मायावती का चुनावी गेम प्लान
बीएसपी सुप्रीमों मायावती एक बार फिर ‘एकला चलो रे…को फॉलो करने जा रही हैं. मायावती ऐसा इसलिए नहीं कर रही हैं क्योंकि कोई उनके साथ चलने को तैयार नहीं है. बल्कि बीएसपी नेता ऐसा इसलिए कर रही हैं क्योंकि किसी का भी साथ रास नहीं आ रहा है. यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने के बाद जब हार मिली तो मायावती ने गठबंधन ही खत्म कर दिया. अब तो मायावती यूपी में उपचुनाव भी अकेले लड़ने जा रही हैं. बीएसपी की ओर से उपचुनावों के लिए उम्मीदवारों की सूची भी जारी कर दी गयी है.
हाल ही में दिल्ली मीटिंग के दौरान कांग्रेस और बीएसपी के गठबंधन की बातें सामने आ रही थी लेकिन बीएसपी ने कांग्रेस के साथ भी किसी तरह के गठबंधन से साफ तौर पर इंकार किया था. वहीं बीएसपी पार्टी महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड तीनों ही राज्यों में अकेले दम पर चुनाव लड़ने जा रही हैं.
मायावती अब भी बहुजनों की राष्ट्रीय आवाज बनी हुई हैं. मायावती के अलावा रामविलास पासवान, रामदास अठावले और उदित राज भी बहुजनों की राजनीति करते रहे हैं, लेकिन उनका प्रभाव अपने अपने इलाकों तक ही सीमित रहा है. मायावती को युवा बहुजन नेताओं से थोड़ी चुनौती जरूर मिली थी, लेकिन वे जहां तहां बिखरने लगे हैं – यूपी की भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद रावण तो अब तक संभल कर कहीं खड़े भी नहीं हो पाये. चंद्रशेखर से कुछ बेहतर स्थिति जिग्नेश मेवाणी की जरूर है लेकिन काफी दौड़-धूप के बाद भी गुजरात से बाहर उनकी आवाज उतनी ही देर सुनायी देती है जब वो टीवी पर लाइव होते हैं. महाराष्ट्र की जिम्मेदारी मायावती ने बीएसपी के राज्य सभा सदस्य अशोक सिद्धार्थ और रामअचल राजभर को सौंपी है जो स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर काम कर रहे हैं.
हरियाणा में ये काम बीएसपी महासचिव सतीशचंद्र मिश्रा देख रहे हैं और अभी तो पूरे सूबे में उनका तूफानी दौरा चल रहा है. हरियाणा को लेकर मायावती और भूपिंदर सिंह हुड्डा के बीच करीब आधे घंटे की मीटिंग हुई थी और उसके बाद कयास लगाये जा रहे थे कि तमाम धक्के खाने के बाद दोनों दल शायद हाथ मिलाकर कर बीजेपी को टक्कर देने के बारे में सोच रहे हों – लेकिन हर बार कि तरह एक बार फिर वैसा कुछ नहीं हो सका.
मायावती का दावा तो यही रहता है कि उनका स्टैंड बीजेपी के खिलाफ है – लेकिन हाल में कर्नाटक विधानसभा में विश्वास मत के दौरान जो हुआ उससे तो यही लगता है कि बीएसपी परदे के पीछे से बीजेपी की ही मददगार बन रही है.वही सवाल एक ये भी है कि मायावती के इस फैसले से सबसे ज्यादा किसे फायदा होने वाला है – निश्चित तौर पर BSP को या प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस को या परोक्ष रूप में बीजेपी को?
Remembering Maulana Azad and his death anniversary
Maulana Abul Kalam Azad, also known as Maulana Azad, was an eminent Indian scholar, freedo…