दंड सुनाया। दंड नहीं भरे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने की कैद और तीन साल तक वकालत पर प्रतिबंध का विकल्प रखा था।

इसके पहले एक छोटी सी कहानी मेरे गृह राज्य बिहार के वैशाली की। वहीं वैशाली जहां भारत में पहली बार लोकतांत्रिक व्यवस्था जन्मीं। इसी वैशाली के सोनपुर में गंडक नदी के किनारे एक घाट है – कोनहारा घाट। यह “कौन हारा” का अपभ्रंश है। दरअसल, यहां मगरमच्छ और हाथी के बीच लड़ाई हुई थी, ऐसा किस्से कहानियों में है। यह लड़ाई बहुत दिनों तक चली। लोगों के लिए यह तमाशा था। वे हमेशा जानने की कोशिश करते कि कौन हारा? हालांकि यह तमाशा और लंबा खींचता यदि विष्णु ने दखल नहीं दिया होता। उसने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ को मार डाला था। आज भी हाजीपुर में एक मंदिर है जहां यह कहानी प्रतिमाओं के जरिए कही गई है।

खैर, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की व्याख्या ब्राह्मणों के “हरि अनंत, हरि कथा अनंता” की तर्ज पर की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट और सरकार के पक्षधर इसे सुप्रीम कोर्ट की जीत बता रहे हैं। जेएनयू से जुड़े एक संघी ने अपनी टिप्पणी में प्रशांत भूषण को चवन्नी छाप वकील की संज्ञा दी है और उनकी औकात एक रुपए आंकी है। वहीं प्रशांत भूषण और उनके समर्थक कुछ और बात कर रहे हैं। मतलब यह कि सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक हार है। कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट की हैसियत एक रुपए आंक रहे हैं। कुछ ने तो यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही उनसे सौ रुपए ले ले और अवमानना करने दे।

तो इस तरह सुप्रीम कोर्ट भी जीता और प्रशांत भूषण की भी हार नहीं हुई। आज के अखबार में प्रशांत भूषण और उनके वकील मित्र राजीव धवन की तस्वीर भी प्रकाशित है। इसमें वह राजीव धवन से एक रुपए का सिक्का लेते दिखाई दे रहे हैं। दोनों के चेहरे पर विजय का भाव है।

लेकिन सवाल यह है कि हारा कौन? क्या इस देश के करोड़ों लोग ठगे गए? क्या एक रुपए का दंड दंड नहीं होता? क्या सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि जिन दो ट्वीट के जरिए प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट का मजाक बनाया, वह बहुत अधिक अनुचित नहीं थे? क्या हुआ इस मामले में? पचास लाख की बाइक पर बिना मास्क लगाए सवारी करने वाले जज बोबडे को दंडित किया गया?

नहीं जनाब, कुछ नहीं हुआ। सब “थ्री इडियट्स” फिल्म का गाना “ऑल इज वेल” गा रहे हैं।खैर, मैं आज के दिन पेरियार ललई सिंह यादव को याद कर रहा हूं। आज के ही दिन 1911 में इनका जन्म हुआ था। इन्होंने पेरियार की किताब “अ ट्रू रीडिंग ऑफ रामायण” का हिंदी अनुवाद “सच्ची रामायण” प्रकाशित किया था। इस किताब को उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। इसके खिलाफ पेरियार ललई सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश सरकार के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया। बाद में उत्तर प्रदेश सरकार हाईकोर्ट के इस आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गई और वहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई की तीन जजों की पीठ ने की, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर ने की और इसके दो अन्य जज थे, पी .एन. भगवती और सैय्यद मुर्तज़ा फ़ज़ल अली।

याचिकाकर्ता उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सीआरपीसी की धारा 99-ए के तहत ‘रामायण – अ ट्रू रीडिंग’ पुस्तक की अंग्रेज़ी और इसके हिंदी अनुवाद ‘सच्ची रामायण’ को ज़ब्त करने का आदेश जारी किया गया है। इसके लेखक तमिलनाडु के पेरियार ई.वी.आर. हैं। यह पुस्तक भारतीय नागरिकों के एक वर्ग, हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती है।

राज्य सरकार के वक़ील ने इसके पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में कहा था कि राज्य सरकार की याचिका में कोई ख़ामी नहीं है और यह पुस्तक राज्य के विशाल हिंदू जनसंख्या की पवित्र भावनाओं पर प्रहार करती है और इस पुस्तक के लेखक ने बहुत ही स्षप्ट भाषा में महान अवतार श्री राम और सीता एवं जनक जैसे दैवी चरित्रों पर कलंक मढ़ा है जिसका हिंदू लोग आदर करते हैं और उनकी पूजा करते हैं।

खैर, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले पर पहुँचने से पूर्व कहा कि उसे इस मामले को मूलपाठ की दृष्टि से और दूसरा वृहत  दृष्टिकोण से देखना होगा और इस आधार पर वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि हाईकोर्ट ने सरकार के आदेश को निरस्त कर कोई ग़लती नहीं की है और और यह अपील ख़ारिज कर दिए जाने लायक़ है। कोर्ट ने कहा कि धारा 99 ए के तहत अधिकार का प्रयोग क़ानून की प्रक्रिया के तहत ही हो सकता है।

कोर्ट ने कहा कि जब धारा यह कह रही है कि आपको अपने निर्णय का आधार बताना होगा तो आप यह नहीं कह सकते कि इसकी ज़रूरत नहीं है और यह इसमें अंतर्निहित है। जब आप किसी चीज़ को लेकर चुप हैं तो इसका मतलब आप कुछ भी नहीं बता रहे हैं। कोर्ट ने कहा जब बोलना क़ानूनी कर्तव्य है, चुप रहना एक घातक दोष है…।”जी हां, वह भी सुप्रीम कोर्ट ही था और आज भी हमारे सामने सुप्रीम कोर्ट ही है।

ये लेख वरिष्ठ पत्रकार नवल किशोर कुमार के निजी विचार है..।

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