यूपी में 8 विधानसभा सिटों पर उपचुनाव, किसानों ने बीजेपी को सत्ता से बाहर करने की ठानी !
किसानों से जुड़े तीन नए विधेयक संसद से पास हो चुके हैं, लेकिन केंद्र की मोदी सरकार के फैसले पर किसान आक्रोशित और उग्र हैं। किसान संगठन विचारधारा से ऊपर उठकर, आपसी मतभेद भुलाकर एकजुट हो गए हैं और 25 सितंबर को भारत बंद बुलाया है। कृषि संबंधी विधेयकों के बहाने किसान संगठन ही नहीं बल्कि विपक्षी पार्टियां भी मोदी सरकार के खिलाफ लामबंद हैं। ऐसे में किसानों की नाराजगी का पहला लिटमस टेस्ट मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में होने वाले उपचुनाव में देखने को मिल सकता है।

किसान हितैषी होने के दावों के बीच मोदी सरकार के खिलाफ 2014 से लेकर अब तक किसान कई बार सड़क पर उतर चुके हैं, लेकिन इस बार किसानों की नाराजगी कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रही है। मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि सुधार कानून को किसान अपने हित में नहीं मान रहे हैं। इसके खिलाफ किसान एकजुट होकर आवाज बुलंद करने लगे हैं, किसानों की सबसे ज्यादा नाराजगी हरियाणा, पंजाब, यूपी और एमपी में देखने को मिल रही है, जिसे विपक्ष खाद पानी भी देने का काम कर रहा है. ऐसे में सत्ताधारी दल के लिए राजनीतिक चुनौती खड़ी हो गई है।

उत्तर प्रदेश में किसान संगठनों के नेताओं ने एकजुट होकर मोदी सरकार खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कृषि विधेयक के खिलाफ अखिल भारतीय किसान यूनियन ने सूबे में 25 सितंबर को चक्का जाम करेंगे। किसान यूनियन के महासचिव धर्मेंद्र मलिक बताया कि यूपी में किसान शुक्रवार को अपने-अपने गांव, कस्बे और हाईवे का चक्का जाम करने का काम करेंगे। सरकार यदि हठधर्मिता पर अडिग है तो हम किसान भी पीछे हटने वाले नहीं हैं. किसान सड़क पर उतरकर संघर्ष का रास्ता अख्तियार करेगा और सरकार नहीं मानी तो किसान सत्ता से हटाना भी जानते हैं।

जानकारी के लिए बता दें की उत्तर प्रदेश में आठ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। कानपुर के घाटमपुर, जौनपुर के मल्हनी, रामपुर के स्वार, बुलंदशहर के सदर, आगरा के टूंडला, देवरिया की देवरिया सदर, उन्नाव की बांगरमऊ और अमरोहा की नौगावां सादात सीट है। इनमें चार सीटें पश्चिम यूपी हैं, जहां किसान किंगमेकर की भूमिका में हैं।
पश्चिम यूपी में किसान सियासत की दशा और दिशा तय करते हैं। सूबे की सरकार किसानों में साधने की कवायद कर रही है, जिसके तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसान यूनियन के नेताओं के साथ बुधवार को मुलाकात की है। इसके बाद भी किसान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं, यह बीजेपी के लिए चिंता का सबब बन गया है, क्योंकि उपचुनाव 2022 का सेमीफाइल माना जा रहा है।

फिलहाल अब देखने वाली बात ये होगी की किसान सरकार के आगे घुटने टेकते है या फिर सरकार किसानों के आगे। क्योंकि किसानों की हालात बीजेपी सरकार में पूरी तरह से बेकार हो चुकी है। फिलहाल अब देखने वाली बात ये होगी की किसानों का प्रदर्शन कब तक जारी रहता है।
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